महासुरख्या गणेश कबच मंत्र :
श्री गणेश श्री गणेश हे गणेश देबा ।
क्रूपा करो, रख्या करो,बिघ्न बाधा दूर करो।
शत्रु,घात,दोष,शूल,भूत-प्रेत अग्नि मूंल।
सभी का तुम शमन करो कील घेर बांधकर।
ओम नम: यं यं यं ब्रौं ब्रौं ब्रौं फट् स्वाहा ।
आक की जड,चिरचिटे की जड, नीम की जड, कनेर (सफेद या पीला) की जड और बेल की जड –
इन सबके सात-सात अंगुल के कील बनाकर (प्रत्येक की पांच) ब्रूहस्पतिबार को रात्रि में गणेशजी का ध्यान लगाकर 108 मंत्र जाप करें और घर के चारों और सात अंगुल गहरा नाला मिट्टी में खोदकर बराबर दूरी पर 21 कील एक के बाद दूसरे के क्रम में मंत्र पढते हुए बबूल की लकडी से ठोक दें। इन सबको तांबे के पतले तार से जोडकर मंत्र पढते हुए इनमें जल डालें प्रात:काल नाले की मिट्टी भर दें।
इस प्रकार सुरखित घर में भूत, प्रेत,बिघ्न,बाधा, रोग,शत्रु, किया कराया आदि का कोई प्रभाब नहिं होता।
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ज्योतिषाचार्य प्रदीप कुमार
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