भगबान महेश योगी से कहा कि, हे शिबगिरि मैं तुझ से अब जगत के प्राणियो को मोहित करके अपने आधीन कर लेने बाले सम्मोहन के तांत्रिक प्रयोग कहता हुं। इन प्रयोगों को साधकर तू जगत के प्राणि मात्र को बश में कर सकता है। ये मोहन प्रयोग संखेप में इस प्रकार हैं-
अब मोहन प्रयोग को कहता हुं ; जिससे मनुष्यों को तत्काल सिद्धि होती है। हे योगिराज। साबधान होकर सुनो।
सहदेबी के रस में तुलसी के बीज पीसे। रबिबार के दिन जो इस पिष्टि का तिलक लगाबे, बह सब संसार को मोहित कर ले।
हरताल, असगन्ध और गोरोचन केले के रस में पीसकर तिलक करे, तो संसार को मोहित कर ले।
काकडासिंगी ,चन्दन कूट और बच इनकी धूप मुख और कपडों में देने से सब प्राणियों को मोहित कर ले।
मैनसिल और कपूर को केले के रस में पीसकर तिलक करे तो साधक संसार भर के मनुष्यों को मोहित कर ले। मेरा यह कहना सत्य है।
सिन्दुर, केसर और गोरोचन को आंबले के रस में पीसकर तिलक करे, तो संसार को मोहित कर ले।
गूलर के फूल की बती बनाकर और उसमें मकखन लगाकर उसे जलाबे। उसका काजल बना ले इस काजल को लगाने से साधक संसार को मोहित कर लेता है।
सफेद आक की जड और सफेद चन्दन इन दोनों को घिसकर बनाई गयी पिष्टि का तिलक मस्तक में करने से साधक संसार को मोहित कर लेता है।
बिजया, बच तथा श्वेत सरसों इन को भली प्रकार पीसकर पिष्टि बनाए। इस पिष्टि का देह में अबटन करने से साधक संसार को मोहित कर सकता है।
मंत्र : “ॐ रक्तचामुण्डे सर्बजनान् मोहय मोहय मम बश्यं कुरू कुरू स्वाहा।”
उपरोकत मंत्र को गुरू द्वरा बताए गये बिधान से बिधिपूर्बक सबा लाख जपने से साधक को सम्मोहन क्रिया में सिद्धि प्राप्त होती है।
ध्यान दें : मोहन प्रयोग करके साधक भगबान त्र्यम्बक की कृपा से किसी को भी बश में कर सकता है। किन्तु ब्यक्तिगत स्वार्थ के लिए इन प्रयोगों को जब चाहे प्रयोग नहीं करना चाहिए और न ही इन प्रयोगों द्वारा अधीन किए गए ब्यक्ति से कोई लोक बिरूध हित ही साधना चाहिए। दुरुपयोग करने पर ये प्रयोग तो निष्फ्ल होते ही है, साधक को भी पाप का भागी बनाकर नष्ट कर सकते है। अत: प्रयोगों के प्रति साबधानी रखनी चाहिए।
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ज्योतिषाचार्य प्रदीप कुमार
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जय माँ कामाख्या