कर्णपिशाचिनी बार्ताली मंत्र प्रयोग :
मंत्र: ओम ह्रीं श्रीं क्लीं न्रुं ठं ठं नमो देबपुत्रि स्वर्गनिबासनि सर्बनर नारी मुखबार्तालि बार्ता कथय सप्तसमुद्रान्दर्श्य दर्श्य ओम ह्रीं श्रीं क्लीं नीं ठं ठं हुं फट् स्वाहा । ( इति सप्त पंचशख्यरो मंत्र)
अस्य बिधानम : दो जंगली बराह के दंन्त एबं शेल का शुल लाकर उसके उपर एक लाख बतीस हज़ार जप करें, तो सिद्ध हो। पीछे नित्य ही जप करता रहे, तो साधक के प्रश्न का उत्तर कान में कहती है, रोली का तिलक नहीं करे, रोली का तिलक करने से सिद्धि नष्ट हो जाती है। एक महात्मा की क्रूपा से यह मंत्र मिला था ,उस महात्मा को इस मंत्र की पुर्णसिद्धि थी, इसी के प्रभाब से भूत, भबिष्य और बर्तमान तीनों काल की बार्ता बहुत अछी तरह कह देते थे।
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ज्योतिषाचार्य प्रदीप कुमार
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जय माँ कामाख्या