ओम ताड हाँके नीम हाँके। ताल-तलैया जीब हाँके।।
कुता हाँके, हाथी हाँके। सुरज हाँके बाती हाँके।।
भूत हाँके प्रेत हाँके। डाकिनी-शाकीनी हाँके।।
चुडैल हाँके भूतनी हाँके। हाँके तु हबा आग।।
अला हाँके बला हाँके। सबकी तु हाँके भाग।।
तारी हाँके चांद हाँके। सकल जहाँन् हाँके।।
जय जय हकिणि मां भगबती ओम भ्रौं भ्रौं भ्रौं फट् स्वाहा।।
यह सिद्धि चमत्कारी प्रभाब दिखाती है अर्थात् इसका प्रयोग सिद्ध होने के उपरान्त किसी कार्य के लिये प्रयोग किया जाता है उस कार्य को पूर्ण होना ही पडता है और उसका शीघ्र पुर्ण होना पडता है। यह भी उग्र देबियों में आती है। यह देबी स्वयं रुद्र शक्ति कहलाती है। यह साधना सम्पन्न करने बाले साधक की सभी मनोकामना पुर्ण होती है और समस्त कार्यो मे लाभ मिलता है। इस साधना को साधक किसी भी शुभ मुहूर्त में रबिबार या मंगलबार की रात्रि में चौथे पहर में सुरु करे।
सर्बप्रथम पबित्र होकर लाल या काले बस्त्र धारण कर ले तथा किसी एकान्त में आसन लगाबें उस पर बस्त्र बिछाबें (आसन ऊनी कम्बल का लेबें) और पूर्ब या दखिण में अपना मुख रखें और अपने सम्मुख एक तिली के तेल का दीपक जलाबे और पानी का कलश रखे। गुगुल, लोबान,धूप-अगरबती जलाबे। फिर गणेश स्मरण करले और गुरु स्मरण ब मंत्र का पाठ करे ( गुरु मंत्र का जप ) इसके उपरान्त शिब-शक्ति का स्मरण करके ध्यान लगाबे फिर उपरोक्त मंत्र को जपना आरम्भ करे। साधक अपना ध्यान केन्द्रित करते हुये जाप करे तथा दीपक की ज्योति पर ध्यान लगाये और प्रतिदिन एकमाला जप करे । इसी प्रकार 41दिन ये साधना करे तो सिद्धि प्राप्त होती है और देबी हाकिनी , साधक की कामना पुर्ण करती है।
ज्योतिषाचार्य प्रदीप कुमार
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जय माँ कामाख्या