किरात साधना :
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देवी बगलामुखी हृदय स्तोत्र प्रयोग :
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कपाल सिद्धि अभ्यास :
कपाल सिद्धि अभ्यास :
 
कपाल सिद्धि के लिए कभी भी इसलिए प्रयंत्न न करें कि इससे आपको शक्ति मिलेगी। शक्ति तो एक नही अनेक मिलेगी। अतींद्रिय ख्यमताएं चमत्कारिक हो जायेंगी, परंन्तु इन सबका कोई अर्थ ही नही रह जायेगा।इछा ही समाप्त हो जायेगी।भौतिक जगत स्वप्न सा लग्ने लगेगा, जिसे देखते हुए आप जान रहे हैं कि यह सब एक स्वप्न हैं।एसे मे कोई इछा रहती नहि।रहती है, तो बह एक खेल-जैसी इछा होती है, जिसमें खिलाडी को हार-जीत की परबाह नहीं होती।
 
स्थान : हम पह्ले ही बता आये हैं कि इस साधना में कथित शमशान का अर्थ “चेतना” की शान्त श्मशान जैसी अबस्था है ।कपाल सिद्धि के सम्बन्ध में मूर्ख तांत्रिकगण ब्याख्या करते हैं कि यह साधना श्मशान मे जाकर मुर्दो पर बैठकर की जाती है।
 
साबधान ! ये लोग ठग है।इस साधना में श्मशान का अर्थ उपयुक्त है और मुर्दे का अर्थ अनुभूति शून्य अपना ही शरीर है। अघोरी, तांत्रिक इस साधना को श्मशान मे इसलिये करते हैं कि बहां का बाताबरण, बहा का भाब, संसार की हलचलों से अलग शान्त होता है।
 
सरल अभ्यास :
आप अपनी नासिका की नोक से दाहिने हाथ की बीच की उंगली का अगला पोर मध्य नासिका से होते खोपडी के चांद तक धीरे-धीरे सहलाते 108 बार ले जायें।
यह साधना आप संध्याकाल गोधुलि बेला में पशिचम की और मुख करके करें।उंगलि फेरते समय “ओम नम: शिबाय” मंत्र का जाप करें और इस क्रिया के समय उंगलि के साथ-साथ नाक की नोक से प्राणशक्ति को उपर खींचते चांद तक ले जायें। यह ध्यान की एकाग्रता से ही होगा।
 
21 से 41 दिन तक इस क्रिया को करने के बाद,21 दिन तक बिना उंगलि के प्राणशक्ति को नासिका की नोक से चांद पर खींचने का अभ्यास करें।
 
इसके बाद 108 दिन तक चांद के गड्ढे के मध्य बिंदु पर ध्यान केंद्रित करके प्राणशक्ति को निचे की और खींचने का अभ्यास करें।इस क्रिया में मंत्र जाप मानासिक होता है।
 
हमने यहाँ 108 दिन कहा है, किन्तु यह अधिक भी हो सक्ता है। ब्रह्मरंध्र खुलने पर साधक को इसकी अनुभुति हो जाति है, लेकिन यह मत समझिये कि एक बार खुल गया, तो हमेशा के लिये खुल गया। अभ्यास निरन्तर आबश्यक है,बरना चंद्रमा से निकलने बाली महामाया की तरगे, फिर इस मार्ग को धिरे-धिरे अबरुध करने लगती हैं। बच्चे मे यह खुला रहता है।आप नबजात शिशु के सिर पर इस गड्ढे और इसके मध्य धडक्ते हुए बिन्दु को देख भी सक्ते हैं।
 
 
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जय माँ कामाख्या

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