मंत्र : “ॐ काली,कंकाली महा-काली के पुत्र कंकाल-भैरुँ ! हुकुम हाजिर रहे! मेरा भेजा काल करे,मेरा भेजा रख्या करे! आन बांधू, बान बांधू, चलते-फिरते औसान बांधू, दसो सुर बांधू, नौ नाडी-बह्तर कोठा बांधू!फल मे भेजूं,फुल मे जाय !कोठे जो पडे, थर-थर कांपे,हल-हल हले, गिर-गिर पडे ! उठ-उठ भागे, बक-बक बके! मेरा भेजा सबा घडी, सबा पहर, सबा दिन, सबा मास, सबा बरस कू बाबला न करे, तो माता काली की सया पर पग धरे !बाचा चुके,तो उमा सुखे! बाचा छोड, कुबाचा करे, तो धोबी की नांद-चमार के कुण्ड में पडे! मेरा भेजा बाबला न करे, तो रुद्र के नेत्र की ज्वला कढे, शिर की लटा टुटि भूमि मे गिरे, माता पारबती के चीर पर चोट पडे! बिना हुकुम नहि मारना हो, तो काली के पुत्र कंकाल-भैरु !फुरो मंत्र-ईश्वर बाचा! सत्य नाम, आदेश गुरु का !”
बिधान- दीपाबली, कालरात्रि अथबा ग्रहणकाल में आटे का चौमुखा दीपक जलाकर, त्रिभुजाकार चौका लगाकर साधक को दक्षिण दिशा की और मुख करके आसन पर बैठना चाहिए !फिर पीले कनेर के पुष्प ,लड्डू बुंदि बाले, सिंदूर,लौंग का एक जोडा तथा पुष्प माला सामने रखकर,उक्त मंत्र की द्श माला (1000 जप) जपे !फिर एक माला अर्थात 108 मंत्रो से मंत्र के अंन्त मे “स्वाहा” लगाकर होम करे ! इस प्रकार मंत्र सिद्ध करने के उपरांन्त भगबान भैरब से अपने इछित कार्य की पूर्ति हेतु प्रार्थना करे तो अबश्य ही साधक की इछा पुर्ण होती है! प्रयोग से पुर्ब शरीर-रखा हेतु बिधान अबश्य ही कर ले!