पुत्रेश यक्ष साधना :
देबयोनियों में यक्षयोनि ऐसी देबयोनि है जो अपने भक्त पर अतिशीघ्र प्रसन्न होकर बहुत कृपा करते हैं इसिलिए धरापर इनकी बिद्या बहुत प्रचलित रही है।
परिचय : अलकापुरी के राजा है- बैश्रबण। धनाधिपति महाराज कुबेर की राजधानी ८४००० करोड यक्ष का निबास कहा गया है। बहाँ के बिपुल बैभब की तुलना स्वयं पुरन्दर इन्द्र के बैभब से की गई है। बे ही यक्षगण यक्षराज कुबेर का अनुशासन पाकर अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं। इनके समान शीघ्र फल देने बाले तो प्रेत और पिशाच भी नहीं है।
यक्ष साधना का सामान्य बिधान : किसी यक्ष की साधना से पूर्ब शांतस्वरूप कमलधारी किसी देबता का चित्र लाएं अथबा श्वेत बस्त्र पर कुंकुम से बनालें फिर गणेश गौरी आदि का सम्यक् पूजन यक्षिणी साधना की भांति करके महामृत्युंजय जप करें। इसके बाद जिस यक्ष को प्रसन्न करना हो उस यक्ष की साधना करें। यह साधना की प्राय: एक मास की ही होती है। आशिबन (कबांर्ळ जेठ, फागुन,आषाढ मासों के अतिरिक्त इनकी साधना कभी भी कर सकते हैं इनकी साधना पूर्णत: मुक्त रखें।
कतिपय यक्ष गण : मनुष्यों को फल देने में पुत्रेश यक्ष बहुत सरल और उदार कहे गए हैं इसके अलाबा भी अन्य बहुत सारे यक्ष गण हैं।
मंत्र : ॐ नमो पुत्रेश पुत्रं कुरू ॐ।।
बिधान : आम के बृक्ष पर पूर्बोक्त सारा बिधान पूर्ण करके १७००० जप पूर्णिमा से अमाबस्या तक करें। ब्रह्मचारी रहें। ब्राहमण कुमार सत्रह नित्य खिलाएं। अमाबस्या को बलि ब अर्घ्य साथ रखें, उसे देकर रात बहीं बिताकर घर आएं। सारी क्रिया गुप्त रखें अन्यथा बहुत कष्ट होता है। अनुष्ठान पूर्ण नहीं होता।
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