अघोर क्रियागत कर्णपिशाचि मंत्र :
मंत्र : ओम ह्रीं कर्णपिशाचिनी अमोघ सत्यबादिनी मम कर्णे अबतर अबतर सत्यं कथय कथय अतीतानागत बर्तमान दर्शय दर्शय एं ह्रीं ह्रीं कर्णपिशाचिनी स्वाहा ।
कृष्णपक्ष की त्रयोदशी से अमाबस तक इसका प्रयोग है, परंन्तु कृष्ण त्रुतीया से ही नहाना- धोना, सन्ध्या बन्दन, मुख शोधन – सभि कर्म बंन्द करें , मल-मूत्र का सेबन करें। हर रात्रि में 13 तिथि से अमाबस्या तक सूर्योदय पूर्ब तक जप करें। यदि मल्मुत्र की शंका हो,तो नहिं करे। अपने शरीर पर मलमूत्र का लेपन करें। पिशाचि अमाबस्या को साधक के पास आयेगी। यदि पत्नी भाब के लिए कहेगी, भय दिखायेगी , उस समय साधक का बिबेक ही कार्य करे। इसके बाद शुक्लपक्ष की दशमी तक स्नान,मुख शोधन और ध्यानादि नहीं करे, एक ही उछिष्ट थाली में इस प्रकार 23 दिन तक भोजन करें। मलमूत्र को भोजन से पहले ही ग्रहण करें। शरीर की शुधि शुक्ल एकादशी से ही करें। शक्ति और गायत्री उपासना को जीबन में नहीं करें।
एक साधक ने इस प्रकार से इसकी सिद्धि की, परन्तु साधक को अपना भबिष्य मलीन क्रिया में रहने और उसकी स्त्री भाब में प्राप्त करने पर अछा नहीं लगता था, उसे जीबन से ग्लानि हो गयी।
To know more about Tantra & Astrological services, please feel free to Contact Us :
ज्योतिषाचार्य प्रदीप कुमार
सम्पर्क करे: मो. 9438741641 {Call / Whatsapp}
जय माँ कामाख्या