।। कालरात्रि स्तंभन प्रयोग:।।
हल्दी, गोरोचन, कूट एबं तगर को गोमूत्र में पीसकर उसमें हलदी में रंगे बस्त्र पर अष्टदल बनायें। मध्य में शत्रु का नाम “अमुकं स्तंभय” लिखे। अष्टदलों में प्रत्येक में ॐ, ॐ, ग्लौं, च-ट, च-ट, (चट-चट) एक एक अक्ष्यर लिखे। फिर उस मंत्र को पीलेबस्त्र से बेष्टन करे। कुचिला की लकडी की सात कीलों से यंत्र को बिद्ध कर देबे एबं आक के पत्ते में लपेट कर उस यंत्र को बांबी में रखकर बांबी को भेड के मूत्र से भर देबें। फिर बांबी के ऊपर पत्थर रखकर उस पर बैठकर साधक नैऋत कोण की और मुख कर हल्दी की माला पर एक हजार जप करे।
मंत्र : “ॐ हाँ हीं हुं कामाक्षी मायारूपिणि सर्बमनोहारिणि सर्बमनोहारिणि स्तंभय स्तंभय रोधय रोधय मोहय मोहय क्लीं क्लीं क्लुं कामाक्ष्ये कान्हेश्वरि हुं हुं हुम्।”
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ज्योतिषाचार्य प्रदीप कुमार
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जय माँ कामाख्या