“ॐ नमो आदेश गुरु । घोर-घोर, काजी की कुरान घोर, मुल्ला की बांग घोर, रेगर की कुण्ड घोर, धोबी की चूण्ड घोर, पीपल का पान घोर, देव की दीवाल घोर । आपकी घोर बिखेरता चल, पर की घोर बैठाता चल । वज्र का कीवाड़ जोड़ता चल, सार का कीवाड़ तोड़ता चल । कुण-कुण को बन्द करता चल-भूत को, पलीत को, देव को, दानव को, दुष्ट को, मुष्ठ को, चोट को, फेट को, मेले को, धरले को, उलके को, बुलके को, हिड़के को, भिड़के को, ओपरी को, पराई को, भूतनी को, डंकनी को, सियारी को, भूचरी को, खेचरी को, कलुवे को, मलवे को, उन को, मतवाय को, ताप को, पीड़ा को, साँस को, काँस को, मरे को, मुसाण को । कुण-कुण-सा मुसाण – काचिया मुसाण, भुकिया मुसाण, कीटिया मुसाण, चीड़ी चोपड़ा का मुसाण, नुहिया मुसाण – इन्हीं को बन्ध कर, ऐड़ो की ऐड़ी बन्द कर, जाँघ की जाड़ी बन्द कर, कटि की कड़ी बन्द कर, पेट की पीड़ा बन्द कर, छाती को शूल बन्द कर, सर की सीस बन्द कर, चोटी की चोटी बन्द कर । नौ नाड़ी, बहत्तर रोम-रोम में, घर-पिण्ड में दखल कर । देश बंगाल का मनसा राम सेबड़ा आकर मेरा काम सिद्ध न करे, तो गुरु उस्ताद से लाजे । शब्द सांचा, पिण्ड काचा, फुरो मन्त्र , ईश्वरो वाचा ।”