महाकाली कि सात्विक साधना :
डाकिनी को जगाना पड्ता है ,पर काली एक जाग्रत देवी है! ये सदा सक्रिय रह्ती है! इन्ही के कारण हमारे शरिर का बहरी आबरण (चर्म) बनता है और हममे प्रतिरोधक ख्यमता होती है! इन्ही के करन सभी आबेग बाहर की और प्रतिगमन करते है और इनही के कारण रक्त का निर्माण होता है! इस देवी के कारण ही संतानउत्पति से सम्बन्धित डिम्ब और सुक्राणु का निर्माण होता है !
कालीजी की उत्पति का मुख्य उर्जा बिंदु मुलाधार का नाभिक काम्कंकिणी का बिंदु है! यन्हा कालीजी बीज रुप होती है! इसे समझ्ने के लिये किस्सि गैस के बर्नर से निकल्ती फ्लमे को देखिये ! फ्लमे (ज्योति) मे एक बिंदु पर तो ताप होता हि नहि है !इस्के बाद इन लपटो मे तीन ब्रुत द्रुस्टिग्त होंगे !लाल,पीला और नीला !इसी प्रकार मुलाधार के नभिक से जो उर्जा निकल्ती है,बह बीच मे कामककिणी होती है !यह नाभिक के अंदेर का खेत्र है !इस्के बाहर के ब्रुत मे काली के कइ रुप होते है,इस्का बिबरण हमने मुलाधार के चित्र मे प्रारभ मे ही दिया है!
महाकाली के रुद्र रुप को देख्कर भयभीत न हो , न ही यह सम्झो कि इनकी क्रुपा की आवस्यक्ता केबल तांत्रिको को होति है ! इनके बिना किसि भी जीब-ज्न्तु क जीबन बना नही रहा सक्ता ! इस्के बिना कोइ अस्त्वित ,आकार और आधार की प्रप्ति न्हि कर सक्ता ! अत: कालीजी की सिध्हि सब्के लिये आब्श्यक है! बिशेषकर स्त्रियो के लिये,जिनमे रक्ताल्प्ता, कमरदर्द एब अस्थियो कि दुर्बलता होति है! संतान के सिम्ब बनने और सन्न्तान क आक्रुति को बनाने मे इसि शक्ति का हाथ होता है! आज स्थिति यह है कि स्त्रियो मे कालिजी कि शक्ति दुर्बल होती जा रही है,इस्की अपेख्या काम्काकिणी और भैरवजी की शक्ति बढ गयि है ! कालीजी की शक्ति के दुर्बल होने पर ये शक्तिया कल्याणकारी बनी न्ही रह सक्ती! इंनको सम्भाल्ने की शक्ति कालीजी मे ही है! वैसे भी स्त्रियो मे भैरवजी की शक्ति का बढ्ना किसी भी स्तिति मे कलायण्कारी नही है ! इससे क्ठोरता आती है और हड्डियाँ,नख एब् बाल कडे होते है, बंध्यापन आता है !
स्त्रियो को प्रति अमाबस्या की रात्रि मे कालीजी की साध्ना अबस्य करनी चाहिये !उससे पुर्ब कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष मे प्रतिपदा से अमाबस्या तक सिद्धि प्राप्त करनी चाहिये !
किसि हबादार एकंत कमरे मे कालीजी की सबा हाथ की मिटी की प्रतिमा (प्लास्टर, धातु आदि नहि ) को प्रतिप्दा को स्तापित करके सायकाल को पुजा-आर्चना करके (धूप-दीप,गुढह्ल के फूल, सिंदूर और रक्त चंदन से ) मांनशिक ध्यान से प्रतिमा पर ध्यान लगाकर निम्नलिखित मंत्र का 108 बार जाप करे !इसके बाद पूजन समाप्त करके ध्यान लगाकर प्रतिमा को देख्ते हुए निम्नलिखित मंत्र का जाप करे –“ऑम क्रं क्रां क्रीं क्रिं ह्रीं श्रीं फट् स्वहा !”
यह जाप अर्ध्ररात्रि तक करे ! अर्ध्ररात्रि मे रक्तचंदन और सिंदूर मे चंदन और हल्दि मिलाकर (पुरुष बबुल का गांद) मुलाधार के चक्र पर लगाये और इसी का तिलक भूकुटियो के मंध्य लगाकर रुद्राक्ष की माला लेकर प्रतिमा पर ध्यान लगाते हुए उपयुक्त बीज मंत्र का जाप 108 बार करे!
यह पुजा 108 दिन तक रात्रि मे करे! अर्धरात्रि मे करे! अर्धरात्रि मे सम्भब न हो तो 9 बजे रात के बाद करे!
मांनसिक भाब को एकाकार करके मुर्ति मे समाहित करके मंत्र जाप करने से 108 दिन मे कालीजी मुर्ति मे सजीब अनुभब होति है !इस समय इनसे मनचाहा बर मांगा जा सक्ता है !परन्तु यह सम्रण रखे कि कालीजी संतान, रक्त, चर्म, कांति,सुंन्दरता, कामशक्ति, कलह-झगडे मे बिजय, अचल सम्पति,मुक्दमे मे बिजय, मोहिनी शक्ति,बशिकरण शक्ति दे सक्ती है !इनसे इन्हि बिषयो के बर मांग्ने चाहिये !कालीजी से गाना गाने की ख्यमता या प्रेम भाब के बर मांगगे,तो बे लुप्त हो जायेगी !ये उन भाबो की देबी न्ही है! तंत्र साधना मे यह ध्यान रखने की आबश्क्ता है ! कोइ भी शक्ति सिद्ध होने पर अपने गुनो के अनुसार ही आपको बरदान दे सक्ति है !
इस सिद्ध के बाद प्रति अमाबस्या उप्युक्त मंत जाप करते रहना चाहिये !
यह बिधि स्ती-पुरुष दोनो के लिये है! बिशेषकर स्त्रीयो के लिये !ऊन स्त्रियो के लिये भी जो चमत्कारिक सिध्दिया चाह्ती है! इससे बे जिसे चाहे बश मे कर सक्ती है! कल्याण भी कर सक्ती है और मारण, उचाट्न, बिद्वेशण आदि कि क्रिया भी इसि सिद्धि से कर सक्ते हैं! लेकिन यह सब केबल अपनि सुरख्या के लिये हि करना चाहिये !
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ज्योतिषाचार्य प्रदीप कुमार
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