100% शत्रु उच्चाटन का चमत्कारी सिद्ध मंत्र :
यह कुछ उपाय मैं आपके समक्ष रखता हूँ और आशा करता हूँ की आप इसका सही समय और सही परिस्थिति में ही प्रयोग करेंगे। शत्रु पर विजय के लिए कई तरीके के मंत्र-तंत्र और टोटके होते हैं।
उच्चाटन उन्ही कुछ उपायों में से एक है जो ऐसी परिस्थिति में बताया जाता है। उच्चाटन शब्द का अर्थ होगा मन का हटना, जैसे आपका मन किसी टॉफ़ी से हट जाये तो आपका टॉफ़ी से उच्चाटन होंना कहलायेगा। यह क्रिया ज़्यादातर तो स्वाभाविक रूप से मन खुद अपने हिसाब से करता रहता है।
पर कुछ बार तांत्रिक अपने षट्कर्म से उच्चाटन करके किसी को किसी स्थान, व्यक्ति, गुण या वस्तु आदि से अरुचित कर देते हैं। इस क्रिया से आप बड़ी-बड़ी मुश्किलों से बच सकते हैं और ख़ुशी से जीवन व्यतीत करने में मदद पा सकते हैं।
उच्चाटन का प्रयोग बहुत असरदार और दुर्लभ है अगर घर का कोई सदस्य किसी और सदस्य से रूठ जाये या वशीभूत हो जाये, अपने कैरियर की राह में रास्ते से अलग चल पड़े, बुरे लोगों के बीच फंस जाये, दारू, मांस और नशे आदि चीज़ों का आदि बन जाये तो उच्चाटन प्रयोग किया जा सकता है।
पति या पत्नी का किसी और से सम्बन्ध बनने को हो जाये , घर टूट जाये या घर का मान-सम्मान बिगड़ने लगे, प्रतिष्ठा पर आंच आये, देश के रीत-रिवाज़ टूटें और जेल आदि की नौबत आने को हो जाये, किसी के प्रति दूरी बनाने की ज़रुरत हो तो उच्चाटन सही कदम है।
बुरी हवा लगने पर या फिर किसी की कुंडली के बुरे ग्रहों के प्रकोप को तोरड़ना हो, या फिर किसी के घर में किसी ने रुपये-पैसे पर कब्ज़ा कर लिया हो तो उसे हटाने यह प्रयोग कारगर है।
जैसे वशीकरण होता है, उच्चाटन वैसा बिलकुल भी नहीं होता क्योंकि इसमें जिन शक्तियों का प्रयोग है वह वशीकरण आदि से ज़्यादा उग्र होती हैं। इसीलिए ज़्यादातर इनके आवाहन का तरीका सार्वजनिक या सामाजिक तौर पर नहीं बताया जाता।
आप मंगलवार या शनिवार के दिन भैरवजी के मंदिर जाएं और वहां पर चौमुखिया आंटे का दीपक जलाएं जिसकी लौ लाल रंग की बना लें, इसको ऐसा बनाने बनाने के लिए रोली का प्रयोग कर सकते हैं। शत्रु को मन में याद करें और सरसों दीपक में डाल दें।
फिर एक श्लोक २१ बार मन में बोलें और २१ बार उरद की दाल दीपक में डालते जाएं, वह श्लोक जो बोलना है है –
ध्यायेन्नीलाद्रिकान्तम शशिश्कलधरम मुण्डमालं महेशम्।
दिग्वस्त्रं पिंगकेशं डमरुमथ सृणिं खडगपाशाभयानि।।
नागं घण्टाकपालं करसरसिरुहै र्बिभ्रतं भीमद्रष्टम।
दिव्यकल्पम त्रिनेत्रं मणिमयविलसद किंकिणी नुपुराढ्यम।।
फिर उसके बाद एक चुटकी लाल सिन्दूर लेकर दीपक में ऐसे डालें जैसे क्षत्रु के मुंह में डाल रहे हों। अब मंत्र पढ़ते हुए एक लौंग लेकर पूरा मंत्र पढ़कर दीपक में डाल दें, क्षत्रु का नाम मन में याद रखें, लौंग का फूल ऊपर को रहे। फिर अगला लौंग डालें, ऐसे २१ बार डालें और २१ बार मंत्र पढ़ें। मंत्र है…
“ॐ ह्रीं भैरवाय वं वं वं ह्रां क्ष्रौं नमः”
यदि भैरव मन्दिर न हो तो शनि मन्दिर में भी ये प्रयोग कर सकते हैं।
फिर उस क्षत्रु से छुटकारा पाने के लिए प्रार्थना कर के मंदिर से चल दें।
इस तरह इसको करने में कई बार अड़चन आ सकती है। तब आप भैरों बाबा के मंदिर जाने के बजाय घर में ही दक्षिण दिशा की ओर मुख कर के पूजा कर सकते हैं। पूजा संपन्न करने के बाद, दीपक को लें और किसी सुनसान चौराहे पर रख आएं।
अगर कोई आपको चौराहे पर दीपक रखते देख ले तो वह विघ्नित पूजा मानी जाएगी और फिर से करना उचित रहेगा। यह दीपक रख के आने की क्रिया आप रात के १२ बजे ही करें न पहले न ज़्यादा बाद में।
घर चौराहे से बिना पीछे देखे आएं और असर कम होने पर यह कार्य पञ्च बार तक दो महीने के अंदर किया जा सकता है।
अगर क्षत्रु बहुत ज़्यादा परेशान करे और आपको सांस न लेने दे, आपका जीना दूभर कर दे तो आप यह पूरा बताया कार्य लाल बत्ती की बजाये दीपक में मदर के पेंड़ की कपास से बनायें और दीपक को शत्रु के द्वार पर रख आएं।
आप किसी भी महीने के कृष्णपक्ष की अष्टमी को या फिर अगर यह न हो पाए तो शनिवार को ११ बजे रात को स्नान कर लाल कपडे पहन लें , फिर दक्षिण दिशा में पूजा स्थान बनाएं जहाँ दुर्गा माता की प्रतिष्ठित मूर्ति या प्रतिमा हो और यन्त्र भी हो, फिर हाथ में जल लेकर अपनी परेशानी माता के समक्ष रखें और उसके बाद एक मूंगे की माला लें।
और इस माला से यह मंत्र ५१ बार जपें –
{{ ॐ दुँ दुर्गायै *अपना नाम* उच्चाटय उच्चाटय शीघ्रं सर्व शत्रु बाधा नाशय नाशय फट}}
यह कार्य दो दिन तक करें और फिर सारी सामग्री (यन्त्र, माला, प्रतिमा आदि ) को एक गड्ढे में गाड़ दें। असर अवश्य मिलेगा।
{ये केवल सामान्य जानकारी है।भूल से भी ये क्रिया बिना गुरु आज्ञा और बिना गुरु के साथ हुए न करे।बरना अपने नुकसान के आप स्वयं जिम्मेदार होंगे।}
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ज्योतिषाचार्य प्रदीप कुमार
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