मारण एबं मोहन प्रयोगों के उपरान्त भगबान त्र्यम्बक ने योगी शिबगिरि को स्तम्भन प्रयोगों का उपदेश दिया।स्तम्भ का अर्थ है – खम्भा, अर्थात् इन स्तम्भन प्रयोगों द्वारा किसी भी प्राणी की गतिशीलता समाप्त करके उसे जहाँ का तहां जडबत् किया जा सकता है। स्तम्भन प्रयोग प्राय: आक्रमण या प्रहार करने बाले प्राणी को तत्काल रोकने के लिए किये जाते है। भगबान त्र्यम्बक द्वारा अपदेशित स्तम्भन प्रयोग इस प्रकार है —
ईश्वर बोले – अब स्तम्भन प्रयोग कहता हूँ, जिसके साधन से ही सिद्धि मुट्ठी में आ जाती है।
घीगुबार का गूदा और तेल मिलाकर शरीर में लगाने से शरीर आंच से जलता नहीं है। अग्नि का स्तम्भन हो जाता है।
केले का रस, घीगुबार का गूदा और आक का दूध इनके लगाने से अगनि स्तम्भन होता है।
घीगुबार के गूदे का लेप करने से कोई बस्तु जलती नहीं है। मेरा कहना मिथ्या नहीं है। यह अग्नि स्तम्भन योग है ।
मंत्र :”ॐ नमो अग्निरूपाय मम शरीर सम्भनं कुरु कुरु स्वाहा।”
इस मंत्र को एक लाख जपने से सिद्धि होती है। मंत्र को गुरु द्वारा निर्देशित बिधि बिधान के साथ साबधानी पूर्बक प्रयोग में लाना चाहिए।
आदमी की खोपडी में मिट्टी भरकर उसमें सफेद गुंजा के बीज बोए। फिर उसे गाय के दूध से सींचने से गुंजा की सुन्दर बेल उगेगी। यह लता जिसके शरीर पर डाल दी जाएगी उसका आसनस्तम्भन हो जाएगा। जिसका नाम लेकर मुर्दे पर चिता की अग्नि में न्नो से होम करे उसका भी आसन स्तम्भन हो जाएगा।
मंत्र : ॐ नमो दिगम्बराय अमुकस्यासनं स्तम्भय स्तम्भय फट् स्वाहा ।
इस मंत्र को एक लाख जपने से साधक को स्तम्भन कार्य में सिद्धि होगी। मंत्र को गुरु निर्देशित बिधि बिधान से प्रयोग में लाना चाहिए।
भांगरा, अपामार्ग, सरसों, सहदेबी, कंकोल, बच और सफेद आक की जड इनका सत निकाले। इस सत को लोहे का बर्तन में रखकर तीन दिन तक घोटे। फिर मस्तक पर इसका तिलक कर ले। जो उसे देखे उसकी बुद्धि नष्ट हो जाए।
उल्लु या बानर की बिष्ठा होशियारी से पान में रखकर जिसे खिलाबे उसकी बुद्धि का स्तम्भन हो जाए।
मंत्र : ॐ नमो भगबते नृसिंहाय अमुकस्य बुद्धिस्तम्भनं कुरु कुरु फट् स्वाहा।
इस मंत्र को सबा लाख जपने से सिद्धि होगी। मंत्र में अमुक के स्थान पर उस ब्यक्ति का नाम लें जिस का स्तम्भन करना हो। मंत्र का गुरु के निर्देशन में साबधानीपूर्बक जाप करें।
रबिबार के दिन पुष्य नक्ष्यत्र में अपामार्ग की जड लाकर उसे घिसे और अपने शरीर में लेप करे तो शस्त्रों का कुछ असर न होबे।
चिता के कोयले से मिट्टी के बर्तन में शत्रु के नाम के साथ मंत्र लिखकर उसे जल से भरी हुई कुंडी में डाल दे। और ऊपर से शिला से ढक दे तो सेना का स्तम्भन हो जाता है, जिसके सब और ऊट की हड्डी गाड दे उस पशु का स्तम्भन हो जाता है।
रजस्वला स्त्री की योनि के बस्त्र पर गोरोचन से मनुष्य की तस्वीर बनाये और फिर जिसका नाम लेकर उसे घडे में गिरा दे तो उस मनुष्य का स्तम्भन हो जाता है।
ईटों का सम्पुट बनाकर उसमें चिता की राख से बादलों की तस्वीर बनाबे और फिर उसे धरती में गाड दे तो मेघों का स्तम्भन होता है।
शहद में पीसकर कंटकारी की जड को नेत्रों में आंजने से निद्रा नहीं आती है, मेरा कहना मिथ्या नहीं है।
भरणी नक्ष्यत्र में गुलर की लकडी की पांच अंगुल की कील नाब के बीच में गाड दे तो निश्चय करके नाब का स्तम्भन हो जाता है।
रबिबार के दिन पुष्यनक्ष्यत्र में काले धतुरे की जड लाकर गर्भिणी की कमर में बांधे तो गर्भस्तम्भन हो।
बिम्बाकाष्ठ के धुएं से योनि में धूप देने से स्त्री का गर्भ गिर पडता है इसमें सन्देह नहीं।
मंत्र : ॐ नमो भगबते महानृसिंहाय सर्बस्तम्भनकर्ते सर्बस्तम्भनं कुरू स्वाहा।
इस मंत्र को सबा लाख जपने से सिद्धि होगी। जैसा कि निर्देश किया गया है स्तम्भन का अर्थ है किसी को जडबत् स्थिर कर देना। यह स्तम्भन ब्यक्तियों के अतिरिक्त अस्त्र – शस्त्र तथा अग्नि, जल, मेघ, पशु आदि का भी किया जा सकता है। किन्तु भूलकर भी भगबान त्र्यम्बक द्वारा उपदेशित इस बिद्या को बिना अपरिहार्य कारण के प्रयोग में नहीं लाना चाहिए। किसी की रख्या, लोक की भलाई या अपनी रख्या के लिए ही इस बिद्या का प्रयोग करना चाहिए।
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ज्योतिषाचार्य प्रदीप कुमार
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जय माँ कामाख्या