स्त्री की कुंडली में सोभाग्य है : गुरु ग्रह
जन्मपत्रिका में गुरु स्त्रियो का सौभाग्यवर्द्धक तथा संतानकारक ग्रह है। स्त्रियों की पत्रिका में गुरु 7वें तथा 8वें भाव को अत्यधिक प्रभावित करता है। मकर-कुंभ राशि में स्थित अकेले गुरु दाम्पत्य सुख में कमी लाते है। जलतत्व या कन्या राशि के गुरु यदि पत्रिका के सप्तम भाव मे हो तो दाम्पत्य संबंध मधुर नहीं रहते।
सप्तम भाव में शुभ प्रभाव युक्त गुरु यदि मीन या धनु राशि के हो तो विवाह विच्छेद की स्थिति बनाता है। गुरु शनि से प्रभावित होने पर विवाह में विलंब कराता है। राहु के साथ होने पर प्रेम विवाह की संभावना बनती है। स्त्रियों की पत्रिका में अष्टम भाव में बलवान गुरु विवाहोपरांत भाग्योदय के साथ सुखी वैवाहिक जीवन के योग बनाता है। आठवें भाव में वृश्चिक या कुंभ का गुरु ससुराल पक्ष से मतभेद पैदा कराता है।
1. गुरु यदि वृषभ-मिथुन राशि और कन्या लग्न में निर्बल-नीच-अस्त का हो तो वैवाहिक जीवन कष्टपुर्ण होता है।
2. प्रथम,पंचम, नवम या एकादश भाव में यदि गुरु बलवान हो तो जल्दी विवाह के योग बनाता है, परंतु वक्री, नीच, अस्त, अशुभ, कमजोर होने पर विलंब से विवाह के योग बनते हैं।
3. यदि पत्रिका के सप्तम भाव कर्क या सिंह के गुरु हो तो भी प्रेम सम्बन्धों व वैवाहिक जीवन सुखपुर्ण नही चलता है।
4. मिथुन या कन्या राशि में स्थित होकर गुरु यदि लग्न या सप्तम में हो तो वैवाहिक जीवन सुखपुर्ण होता है।
5. तुला के गुरु यदि सप्तम भाव में हो तो विवाह में विलंब से होता है।
6. जन्मपत्रिका के लग्न में वृश्चिक, धनु, या मीन राशि के गुरु हो तो वैवाहिक जीवन मधुर रहता हैै।
7. मीन राशि का गुरु सप्तम में होने पर वैवाहिक जीवन कष्टप्रद रहता है।
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