श्री सौहाबीर की साधना सिद्धि :
सोइचक्र की बाबडी डाल मोतियन की हार।
पदम नियानी नीकरी लंका करे निहार।
लंका सो कोट समुद्र सी खाई।
चले चौकी हनुमन्त बीर की दुहाई।
कौन-कौन बीर-चले मरहदाना बीर चले।
सबा हाथ जमीन को सोखन्त करना।
जल का सोखत करना, पय को सोखन्त करना।
पबन को सोखन्त करना,लाग को सोखन्त करना।
चुडी को सोखन्त करना पलना को भूत को।
पलीत को अपने बैरि को सोखन्त करना।
मेबत उपात भक्ति चंद्र कले नहीं चलती पबन मदन।
सुतल करे। माता का पिया दूध हराम करें।
श्व्द सांचा पिण्ड काचा फुरो मंत्र ईश्वरो बाचा।।
इस साधना को अर्धरात्रि में किया जाता है।यह गुरुबार की रात्रि में 12 बजे उपरान्त शुरु करनी पडती है। साधक किसी एकान्त स्थान में अपना आसन लगाकर पूर्ब या पशिचम की और अपना मुख करके बैठ जाये तथा अपने सामने दीपक , अगरबती, लोबान का धुपादि जलाबें और अपनी सुरख्या के लिये जल या चाकु से रख्या मंत्र जपते हुऐ, घेरा खींच ले। फिर उपरोक्त मंत्र का जप आरम्भ करे। माला स्फटिक या बिद्दुत की लेबें और प्रतिदिन एक माला जप करे। इसी भांति 41 दिन साधना करे तो सौहाबीर साधक को दर्शन देकर कामना पूर्ति का बर देता है और सभी इछाओं की पूर्ति हो जाता है। योग्य गुरु की जानकारी में करें तो अबश्य प्रत्यख्य दर्शन होते है। लेकिन साधना बिधि-बिधान सहित की जानी चाहिये। यह बीर सामने प्रत्यख्य होबे तब उसे बिशेष नैबेद्यदि से प्रसन्न करके अपने कार्यो का पूर्ण करने के लिये जाता है। जिससे जब साधक पर संकट आये तो रख्या करे और कार्यो की पूर्ती करे। इसलिये साधक यह प्रयोग करते हैं।
ज्योतिषाचार्य प्रदीप कुमार
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जय माँ कामाख्या