त्रिपुरा आकर्षण मंत्र प्रयोग :
मंत्र : “श्रीं क्लीं ह्रीं ॐ त्रिपुरा देबी अमुकी आकर्षय आकर्षय स्वाहा ।”
इस मंत्र का अयुत (दस हजार) जप करें । रक्त चन्दन और कुंकुम से षट्कोण यन्त्र अंकित कर उसका पूजन उक्त मंत्र से करे । लज्जा बीज (ह्रीं) को षड दीर्घ (हां, ह्रीं हूं, हें, ह्रौं, ह: ) स्वरों से युक्त कर अर्थात् ह्रां अंगुष्ठाभ्यां नम: इत्यादि से कर षडंगन्यास करें । रक्त पुष्प, अक्षत, धूप, दीप और नैवेद्य से पूजन करे । फिर मन ही मन देबी का ध्यान करे ।
यथा –
भाबयामि चेतसा देबीं, त्रिनेत्रा चन्द्रशेखराम् ।
बालर्ककिरण प्रख्यां, सिंदुरारुण बिग्रहाम् ।
पद्दं च दक्षिणे पाणौ, जपमालां च बामके ।।
इस मंत्र के प्रभाब से रम्भा और उर्वशी को भी निश्चय ही आकृष्ट कर सकते हैं । फिर मानुषी के आकर्षण में क्या आश्चर्य ।
भूज पत्र पर कुंकुम अथबा कस्तूरी, अगुरु और गोरोचन मिश्रित अनामिका रक्त से यह कमलाक्षी मंत्र लिखकर उसी भूज पत्र के ऊपर उक्त मंत्र का एक सहस्त्र जप करे ।
मंत्र :- “ॐ श्रीं कमलाक्षी अमुकीम् आकर्षय आकर्षय हूं फट्” ।
फिर उस भूज पत्र की गुलिका बनाकर अभीष्ट ब्यक्ति या स्त्री की पैर की मिट्टी से उसे बेष्टित करे । फिर उस मिट्टी लगी गुलिका को धूप में खूब सुखा ले । फिर त्रिकुटू (मरिच, पीपल और सौंठ ) से अभिष्ठ रमणी की प्रतिमा बनाकर उसके पेट में उक्त गुलिका को डाल दे । तदनन्तर उस प्रतिमा को किसी पात्र में स्थापित कर बह रमणी जिस दिशा में हो, उसी दिशा की और मुख करके बैठे और निशा काल में किसी निर्जन स्थान में उक्त “कमलाक्षी मन्त्र” का जप करे । इस प्रकार करने से बह रमणी आकर्षित होकर साधक के समीप आ उपस्थित होगी ।
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