कर्णपिशाचिनी प्रयोग बिधि :
कर्णपिशाचिनी साधना ही बाममार्गी साधना है, जो आगे चलकर साधक का भबिष्य नष्ट कर देती है ।अंन्त मे साधक को शारीरिक ब्याधियां और दुर्गति प्राप्त होती है ।एसी बात नहीं है कि उससे मुक्ति कोसों दूर भागती है, कुछ प्रयोग सात्बिक भी हैं ।अभिमंत्रित भस्म और केसर का लेप कान में लगाने से बार्ता फल कहती है ।अघोर क्रिया बाले मल या मूत्र की भिगाई रुई कान में लगाते हैं ।चाहे समय ज्यादा लगे, परंन्तु प्रयोग सात्बिक हि करना चाहिए ।आपके परिबार से कर्णपिशाचि का कोई मोह नहीं होता, अत: किसी पारिबारिक दुर्घटना का कोई संकेत प्राप्त नहीं होता है ।
कर्णपिशाचिनी भुतकाल बार्ता सब कुछ सही बताती है ।आय के स्तोत्र में वृद्धि कर सकती है, परन्तु भबिष्य फल तो ज्योतिष द्वारा ही सही बैठता है।किसी बिशेष साधक का भूतकाल भी सही नहीं बताती।आप दुर्गास्पश्ती में से कबच का पाठ करने के बाद अपनी जेब में किसी बस्तु को रखें।पुन: कबच का पाठ करके पिशाचि साधक के पास जायें, तो बह उस बस्तु के बारे में बता नहीं पायेगा। में 5-7 कर्णपिशाची साधकों से मिला, परंन्तु कोई भी भबिष्य तो छोडो, भुतकाल भी नहीं बता पाया।पिशाचि बिशिष्ट साधक के सामने पूर्णरुप से न आने के कारण केबल अपने साधक को दुर से ही बार्ता संकेत देती है।उसे पूर्णरुप से सम्झने मे असखम होने के कारण उसका फलित गलत हो जाता है।
यह विद्या शक्ति उपासक ब दुर्गापाठी को आसानी से सिद्ध नहीं होती। कई कर्णपिशाचिनी बर मांगती है की “मुझे तुम किस रुप में चाहते हो – मां, पुत्री, बहिन, स्त्री या सखी।“ आप इसमें से जिस रुप को स्बीकार करोगे, उस स्त्री की परिबार में हानि हो जायेगी। यदि मां रुप में माना, तो मां की हानि हो जायेगी। कभी-कभी यह बिशेष लाबण्य रुप को ग्रहण करती है, अत: मां, बहिन आदि रुप में मानते-मानते पत्नी भाब को प्राप्त करने की इछा होने लगती है।एसी स्थिति में साधक का पतन हो जाता है।
कर्णपिशाची जितनी शीघ्र आयेगी, उतनी ही शक्ति काम होगि। कर्णपिशाची मंत्र में बिनियोग में “पिप्पलाद ऋषि” का उल्लेख आता है, अत: उनके सामने बिशिष्ट शक्तिशाली पिशाचि ही प्रकट हुई होगी ।एक बिशिष्ट प्रयोग साधकों के हित के लिए ही लिख रहा हुं।
1. मंत्र – ओम नमो भगबती कर्णपिशाचिनी देबि अग्रे छागेश्वेरि सत्यबादिनी सत्यं दर्शय दर्शय शिब प्रसन्नमुद्रा ब्यतर्याकोपिनभर्त मम कर्णो कथय कथय हरये नम: ।
यह मंत्र एक सिद्ध महात्मा ने एक मित्र को दिया थे, जो बगलामुखी का प्रयोग करता था।इसका प्रयोग उसने रात्रि में मंत्र को जांचने के लिए धूप दीपादि द्वारा किया। कर्णपिशाचिनी ने उसे 10बें दिन एक निशिचित जगह पर आने को कहा ।बहाँ प्रकट होकर बर मांगने को कहा, तो उसने इनकार कर दिया और कहा कि “मेंने इसका प्रयोग केबल मंत्र सिद्धि जानने के लिए किया था।“ उसका कोप 3-4 दिन तक रहा, पर बह उसका कोई अनिष्ट नहीं सकी। जब मुहे तंत्र में रुचि हुई, तो इसका प्रयोग करके देखा। रोजाना 11 माला करने पर मुझे स्वप्न में ज्योतिष और सामुद्रिकशास्त्र का ज्ञान करबाती। इस प्रयोग को 5-7 दिन बाद बन्द कर दिया।मैंने एक बार दोबारा प्रयोग करके देखा, तो चित्र की जगह दुर्गासप्शती की पुस्तक में जो चित्र था,उस पृष्ठ को खोलकर रख लिया। मुझसे बह पुस्तक 3 दिन तक एकदम दूर खिसक गयी। मैं पुस्तक के चलायमान होने से समझ गया कि मंत्र सही है।परन्तु मैं इस बिद्या के पीछे नहीं पडा, दश महाबिद्याओं में ही मेरी रुचि रही।
एसा कहा जाता है कि पिशाचि 10000 मंत्र से ही सिद्ध हो जाती है, परन्तु यदि कभि प्रयोग बन्द कर दिया, तो पुन: दुगने मंत्र जाप करने पर ही सिद्ध होगी, यदि फिर छोड दिया, तो 40000 पर सिद्ध होगी।
{ आगे कुछ एसे अमोघ कर्णपिशाचिनि मंत्र की साथ बिधि पर जल्द आपके सामने लाया जायेगा}
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ज्योतिषाचार्य प्रदीप कुमार
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जय माँ कामाख्या