अघोरपंथ कर्णपिसाचिनि साधना बिधि :
स्थान : तामसी बाताबरण का एकांत स्थल या शमशान या एकांत स्तित बट ब्रिख्य
बस्त्र : रक्तिम लाल या काला
आसन : लाल रक्तिम य काला कम्बल
माला : रुद्राक्ष ,लाल मुंगे की माला
सामग्री : काला कपडा, लकडी का पटरा, कांसे की थाली
तिथि : अमाबस्या या शुक्ल दितिया
पिये मंद की धार-लेओ भोगन आपना
करो ह्मारा साथ मेरी बातो का भेद नही बताओगी
तो कर्ण पिशाचिनी नहि कह्लाबेगी,मेरा कहा काटे तो
भैरो नाथ का चिमटा बाजे, अघोड की आन
निरोकार की दुहाइ, सत्य नाम आदेश गुरु का !”
यन्हा यह स्मरण रख्ना चाहिये कि जब तक नीरब शांति है, तभी तक जाप करना चाहिये,फिर मानसिक ध्यान मे रह्ना चहिये! सज्या साधना स्थान पर ही करनी चाहिये! आसन को ही सज्या बनाना और उसे उठाना नही एबं बन्ही आस-पास मल-मुत्र त्याग करना होता है !
इस साधना मे साधक को स्नान नही करना चाहिये! जुटे बर्तन मे ही सभि दिन भोजन करना !साधक को फलो एबं दुध आदि पर रह्ना चाहिये! स्थान बर्जित है और मंत्र जाप के समय निबस्त्र जाप करना चाहिये! पुर्नाहुति के बाद किसी कुबारी कन्या को भोजन करबाना चाहिये,जो रजस्वला नही हो !
पुर्नाहुति अनुस्ठान मे खीर, ख्याण्ड, पुरी,सराब (देसी), गुगुल, लौंग,इत्र, अंडे आदि का प्रयोग किया जाता है ! इसके बाद स्त्री के लाल बस्त्र एबं श्रुंगार सामग्रि अर्पित करनी चाहिये !
इस्मे दीपक 11 होते हैं और तेल चमेली का प्रयुक्त किया जाता है! उपयुक्त बिधिया मे नारी को भैरवी के रुप मे प्रयुक्त किया जाता है ! यन्हा प्रस्तुत करना कहना उचित नहि है,अपितु यह कहना चाहिये कि सह्योगिनी बनाया जाता है! उसके शरीर पर मुर्दे की कलम से सम्शान के कोयले मे सिंदुर एबं चमेली का तेल मिलाकर मंत्र लिखा जाता है !
इस साधिका को कर्णपिसचिनी मानकर साधक उसके साथ रति भी करता है, परंतु यह रति वैसे हि होता है जो आध्यत्मिक कुंड्लिनी मार्ग मे किया जाता है !
समान अर्थी अन्य साधनाये :
इस शक्ति के समान अन्य भी साध्नाये की जाती है! इसमे (1) कर्ण्मातन्गि (2) जुमा मेह्त्ररानी (3) बार्ताली आदि साधनाये है! इनकि बिधिया भी समान ही है! लिकिन मंत्र अलग-अलग हो जाते है!
ल्कीर का फकीर बनकर ग्यान और साधना मे सफलता मिल भी जाये, तो निरथक होती है! हम सभी साधको को बताना चाहते है कि ये सभी शक्तिया मानशिक शक्तिया है! इंनकी सिद्धि का एक ही सुत्र है ! मानशिक भाब को बिशष समीकरण मे गहन करना ! बिधि मे साधक अपने अनुसार परिबर्तन कर सक्ता है! प्राचिन बिधियो मे भी एक कर्ण पिशाचिनी साधना की ही दर्जनो बिधिया है! इस्लिये बिधियो क महत्व केबल समान भाब की बस्तुओ और क्रियाओ से है!
एक बिशेष बात मे यह बताना चाहाता हु कि जो भी साधको गनेशजी की, हाकिनी की या आज्ञाचक्र की सिद्धि कर लेता है, उसे इन शक्तियो को सिद्ध करने क जरुरत ही नही होती! बह बिना सिद्धि हि इन्हे बुला सक्ता है!
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ज्योतिषाचार्य प्रदीप कुमार
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