गुरु दीक्षा का अर्थ और महत्व :

गुरु दीक्षा का अर्थ और महत्व :

गुरु दीक्षा : हमारे भारतीय पम्परा मे सास्तसम्म्त गुरु दीख्या के तीन भेद बर्णित है-
 
1) ब्रह्मा दीक्षा: इसमें गुरुदेब साधकों को (शिष्यों को) दिशा-निर्देश ब सहायता करके उसकी कुण्ड्लिनी को प्रेरित कर जाग्रत करता है और ब्रह्मा नाडी के माध्यम से परमपिता परमात्मा शिब से आत्म्सात करा देता है ! इस दीक्षा को शास्त्र में ब्रह्मादीक्षा कहा गया है !
 
2) शक्ति दीक्षा : सिद्ध सामर्थबान गुरुदेब शिष्य (साधक) की योग्यता, भक्ति, बिचारधारा, आस्था, कर्तब्यपालन आदि गुणों से प्रसन्न होकर अपनी इछाशक्ति या संक्ल्प के द्वारा द्रूष्टिपात या स्पर्श से अपने ही समान ज्ञान और शक्तिबान बना देता है ! इसको शक्ति दीक्षा-बर दीक्षा या गुरु कृपा दीक्षा भी कहते है !
 
3) यंत्र दीक्षा : इस यंत्रदीक्षा में सिद्ध गुरुबर जो ज्ञान मंत्र स्वरुप या मंत्र के रुप में ज्ञानदीक्षा और गुरुमंत्र प्रदान करते हैं और शिष्य गुरुमंत्र प्राप्त करता है ! इसे मंत्र दीक्षा कहते है ! पुज्य गुरुदेब सर्बप्रथम अपने शिष्य (साधक) को मंत्र दीक्षा से ही दीखित करते हैं !(शिष्य को गुरु मंत्र से ही दीखित करते हैं) इसके उपरांन्त शिष्य (साधक) की ग्रहण करने की ख्यमता-योग्यता, सची लगन, आस्था, भाबना, श्रधा-भक्ति गुणबता आदि के निर्ण्य के बाद ही बिचार-बिमर्श किया जाता है कि शिष्य को ब्रह्मादीक्षा, शक्तिदीक्षा आदि से दीखित करना है या नहीं ! यह निर्णय गुरुदेब स्बयं करते हैं ! इसमें साधक की कई परीख्याएं ली जाती है और साधक के मन, बिचार,सहनशीलता, धैर्य, सत्यता आदि को देखने ब परखने के उपरान्त ही निर्णय पर पहुंचा जाता है !कई बार एसा भी होता है कि एक ही गुरुदेब के कई सारे शिष्य होते है! परन्तु सब एक समान ब एक स्तर के नहीं होकर अलग-अलग स्तर के होते हैं! कई साधक यंत्र दीक्षा (गुरु दीक्षा) तक ही सीमित रह जाते हैं !ऐसे साधक पर कभी-कभी गुरुदेब प्रसन्न होकर अपनी कृपा से कल्यान कर देते हैं !क्योंकि कई शिष्य बिना लोभ-लालच के भी गुरुजनों की सेबा करते हैं और उनकी निस्वार्थ भक्ति से महात्मा शीघ्र दया करके अपनी शक्तिया प्रदान करते हैं ! असम्भब मात्र मामूली सेबा की बजह से सम्भब हो जाता है !वैसे तो गुरु चाहे तो साधक को सर्बगुण सम्पन्न समझ्कर बिना मंत्र दीक्षा दिये भी प्रसन्न होकर अपनी कृपा करके ब्रह्मदीक्षा और शक्तिदीक्षा दे सकते है !इसमे कोई बाध्य नहीं है! लेकिन शिष्य को तो पहले सर्बगुण सम्पन्न होना पडता है !तभी ऐसा सम्भब होता है !इन उपरोक्त बताई गई दीक्षाओं के अतिरिक्त चार प्रकार की और दीक्षाओं है ! जैसे कि –
 
1) कलाबती दीक्षा :- इस कलाबती दीक्षा में परम ज्ञानी एबं सिद्ध महान गुरु जो स्वयं सिद्ध कहलाने बाले गुरु या सामर्थबान गुरुदेब शक्तिपात की क्रिया-बिधि द्वारा अपनि शक्ति को शिष्य में आत्म्सात् कर उसे शिब रुप प्रदान करते हैं अर्थात् गुरु अपनी शक्तियों को साधक के अंन्दर प्रबेश करबाकर गुरु दीक्षा दिया जाता है !
 
2) बेधमयी दीक्षा : इस गुरु दीक्षा में ब्रह्मज्ञानी गुरु या सामर्थबान गुरु शिष्य पर कृपा करके अपनी शक्तिपात् के द्वारा साधक (शिष्य) के षटचक्रों का भेदन करबाते हैं!
 
3) पंचायतनी (पांचदेबी की) दीक्षा : इस में भगबती दुर्गा, बिष्णु, शिबपरमत्मा, सुर्य देबता और श्री गणेश इन पांचो देबी-देबताओं मे सें किसी एक को प्रमुख देब मानकर बेदी के मध्य में (बीच मे) स्थापित करतें हैं ! फिर साधक के द्वारा पूजा और साधना करबाकर गुरु दीक्षा दी जाती है!
 
4) क्रम दीक्षा : इस गुरु दीक्षा में गुरु ब साधक (शिष्य) का तारतम्य बना रहता है ! धीरे-धीरे गुरुभक्ति में श्रधा और बिश्वास बढता जाता है! इसके उपरान्त गुरुदेब के द्वारा मंत्रों ब शास्त्रों तथा साधना पधोतियों का ज्ञान बिकसित होता जाता है !

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जय माँ कामाख्या

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