स्वर्ण परी साधना अत्यंन्त प्राच्य बिद्या है। यह परी प्रसन्न होने पर साधक को स्वर्ण मुद्रायें प्रदान करती है। सभी प्रकार की भौतिक समृद्धि देने में यह परी समर्थ है। स्वर्ण की आकांख्या रखने बाले सभी साधक इसकी साधना करते हैं। परियों से सम्पर्क साधने के लिये प्राचीन काल में कुछ बिचित्र बिधियां भी थीं, जो अब लुप्त हो गई हैं।यह परी प्रसन्न होने पर साधक को अलौकिक यौबन का आनन्द भी देती है। साधना की बिधि इस प्रकार है-
सामग्री : गुलाब पुष्प, चमेली इत्र, आठ गोमती चक्र, आठ सुपारी, लौंग, बताशे, काले तिल, सफेद बस्त्र, सफेद आसन, हकीक की माला।
बिधि : इस साधना हेतु ४१ दिन तक निरन्तर मंत्र जाप करना है। साधना कख्य एकान्त में हो, जहाँ किसी अन्य ब्यक्ति का प्रबेश निषिद्ध हो। शुक्ल पख्य के शुक्रबार को उपबास रखे, सूर्यास्त के पश्चात् मात्र खीर ग्रहण करे। रात्रि में स्नान करके साधना शुरू करें। कख्य में गुलाब की पंखुडियां बिखेर दें। स्वयं की देह पर चमेली का इत्र लगा लें। लकडी की चौकी पर किसी अत्यंन्त सुन्दर स्त्री का चित्र रख लें। इसके चारों और गोमती चक्र रख दें। आठों सुपारी ब अन्य सामग्री भी चित्र के समख्य चढायें। आसन पर उत्तर दिशा की और मुख करके बैठें। हकीक की माला से प्रत्येक रात्रि १०१ माला मंत्र जाप करें। जप के पश्चात् बहीं भूमि पर सो जायें। प्रतिदिन सायंकाल में खीर अबश्य खायें।
मंत्र : अर्हीना अरीना सरीना सफरीना अकबिफा सदा सदुनी कामिनी पदभाबी ब्श्यं कुरू कुरू नम: ।।
उपरोक्त मंत्र का जाप शुरू करने से पूर्ब सुरख्या घेरा अबश्य बना लें। पूरे ४१ दिन तक ब्रह्मचारी रहकर उपरोक्त मंत्र का बिधि पूर्बक जाप करें। स्वर्ण परी साधक को प्रत्यख्य होकर स्वर्ण मुद्रा प्रदान करती है, तभी उससे मनचाहा बचन प्रप्त कर लें।
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ज्योतिषाचार्य प्रदीप कुमार
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जय माँ कामाख्या