देबराज इन्द्र को जब किसी ऋषि की तपस्या भंग करनी होती है, तो सर्बप्रथम बह इसी भूषणि अप्सरा का प्रयोग करते हैं। यह अतीब सुन्दरी होने के साथ अत्यन्त बुद्धिमान भी है। साधक इसकी साधना से अद्भुत ज्ञान भी प्राप्त कर सकते हैं।
इस अप्सरा की साधना बिधि इस प्रकार है, सर्बप्रथम भोजपत्र पर कुमकुम से छबि बनाकर किसी भी माह की प्रतिपदा से पूर्णिमा तक प्रतिदिन ८००० बार जप करें। फिर पूर्णिमा के दिन महापूजा करके रात्रि को जप प्रारम्भ करें, तब मध्य रात्रि भूषणि अप्सरा प्रत्यख्य होती है।
यह अप्सरा मोती, हीरे, जबाहरात, औषधि, रस, रसायन और इछित भोज्य पदार्थ प्रदान करती है। ये अप्सरा साधक के जीबन को भोग और बैभब से पूर्ण कर देती है। इसका मंत्र इस प्रकार है-
।। ॐ बा: श्रीं बा: श्री भूषणि आगछगछ स्वाहा ।।
यदि स्त्रियां भी इस अप्सरा की साधना करती हैं, तो उन्हें बाकपटुता आकर्षण, प्रभाबी ब्यक्तित्व की प्राप्ति होती है। मंत्र को बिधिपूर्बक शुद्ध उचारण से जपने पर सिद्धि अबश्य प्राप्त होती है।
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ज्योतिषाचार्य प्रदीप कुमार
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जय माँ कामाख्या