अघोर साधना सिद्धि

हमारे भारतीय सनातन धर्म के अनुसार जब हम किसी ज्ञानी महात्मा, साधु, संत, योगी, ऋषि मुनि, आचार्य ब्राह्मण-पण्डित, कुल पुरोहित या अघोर साधना सिद्धि (Aghor Sadhana Siddhi) साधक से बिधि-बिधान से दीख्या लेकर, कानों में इष्ट या गुरु मंत्र को ग्रहण करके दीखित हो जाते है और गुरुजी हमें कुछ ज्ञान बताते है तथा उनका पालन करते हुए जीबन जीने की शिख्या देते है ! अत: हमें अपने सामने बेठाकर गुरु समुख से ज्ञान और साधना ब भक्ति के ज्ञान को प्रदान करते है! तब साधक (मनुष्य ) गुरु मुखी शिष्य माना जाता है ! लेकिन जब साधक गुरु के द्वारा बताये गये मार्ग ब नियमों का पालन करता है तभी मान्यता प्राप्त होती है ! उन साधकों को (शिष्यों को) दीखित साधक या गुरु मुखी कहा जता है और अनके लिये कुछ जरुरी नियमों का पालन किया जाता है जैसे कि –
 
(1) अपनी प्रथम अघोर साधना सिद्धि (Aghor Sadhana Siddhi) दीख्या-शिख्या के समय बताया गया या सुनाया गये गुरु मंत्र को गोपनीय रखा जाना चाहिये ! दीख्या के समय जो अनुभब किया गया उसे किसी को नहीं बताबें !
(2) साधक को जब इष्ट मंत्र की दीख्या देबे तथा गुरु मंत्र और बिधि से अबगत कराया जाता है, उसके कुछ गुप्त बताया जाते हैं ! उन्हे हमेशा गुप्त रखना चाहिये!
(3) अपने गुरुजी द्वारा बताई गई बिधि के अनुसार ही अघोर साधना सिद्धि (Aghor Sadhana Siddhi) करनी चाहिये एबं अनके कहे गये नियमों से ही चलना चाहिये और अपनी बिधि का भेद किसी और ब्यक्ति के आगे नहीं खोलना चाहिए !
(4) अपने आप को गुरु के चरणों में अर्पण कर देना चाहिए और अनके आदेश का पालन करना ही हमारा धर्म है !
(5) अघोर साधना सिद्धि (Aghor Sadhana Siddhi) में दिखाई देने बाले द्रुश्य और प्राप्त की गई शक्तियों के बारे में गुरु के अलाबा किसी भी ब्यक्ति के सामने चर्चा न करें ! अपने परिबार बालों से भी गुप्त रखें!
(6) साधक- अघोर साधना सिद्धि (Aghor Sadhana Siddhi) यो के द्वारा हासिल की गई शक्तियो को गुप्त रखें ! किसी के सामने प्रदर्शन नहीं करें ना ही उसका दुरुपयोग करें !
(7) अपने धर्मानुसार पंथ के प्रति ब गुरु के प्रति सम्मान, बिश्वास, श्रधा-शक्ति और निय्मों के अनुसार चलना चाहिये ! कभि अपने धर्म एबं मर्यादा को भंग नहीं करें !
(8) साधक अपने धर्म का पालन अबश्य करें ! लेकिन किसी अन्य धर्म के बिरोध मे ईर्षा, घ्रुणा, अपमान, कटु शव्द, निंदा, छोटा-बडा आदि किसी भी प्रकार से भेदभाब नहीं रखा करो !अपने धर्म के सम्मान ही उसको सम्मान देना चाहिये ! कोई धर्म कभी किसी से छोटा या बडा, उंचा या निचा नहीं होता सब एक ही आदि-अनादि अनंत ब्रम्हांण्ड नायक परब्रह्मा परमेश्वर के ही बिभिन्न रुपों में अबतरण होने के कारण अलग-अलग सम्प्र्दाय में बिभाजित हो गये है ! मुल तो सबका मालिक (ईश्वर) एक ही है !
(9) साधक सदा ही समस्त प्राणियों पर दया करने बाला होना चाहिये !
(10) हमें सनातनी, बैष्ण्बों तथा धर्माचायों के प्रति आस्था रखनी चाहिये !
(11) साधक सदा परोपकारी होना चाहिये एबं पूर्ण सदाचारी, सत्यमार्गी, ब्रह्मचारी ब आस्तिक बनकर गुरुजी के आदेश की पालन करे और झुठ (असत्य) पाप, कपट, द्वेष, लोभ, लालच क्रोध ईर्षा आदि से बचकर रहें ! बह ही सच्चा: गुरु मुखी शिष्य सिद्ध होता है ! एसे शिष्य अपना एबं गुरु दोनों का नाम इतिहास में लिखबाते हैं जो सभी के लिये बन्दनीय एबं पूजनीय होते है और अपना नाम अमर कर जाते हैं !
( ग़ुरु मुखी साधक के लिये कुछ आबश्यक नियम जिनका पालन करना साधक के लिये अनिबार्य है.)
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जय माँ कामाख्या

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