स्वयं सिद्ध कर्णपिशाचिनी साधना :
कर्णपिशाचिनी के नाम से कौन सा साधक परिचित नही है।इस पिशाचिनी के नाम से कितने धारावाहिक बन चुके है।पिशाचिनी आपार धन दौलत के साथ साथ शोहरत दिलाने मे मशहूर है।आज तक जितने भी सिद्ध ,साधकों ने कर्ण पिशाचिनी साधना कि है वह असफल नही हुए है।
इसके एक कारण है कर्णपिशाचिनी का जितने भी मंत्र है वह स्वयं सिद्ध है।इसको सिर्फ जाप करके जागृत करना होता है।जिस तरह भुत प्रेत हमको वचन देने पर वह हमारे गुलाम बन जाते है ।साधक जो आदेश देता उसको पूर्ण कारना ही उनको पडता है,क्यो की साधक के वह गुलाम है।कर्ण पिशाचिनी साधना अवशय करे और इसका लाभ उठाए किन्तु खुद कर्णपिशाचिनी का मालिक बन कर। साधना पुर्ण होने पर जब कर्णपिशाचिनी आपके हाथ पर आपना हाथ रख कर तीन वचन ले तो आप हाँ कर दिजिए।इसके बाद आप वचन मांगना न भुले। आपको बोलना है मे आप से कुछ मांगना चाहता हु, वह बोलेगी माँगो किया मांगना चाहते हो।आपको कहना है वचन दो, जब वो वचन दे तव मांगे।
प्रथम वारदान- मेँ जब भी तुमसे कुछ माँगु वह ईच्छा तुरन्त पुरी कर देना।
दुसरा वारदान- मेरे मर्जी के बिना खुद कुछ भी नही करोगी।
तीसरा वरदान- जब मेँ तुमहैं प्रकट होने के लिए पुकारु तुम तुरन्त मेरे सामने प्रकट हो जाना।इस तरह के वचन मांग ले।
साधना विधि- ग्यारह दिन की साधना है।धुप दीप गुगल जगा ले।फल फुल दे कर पुजन करे।स्वच्छ कपड़े पहन कर पुर्व मुख वैठ कर साधना करे। साधना शुक्रवार से आरंभ करना है।
मंत्र- ” ॐनमः कर्णपिशाचिनी आगच्छ आगच्छ महासुर पुजिते कटु कटु शमशानवासिनी उडडामरेश्वर आज्ञापयति स्वाहा॥” {{ग्यारह माला प्रतिदिन जाप करे }}
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ज्योतिषाचार्य प्रदीप कुमार
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जय माँ कामाख्या