सिद्ध अघोर गायत्री मंत्र का जाप कैसे करें?

सिद्ध अघोर गायत्री मंत्र :

अघोर गायत्री मंत्र : “सत नमो आदेश गुरुजी को आदेश। ओम गुरुजी ओम गुरुजी जौ प्रमाण
भख्यन्ते तिल मात्रा तिलक करन्ते आद धर्म पार ब्रह्मा श्री सुन्दरी
बाला नमोस्तुते अघोर-अघोर महा अघोर ब्रह्मा अघोर, बिष्णु अघोर,
शिब अघोर, शक्ति अघोर, पबन अघोर, पानी अघोर, धरती अघोर,
अकाश अघोर, चन्द्र अघोर, सुर्य अघोर पिण्ड प्राण हमारे बजर
अघोर, आदन्त साधन्त अघोर मंत्र स्थिरन्त, उठा हाथ की काया, आद
का योगी अनाद की भभूत संत का नाती धर्म का पूत, बिंद होना
आई नाद, भुर नाद न किसी का ध्यान किसका पुता पानी सेत, न
गुद-गुद सेत, न हाड-हाड सेत, न चाम चाम पडे, तो धरती माता
लाजे पिण्ड पडे तो सतगुरु राखे ऐसे पद को पुजते, योगी आद
अलील अनाहट बरसे अमरी सांधे अमर काया, बजरी सांधे बज्र
काया, हाकमारी हनुमंत आया लोहे का कोट घाब ना पडे
रख्या करें। अचल बन खण्डी पीर, काला खिण्था, काला टोप काला
है। ब्रह्माण्ड, धर्म, धूप, खेबन्ते, बासना गई इक्कीसबें ब्रह्माण्ड, धर्म
गुसांई जी धोती पंखालो, सातबें पाताल-पाताल में परम त्त, परम
तत मध्ये जोत, ज्योत मध्ये परम जोत, परम जोत मध्ये उत्प्न्न भई
माई अघोर गायत्री अजपा जाप जपन्ति, पच्चास लाख कोटि धरती
मध्ये फिरन्ति, कुष्टी का कोढ तरन्ति अचल-चलति अभेद मण्डल
भेदति-छेदति अंछित को पिबन्ति पीब-पीब करती
रुद्र देबता के बचने-बचने आपे के काज कुबारी आपे
के पशु भरता तीनों जाय तीन पुत्र ब्र्हमा-बिष्णु, महेश, अमर रहें।
सेना सुमिरे पटन सुनो देबी पार्बती आप कहें आप कहाबें आप सुणे
आप सुणाबें पद्माबती पार्बती, श्यामा को सलाम गुरों को प्रणाम
पणिडत को प्रमोद करी मूर्ख के हृदय न भाबी फुरों रिद्धि फुरो सिद्धि
संत श्री शम्भु जती गुरु गोरखनाथ जी अनन कोट सिद्धो ले अतरेगी
पार मुझको भी ले अतरेगी पार। श्री नाथजी के चरण कमलों को नमो
नम: इति घोर गायत्री मंत्र पूर्ण भया श्री नाथ गुरुजी को आदेश।।”
।। अघोर गायत्री मंत्र बिशेष ।।
इस अघोर गायत्री मंत्र से श्मशान की भस्म रमाते हैं । यह अघोर गायत्री मंत्र अघोरी महात्माओं के लिये है जो श्मशान में निबास करते हैं एबं अघोर पंथ की क्रिया करते समय इस मंत्र का प्रयोग किया करते हैं । साधक पहले अपनी सुरख्या का प्रबन्ध करके इष्ट मंत्र या काली कबच से देह बन्धन कर लेते हैं । फिर मस्तक पर टीका लगाकर मंत्र के द्वारा शमशान की भस्म रमाते हैं ।
 
इस अघोर गायत्री मंत्र को गुरु मुख से प्राप्त किया जाना अनिबार्य है । यह बिद्या गुरु शिष्य परम्परा से बिधि-बिधान से ग्रहण की जाती है । बिना गुरु के अघोर गायत्री मंत्र का उपयोग करना बर्जित ब हाँनिकारक है । यह अघोर गायत्री मंत्र उच्च कोटि के सिद्ध साधकों के लिये है । आम ब्यक्ति या साधारण साधक इससे दुर ही रहें तो अछा होगा। क्योंकि जिसका काम होता है उसी को बह कार्य लाभ देता है हमारे जैसे आम मनुष्यों को इसका अनुभब एबं ज्ञान नहीं होता और उसे करने की कोशिश भी करेंगे तो लाभ की जगह हानि ही मिलती हैं ।
 
नोट : साधकों अघोर गायत्री मंत्र की जानकारी और बिधि किसी महात्मा से प्राप्त करे क्योंकी इसकी क्रिया बिधि गुप्त होती है। उसके नियम आदि सभी केबल गुरुदेब के द्वारा ही जान सकते हैं ।

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जय माँ कामाख्या

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