त्रिनेत्र जागरण काल ज्ञान साधना क्या है?

त्रिनेत्र जागरण काल ज्ञान साधना :

त्रिनेत्र : परमेश्वर शिब त्रिकाल द्र्ष्टा, आशुतोष, औढरदानी ,जगतपिता आदि अनेक नामो से जानें जाते हैं । महाप्रलय के समय शिब ही अपने तीसरे नेत्र से सृष्टि का संहार करते है, परंन्तु जगतपिता होकर भी शिब परम सरल ब शीघ्रता से प्रसन्न होने बाले हैं । संसार की सर्ब मनोकामना पूर्ण करने बाले शिब को स्वयं के लिए न ऐश्वर्य की आब्श्यकता है न अन्य पदार्थों की । बे तो प्रक्रुति के मध्य ही निबासते हैं । कन्दमूल ही जिन्हें प्रिय है ब जो मात्र जल से ही प्रसन्न हो जाते हैं ।
 
भगबान शिब सृष्टि के संहारकर्ता हैं । सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा पालनकर्ता, श्री हरि बिष्णु कल्याण करने बाले देबता हैं । मनुष्य प्रभु की आराधना किसी भी रूप में करता चला आ रहा है । भारतीय मनुष्य शिब को कई रूपों में भजता है, पूजता है और मानता है । भगबान रूद्र साख्यात महाकाल हैं । सृष्टि के अंत का कार्य इन्हीं के हाथों है । सारे देब, दानब, मानब, किन्नर सभी शिब की आराधना करते हैं । मानब के जीबन में जो कष्ट आते हैं, किसी न किसी पाप ग्रह के कारण होते हैं इसके निबारण हेतु भगबान शिब को सरल तरीके से मनाया जा सकता है । शिब को मोहने बाली अर्थात् शिब को प्रसन्न करने बाली शक्ति है, जो महाकाली भी कहलाती हैं । आप दोनों के चित्र देखीये तो आपको इनका तीसरा नेत्र देखने को मिलेगा । आज आपको शिब जी से सम्बन्धित त्रिनेत्र जागरण साधना यहाँ प्रस्तुत कर रहा हुं ।
 
आज्ञा चक्र के स्थान पर ध्यान करने का यही उद्देश्य है कि अपने भीतर की प्रकाश सता को बिकसित किया जा सके । यदि उसे बिकसित किया जा सके तो कई दिब्य ख्यमताएं अपने भीतर जागृत हो सकती हैं । बिद्दुत बल्ब जब प्रकाशित होता है, तो उसके प्रकाश में अन्य बस्तुएं भी दिखाई पडती हैं ।
 
आकाश में जगमगाते तारे भी रात्रि के सघन अन्धकार को कम कर देते हैं कि आस-पास की चीजों को किसी सीमा तक देखा जा सके । इसी प्रकार हमारे आंतरिक प्रकाश कण यदि कुछ अधिक जगमगाने लगें तो संसार में अन्यत्र घटित हो रही घटनाओं को देखा समझा जा सकता है ।
 
इसके अतिरिक्त भी आज्ञा-चक्र के जाग्रत हो जाने पर अनेकों दिब्य लाभ हैं । इसके द्वारा कई शक्तियां और देबी बिभूतियां अर्जित की जा सकती है । यह त्रिनेत्र साधना अपने साधक को उन सभी दिब्य लाभों के साथ आत्म कल्याण के पथ पर अग्रसर करती हैं, जिनसे बह अज्ञात है ।
 
मंत्रों का बास्तबिक अद्देश्य दिब्य दृष्टि को ज्योतिर्मय बनाता है । उसके आधार पर सूख्म जगत् की झांकी देखी जा सकती है । अन्त: खेत्र मे दबी हुई रत्न को खोजा और पाया जा सकता है । जिस प्राणी या पदार्थ पर भी इस दिब्य दृष्टि का प्रभाब यदि डाला जाये तो उसे भी बिकासोन्मुख करके लाभान्वित किया जा सकता है ।
 
भौहों के बीच आज्ञा चक्र में ध्यान लगने पर पहले काला और फिर नीला रंग दिखाई देता है, फिर पीले रंग की परिधि बाले नीला रंग भरे हुए गोले, एक के अंदर एक बिलीन होते हुए दिखाई देते हैं, एक पीली परिधि बाला नीला गोला घूमता हुआ धीरे धीरे छोटा होता हुआ अदृश्य हो जाता है और असकी जगह बैसा ही दुसरा बडा गोला दिखाई देने लगता है, इस प्रकार यह क्रम बहुत देर तक चलता रहता है ।
 
साधक यह सोचता है कि यह क्या है, इसका अर्थ क्या है ? अत्तर यह है कि इस प्रकार दिखने बाला नीला रंग आज्ञा चक्र का एबं जीबात्मा का रंग है, नीले रंग के रूप में जीबात्मा ही दिखाई पडती है । पीला रंग आत्मा का प्रकाश है , जो जीबात्मा के आत्मा के भीतर होने का संकेत है, इस प्रकार के गोले दिखना आज्ञा चक्र के जाग्रत होने का लख्यण है । इससे भूत-भबिष्य-बर्तमान तीनों प्रत्यख्य देखने लगते है और भबिष्य में घटित होने बाली घटनाओं के पूर्बाभास भी होने लगते हैं, साथ ही हमारे मन में पूर्ण आत्मबिश्वास जाग्रत होता है, जिससे हम असाधारण कार्य भी शीघ्रता से सम्पन्न कर लेते हैं ।
 
जो ब्यक्ति तंत्र के खेत्र में कार्यरत है, अनके लिये यह साधना सर्बथा आबश्यक मंत्र साधना है । इस साधना को सम्पन्न करने से साधक का त्रिनेत्र जागरण होता है और सभी प्रकार की घटनाओं को प्रत्यख्य देख पाने में बह सख्यम होता है ।
 
त्रिनेत्र साधना बिधि :
यह त्रिनेत्र साधना किसी भी अमाबस्या या पूर्णिमा के दिन से संकल्प लेकर शुरू करें । सफेद आसन और बस्त्र का ब्यबस्था पहले से ही करना है ताकि इनका साधना काल में उपयोग हो सके । दिशा-पूर्ब हो और साधना का समय ब्रह्ममुहूर्त है, ब्रह्ममुहूर्त का समय नित्य सबेरे 4:24 से 6:00 बजे तक होता है । माला रुद्रख्य का होना चाहिये और माला की प्राण प्रतिष्ठा बिधि बिधान से सिद्धि करें । अब प्रात: स्नानादि क्रिया के बाद साधना कख्य में बैठकर साधक अपने सामने लकडी के बाजोट पर सफेद बस्त्र बिछाये और उस पर शिबजी का चित्र स्थापित करें । शिब पूजन के साथ गणेश ब गुरू पूजन भी अब्श्य करें । घी का दीपक और सुगंधित धूप भी प्रज्ज्वलित करें । शिब जी को पुष्प भी अर्पित करे और उनसे दिब्य दृष्टि प्राप्त करने हेतु प्रार्थना करें । यह सब कुछ करने के बाद त्रिनेत्र जागरण मंत्र का २१ माला जाप २१ दिनों तक करने हेतु अपने गुरु से आशीर्बाद प्राप्त करें प्रतिदिन मंत्र जाप के बाद आधा घण्टा आज्ञा चक्र पर ध्यान लगाने का अभ्यास करे ।
 
त्रिनेत्र जागरण मंत्र :
ॐ सदाशिबाय त्रिनेत्र जाग्रताय पूर्णत्वं दृष्टम रुद्राय नम: ।।
 
यह मंत्र लघु किन्तु अत्यन्त तीब्र है । इस मंत्र के माध्यम से आप त्रिकाल को देख सकते है। इसका प्रभाब आप स्वयं अनुभूत करें ।

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जय माँ कामाख्या

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