सौन्द्रर्योतमा अप्सरा साधना :
बिना सौन्दर्य के जीबन अधुरा है, जिसके जीबन में सौन्द्रर्य होता है, उसी के जीबन में उत्साह होता है। सौन्दर्य मात्र दैहिक न होकर आत्मिक भी होता है। आत्मिक सौन्दर्य से परिपूर्ण ब्यक्ति की आंखे साधना काल में प्रेमपूर्ण अश्रु से छ्लक पडती है। इन दोनों प्रकार के सौन्दर्य से परिपूर्ण है सौन्दर्योतमा अप्सरा। कहा भी गया है –सत्यं शिबं सुन्दरं – अर्थात् सत्य ही शिब है, शिब ही सुन्दर है। ऐसा ही सौन्दर्य, शक्ति और सत्य का समन्वय है सौन्दर्योतमा अप्सरा। इस अप्सरा की साधना ब्यक्ति को सौन्दर्य के साथ साथ शक्ति और सत्य के साख्यात्कार की अनुभूति भी कराती है। इसकी साधना से ब्यक्ति को शक्ति ब सौन्दर्य का अभाब नहीं रहता।
यह साधना अधिकांशत: स्त्रियों द्वारा की जाती है। इस साधना में सौन्दर्योतमा यंत्र, सौन्दर्य माला का प्रयोग किया जाता है। यह साधना किसी भी शुभ योग में शुरु की जा सकती है। यंत्र का पूजन केसर, अख्यत ब पुष्प से करें। लाल रंग के बस्त्र पर कुमकुम से “क्रीं” लिखकर यंत्र को स्थापित करें। निम्नलिखित मंत्र का ५ माला जप करें –
ॐ क्रीं कृष्णाय सौन्दर्याय क्रीं ॐ नम: ।।
मंत्र जाप सम्पूर्ण होने पर यंत्र को पुरे शरीर से स्पर्श करा लें। पांच दिबस निरन्तर यह साधना करें। छठे दिबस यंत्र, माला ब सामग्री को नदी में प्रबाहित करें। इस प्रकार छ्ठे दिन से साधना का प्रभाब अनुभब होने लगेगा। अप्सरा प्रत्यख्य होकर भी दर्शन ब बरदान दे सकती है।
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ज्योतिषाचार्य प्रदीप कुमार
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जय माँ कामाख्या