कपाल सिद्धि अभ्यास क्या है ?

कपाल सिद्धि अभ्यास क्या है ?

कपाल सिद्धि के लिए कभी भी इसलिए प्रयंत्न न करें कि इससे आपको शक्ति मिलेगी । शक्ति तो एक नही अनेक मिलेगी । अतींद्रिय ख्यमताएं चमत्कारिक हो जायेंगी, परंन्तु इन सबका कोई अर्थ ही नही रह जायेगा । इछा ही समाप्त हो जायेगी । भौतिक जगत स्वप्न सा लग्ने लगेगा, जिसे देखते हुए आप जान रहे हैं कि यह सब एक स्वप्न हैं । एसे मे कोई इछा रहती नहि । रहती है, तो बह एक खेल-जैसी इछा होती है, जिसमें खिलाडी को हार-जीत की परबाह नहीं होती ।
 
स्थान : हम पह्ले ही बता आये हैं कि इस कपाल सिद्धि साधना में कथित शमशान का अर्थ “चेतना” की शान्त श्मशान जैसी अबस्था है । कपाल सिद्धि के सम्बन्ध में मूर्ख तांत्रिक गण ब्याख्या करते हैं कि यह कपाल सिद्धि साधना श्मशान मे जाकर मुर्दो पर बैठकर की जाती है ।
 
साबधान ! ये लोग ठग है । इस कपाल सिद्धि साधना में श्मशान का अर्थ उपयुक्त है और मुर्दे का अर्थ अनुभूति शून्य अपना ही शरीर है । अघोरी, तांत्रिक इस साधना को श्मशान मे इसलिये करते हैं कि बहां का बाताबरण, बहा का भाब, संसार की हलचलों से अलग शान्त होता है ।
 
सरल अभ्यास :
आप अपनी नासिका की नोक से दाहिने हाथ की बीच की उंगली का अगला पोर मध्य नासिका से होते खोपडी के चांद तक धीरे-धीरे सहलाते 108 बार ले जायें । यह कपाल सिद्धि साधना आप संध्याकाल गोधुलि बेला में पशिचम की और मुख करके करें । उंगलि फेरते समय “ओम नम: शिबाय” मंत्र का जाप करें और इस क्रिया के समय उंगलि के साथ-साथ नाक की नोक से प्राणशक्ति को उपर खींचते चांद तक ले जायें । यह ध्यान की एकाग्रता से ही होगा ।
 
21 से 41 दिन तक इस क्रिया को करने के बाद,21 दिन तक बिना उंगलि के प्राणशक्ति को नासिका की नोक से चांद पर खींचने का अभ्यास करें ।
 
इसके बाद 108 दिन तक चांद के गड्ढे के मध्य बिंदु पर ध्यान केंद्रित करके प्राणशक्ति को निचे की और खींचने का अभ्यास करें । इस क्रिया में मंत्र जाप मानासिक होता है ।
 
हमने यहाँ 108 दिन कहा है, किन्तु यह अधिक भी हो सक्ता है । ब्रह्मरंध्र खुलने पर साधक को इसकी अनुभुति हो जाति है, लेकिन यह मत समझिये कि एक बार खुल गया, तो हमेशा के लिये खुल गया । अभ्यास निरन्तर आबश्यक है, बरना चंद्रमा से निकलने बाली महामाया की तरगे, फिर इस मार्ग को धिरे-धिरे अबरुध करने लगती हैं । बच्चे मे यह खुला रहता है । आप नबजात शिशु के सिर पर इस गड्ढे और इसके मध्य धडक्ते हुए बिन्दु को देख भी सक्ते हैं ।
 
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जय माँ कामाख्या

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