(मारण मूठ उचाटन एबं अभिचार ब पर मंत्र, तंत्र निबारण ओर काट करने का तंत्र प्रयोग)
इस प्रयोग को करने से पहले साधकों, श्मशान की मेलडी माता की सिद्धि करना अति आबश्यक है। तभी साधक यह प्रयोग कर सकता है अन्यथा प्राण संकट मे पड जायेगा। यह प्रयोग पर यंत्र मंत्र तंत्र एबं अभिचार प्रयोग को काटने और उसे पुन: भेजने के लिये किया जाता है। साधारण साधक यह प्रयोग न करे अर्थात् जिस ब्यक्ति ने गुरु से शिख्या ब दीख्या प्राप्त नहीं की हो और उंच कोटि की सिद्धि न की हो उस ब्यक्ति के ऊपर जो भी शक्ति होगी, प्रयोग करने बाले साधक का नुकसान कर सकती है तथा रोगी की जानभी खतरे में पड जाती है। ऐसे प्रयोग बडी साबधानी से किये जाते हैं। अन्यथा बुरी शक्तियाँ जो रोगि के शरीर में घर करके बैठी हुई होगी बे जाते जाते रोगी की जान भी ले सकती हैं। क्योंकी मैली बिद्या के द्वारा भेजी गई मृत आत्मा या श्मशान की कोई भी तामसिक शक्ति एकबार जिस ब्यक्ति के पीछे भेजी जाती है। उसको अगर तुरन्त ही नहीं हटाया गया तो अधिक समय बीत जाने के उपरान्त उस रोगी से पीछा छुडबाना कठिन होता है। फिर पूरी तरह से उसका असर समाप्त करना बहुत ही कठिन होता है। यह कभी कभी रोगी की जीबन लीला ही समाप्त कर देती है। ऐसे प्रयोग साबर बिद्या एबं बराटी बिद्या के मंत्रों से बीरों की सिद्धि के द्वारा भी ओझा लोग और अन्य न करें।
साधक ये प्रयोग करते हैं। लेकिन मैंने इस प्रकार के अभिचार प्रयोग करने बालों की कहानियां एबं घटनायें अपने आखों से भी देखा है, उनका पूरा परिबार ही बिनाश को प्राप्त होता है। इसमे प्रयोगकर्ता और सामने बाला साध्य ब्यक्ति दोनों ही बरबाद हो जाते है और समय रहते उसका प्रबन्ध नहीं किया तो दोनों ही पख्य बिनाश को प्राप्त हो जाते हैं। ऐसा अनेक लोगों के साथ हो चुका है।इसलिये मैं आप से प्रार्थना करता हुं कि आप अभिचार एबं मारण या अन्य कोई भी ऐसे प्रयोग न करें, नहीं तो आपका भी नुकसान होगा और बाद में आप स्वयं उसका हल नहीं निकाल पायेंगे और सारी आयु कष्ट ब दु:ख में बीतेगी तथा कोई समाधान नहीं हो सकेगा यह ध्यान रखें।
तंत्र बिद्या दो धारी तलबार के समान ही है जो दोनों भागों को काटती है अर्थात् आते भी कातेगी और जाते भी काटेगी। यह बिल्कुल सत्य है। मेरे जीबन में मैंने ऐसे कई दु:खी और बेबस लोग देखें है जो खुद के किये पर स्वयं ही पछ्ताते हैं। लेकिन एक बार मुख मे से श्वद निकलने के बाद पुन: कभी भी मुख में प्रबेश नहीं करबाया जा सकता है। यह ध्यान रखें। मैं आपको यह बात कोई टाईम पास के लिये नहीं बता रहा। कृपया इसे समझने की कोशिश करें। अब प्रयोग बिधि इस प्रकार –
एक कोरा मिट्टी का बर्तन लें उसके अन्दर पांच तिलक कुम्कुम से करें। सात तिलक तेल और सिन्दुर से करे। एक छोटा सा त्रिशुल भी बनाबें सिन्दुर से फिर उसमें आटे का या मिट्टी का चौमुखा दीपक जलाबें। फिर उसमें मेलडी धूप, बतीसा धूप, कपूर, लौबान, कलेजी बकरे की, एक निम्बू, एक छोटे कटोरे में देशी शराब, पांच अगरबती जलाकर अन्दर रखें एक सुखा नारियल रखें। सबा मुठ्ठी काले उडद रखें। एक इत्र शीशी रखें तथा इसके ऊपर चुटकी भर सिन्दुर छिडक दें और एक चुटकी कुम्कुम। फिर सबा किलों बाकला और पाब तेल की सुखडी, पाब देशी घी की सुखडी बनाकर एक थैली में साथ में रख लें। अगर ये प्रयोग किसी स्त्री के लिये कर रहे हो तो उसमें सुहाग की नौ प्रकार की बस्तुऐं अबश्य रखें। लेकिन आप यह प्रयोग पुरूष के लिये कर रहे हों तो यह सुहाग की बस्तु न रखें। अब साधक रोगी को किसी चढाई पर बैठा लें। फिर मेलडी मंत्र का जाप करते हुए सात बार रोगी के ऊपर से उतार कर सात कदम रोगी से दूर चले जाएं फिर जो थैली में सबा किलो बाकला और सुखडी आदि रखा था उसें भी साथ लेकर किसी चार रास्ते पर या एकान्त बंजर स्थान में रख दें। बहाँ रखने के बाद बर्तन में रखे धूप नारियल को जलाबें और चाकू से उस बर्तन के चारों और जमीन पर गोल घेरा निकालकर घर आ जायें।
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ज्योतिषाचार्य प्रदीप कुमार
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जय माँ कामाख्या