रुपोज्जबला अप्सरा साधना :
रुपोज्जबला का नाम सुनते ही आभास हो जाता है कि यह रूप की उज्जबल देबी है। अनूठे और अदिव्तीय सौन्दर्य की स्वामिनी है रूपोज्जबला अप्सरा। इसका रुप देखकर ऋषि मुनि भी असहज हो जाते हैं। इसके प्रत्यख्य होने पर साधक सौन्दर्य की उज्जबला से स्तंभित रह जाते हैं और बचन लेना तक भूल जाते हैं।
इस अप्सरा की साधना निरन्तर तीन शुक्रबार तक करनी चाहिए। इसकी साधना रात्रि ११ बजे के बाद ही आरम्भ करें। रबिपुष्य नख्यत्र योग भी इस हेतु बिशेष फलदायी है। रात्रि में स्नान करके आकर्षक बस्त्र धारण करके, पहले ही धूप दीप जला दें। गुलाब की माला, साबुत सुपारी ब भोग हेतु मेबा लें। चौकी पर गुलाबी बस्त्र बिछाकर इसका यंत्र स्थापित करें। फिर चाबल बिछाकर उस पर गणेश स्वरूप सुपारी रख दें। गण्पति पूजन और यंत्र पूजन बिधि पूर्बक करें। मेबे का भोग लगा दें। जल से संकल्प लें ब साधना का उद्देश्य मुख से उचारित करें।
उतर की और मुख करके आसन पर बिराजमान होकर स्फटिक माला से इस मंत्र का जाप आरम्भ करें-
ॐ ह्रीं रूपोज्जबला बशमानय ह्रीं फट्।।
११ माला जप के पशचात् माला को गले में धारण कर लें, किसी अन्य को न दें। पूर्ण श्रद्धा से तीन शुक्रबार तक साधना करने से सफलता अबश्य मिलती है। अप्सरा के प्रत्यख्य होने पर ख्यणिक स्पर्श का आभास होगा, अत: बोधपूर्बक साधक अप्सरा से बरदान प्राप्त करें।
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ज्योतिषाचार्य प्रदीप कुमार
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जय माँ कामाख्या