मंत्र : “ओम नमो सत्य आदेश गुरु को, ओम नमो नजर जहाँ पर पीर न जानी, बोले छल्सों अमृतबानी, कहो नजर कहाँ से आई, यहाँ की ठौर तोहि कौन बताई, कौन जात तोरो कहाँ ठाह, किसकी बेटी कहा तेरो नाम, कहाँ से उडी कहाँ को जाया, अब ही बस कर ले तेरी माया। मेरी बात सुनो चित लाय, जैसी होय सुनाऊं आय। तेलन ,तमोलन, चुहडी, चमारी, कायथनी, खतरानी, कुम्हारी, महतरानी, राजा की रानी, जाको दोष ताहि के शिर पडे, जहार पीर नजर से रख्या करें। मेरी भक्ति गुरु की शक्ति फुरो मंत्र ईश्बरो बाचा।”
कोई सुंदर बालक हो या सुंदर स्त्री, नजर किसी को भी लग सकती है। नजर लगने पर बीमार होना लाजिमी है।जिसे भी नजर लगी हो, उसे कुछ भी अछा नहीं लगता, शरीर दिनोदिन कमजोर होता जाता है तथा कुछ समय बाद म्रूत्य भी हो सकती है।सिद्धि हेतु इस मंत्र का जाप मंग्लबार से प्रारम्भ कर शनिबार को समाप्त किया जाता है। इसकी नित्य ५१ माला फेरनी चाहिए। साधक को दक्षिण की और मुंह करके, तेल का दीपक जलाकर इस मंत्र को सिद्ध करना चाहिए। शनिबार की संध्या को जब मालाएं पूरी हो जाएं, तब एक किलो गेहूं उबालकर जंगल में फेंकने के बाद पीछे मुडकर नहीं देखना चाहिए। इस प्रकार से यह मंत्र सिद्ध हो जाता है। सिद्ध हो जाने पर मोरपंख से मात्र तीन बार इस मंत्र को पढकर नजर झाड देने से नजर निश्चय ही उतर जाती है और जिसको नजर लगी हो, बो स्वस्थ हो जाता है।
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जय माँ कामाख्या
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