जै मां काली, मार तू ताली।
ब्रह्मा की भैंण, शिब की स्वैण।
मद की धार, ख्प्पर कू खून।
दयों मैं तोयी, बैरी की आट।
बैरी को चाट, बैरी को धार।
पर्दा खोल, कार कार कार।।१।।
खपर को लोयी, न दयों तोयी।
बैरी को हाथ, बैरी की टांग।
मेरा बैरी को मडघाट पहूँचाये।
चक्र से मार, मार मार मार।
घन्टा की ठुंकार, शंख को हुंकार।
काली काली काली, मायी मायी मायी।
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ज्योतिषाचार्य प्रदीप कुमार
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जय माँ कामाख्या