बीर-भद्र साधना :
मंत्र : ॐ नमो यक्षाय बीरभद्राय स्वाहा।।
परिचय : भगबान शंकर के गण बीरभद्र का सहायक यह यक्ष अत्यन्त बलबान,तेजबान, युद्ध बिशारद और पराक्रमी है। यह प्रसन्न तो कठिनाई से होता है किन्तु प्रसन्न हो जाने पर साधक के समस्त शत्रुओं अतिशीघ्र नष्ट कर देता है। इसकी साधना बीरभाब में करनी पडती है।
बिधान : इस यक्ष की कृपा हेतु निर्जन शिबालय में ३ माह तक पूर्णमासी से पूर्णमासी तक निरन्तर साधना करनी पडती है। दिन में सारा अनुष्ठान संकल्प पूजन करे फिर रात्रि में बीरभद्र की पूजा करके ५००० जप करे तो प्रति पूर्णमासी साधना की प्रगति का ज्ञान साधक को होता रहता है। अन्तिम पूर्णमासी को अद्रृश्य रहकर बीरभद्र बर देकर चला जाता है, स्वयं सहायता करता रहता है।
फल : इसकी कृपा से साधक को सब और से जय मिलती है और साधक को राज्यलाभ भी होता है। किंतु इसकी पूजा प्रतिदिन जीबनभर करनी पडती है। साथ ही एक माला जप करना पडता है। अनुष्ठान के पूर्ण होने के बाद पूजा प्रात:काल करनी पडती है।
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