भगवान शिव का वर्णन करना भी क्या संभव है । एक तरफ वह भोलेपन की सर्व उच्चावस्था मे रह कर भोलेनाथ के रूप मे पूजित है वही दूसरी और महाकाल के रूम मे साक्षात प्रलय रुपी भी । निर्लिप्त स्मशानवासी हो कर भी वह देवताओं मे उच्च है तथा महादेव रूप मे पूजित है । तो इस निर्लिप्तता मे भी सर्व कल्याण की भावना समाहित हो कर समस्त जिव को बचाने के लिए विषपान करने वाले नीलकंठ भी यही है । मोह से दूर वह निरंतर समाधि रत रहने वाले महेश भी उनका रूप है तथा सती के अग्निकुंड मे दाह के बाद ब्रम्हांड को कंपाने वाले, तांडव के माध्यम से तीनों लोक को एक ही बार मे भयभीत करने वाले नटराज भी यही है । संहार क्रम के देवता होने पर भी अपने मृत्युंजय रूप मे भक्तो को हमेशा अभय प्रदान करते है । अत्यंत ही विचित्र तथा निराला रूप, जो हमें उनकी तरफ श्रध्धा प्रदर्शित करने के लिए प्रेम से मजबूर ही कर दे । सदाशिव तो हमेशा से साधको के मध्य प्रिय रहे है, अत्यधिक करुणामय होने के कारण साधको की अभिलाषा वह शीघ्रातिशिघ्र पूर्ण करते है ।
शैव साधना और नाथयोगियो का सबंध तो अपने आप मे विख्यात है । भगवान के अघोरेश्वर स्वरुप तथा आदिनाथ भोलेनाथ का स्वरुप अपने आप मे इन योगियो के मध्य विख्यात रहा है । शिव तो अपने आप मे तन्त्र के आदिपुरुष रहे है । इस प्रकार उच्च कोटि के नाथयोगियो की शिव साधना अपने आप मे अत्यधिक महत्वपूर्ण रही है । शिवरात्री तो इन साधको के लिए कोई महाउत्सव से कम नहीं है । एक धारणा यह है की शिव रात्री के दिन साधक अगर शिव पूजन और मंत्र जाप करे तो भगवान शिव साधक के पास जाते ही है । वैसे भी यह महारात्रि तंत्र की द्रष्टि से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण समय है । अगर इस समय पर शिव साधना की जाए तो चेतना की व्यापकता होने के कारण साधक को सफलता प्राप्ति की संभावना तीव्र होती है ।
नाथयोगियो के गुप्त प्रयोग अपने आप मे बेजोड होते है । चाहे वह शिव साधना से सबंधित हो या शक्ति साधना के सबंध मे । इन साधनाओ का विशेष महत्व इस लिए भी है की सिद्ध मंत्र होने के कारण इन पर देवी देवताओं की विभ्भिन शक्तिया वचन बद्ध हो कर आशीर्वाद देती ही है साथ ही साथ साधक को नाथसिद्धो का आशीष भी प्राप्त होता है । इस प्रकार ऐसे प्रयोग अपने आप मे बहोत ही प्रभावकारी है । शिवरात्री पर किये जाने वाले गुप्त प्रयोगों मे से एक प्रयोग है अमोध शिव गोरख प्रयोग । यह गुप्त प्रयोग श्री गोरखनाथ प्रणित है ।
साधक को पुरे दिन निराहार रहना चाहिए, दूध तथा फल लिए जा सकते है । रात्री काल मे १० बजे के बाद साधक सर्व प्रथम गुरु पूजन गणेश पूजन सम्प्पन करे तथा अपने पास ही सद्गुरु का आसान बिछाए और कल्पना करे की वह उस आसान पर विराज मान है । उसके बाद अपने सामने पारद शिवलिंग स्थापित करे अगर पारद शिवलिंग संभव नहीं है तो किसी भी प्रकार का शिवलिंग स्थापीत कर उसका पंचोपचार पूजन करे । धतूरे के पुष्प अर्पित करे । इसमें साधक का मुख उत्तर दिशा की तरफ होना चाहिए । वस्त्र आसान सफ़ेद रहे या फिर काले रंग के । उसके बाद रुद्राक्ष माला से निम्न अमोघ शिव मंत्र का ३ घंटे के लिए जाप करे । साधक थक जाए तो बिच मे कुछ देर के लिए विराम ले सकता है लेकिन आसान से उठे नहीं । यह अमोघ शिव मंत्र जाप ३:३० बजने से पहले हो जाना चाहिए ।
अमोघ शिव मंत्र : “ ॐ शिव गोरख महादेव कैलाश से आओ भूत को लाओ पलित को लाओ प्रेत को लाओ राक्षस को लाओ, आओ आओ धूणी जमाओ शिव गोरख शम्भू सिद्ध गुरु का आसन आण गोरख सिद्ध की आदेश आदेश आदेश ”
अमोघ शिव मंत्र जाप समाप्त होते होते साधक को इस प्रयोग की तीव्रता का अनुभव होगा । यह अमोघ शिव प्रयोग अत्यधिक गुप्त और महत्वपूर्ण है क्यों की यह सिर्फ महाशिवरात्री पर किया जाने वाला प्रयोग है । और इस अमोघ शिव प्रयोग के माध्यम से मंत्र जाप पूरा होते होते साधक उसी रात्री मे भगवान शिव के बिम्बात्मक दर्शन कर लेता है । एक ही रात्रि मे साधक भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त कर सकता है और अपने जीवन को धन्य बना सकता है । अगर इस अमोघ शिव प्रयोग मे साधक की कही चूक भी हो जाए तो भी उसे भगवान शिव के साहचर्य की अनुभूति निश्चित रूप से होती ही है ।
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जय माँ कामाख्या