शाबर वीर-वैताल अद्वितीय सिद्ध साधना

Shabar Viir Vaitaal Sadhana

इतिहास साक्षी है, कि सांदीपन आश्रम में भगवान श्री कृष्ण ने भी वैताल सिद्धि प्रयोग सम्पन्न किया था, जिसके फलस्वरूप वे महाभारत में अजेय बन सके, हजारों बाणों के बीच भी वे सुरक्षित रह सके। विक्रमादित्य ने भी वैताल सिद्धि प्रयोग कर अपने जीवन के कई प्रश्नों को सुलझा लिया था।
आगे चलकर गुरु गोरखनाथ और मछिन्दरनाथ तो वैताल साधना के सिद्धतम आचार्य बने और उन्होंने वैताल साधना द्वारा उन्होंने अपने जीवन में साधनात्मक उपलब्धियों को सहज ही प्राप्त कर लिया। महान् तंत्र वेत्ता और गोरख तंत्र के आदि गुरु गोरखनाथ प्रणीत वैताल साधना, इस साधना को आज भी गोरख पंथ प्रमुख रूप से सम्पादित करता है।
वैताल शिव के प्रमुख गण है, जिन्होंने दक्ष राज के यज्ञ का विंध्वस कर शिव सत्ता स्थापित की हर व्यक्ति वैताल साधना सम्पन्न कर अपने चारों और एक सुरक्षा चक्र स्थापित कर सकता है, जिसके पूर्ण होने पर वैताल हर समय सुरक्षा प्रहरी के रुप में साधक के साथ रहता है।
1. वैताल साधना से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है, यह अत्यन्त सौम्य और सरल साधना है। जब वैताल साधना सिद्धि होती है, तो मनुष्य रूप में सरल प्रकृति और शांत रूप में वैताल प्रकट होता है, और जीवन भर दास की तरह साधक के कार्य सम्पन्न करता है।
2. वैताल सिद्धि होने पर वह छाया की तरह अदृश्य रूप से साधक के साथ बना रहता है, और प्रतिपल प्रतिक्षण उसकी रक्षा करता है। प्रकृति, अस्त्र शस्त्र या मनुष्य उसका कुछ भी अहित नहीं कर सकते, किसी भी प्रकार से उसके जीवन में न तो दुर्घटना हो सकती है और न उसकी अकाल मृत्यु ही संभव है।
3. ऐसे साधक के जीवन में शत्रुओं का नामो निशान नहीं रहता, वह कुछ ही क्षणों में अपने शत्रुओं को परास्त करने का साहस रखता है, और उसका जीवन निष्कंटक और निर्भय होता है, लोहे की सीखंचें या कठिन दीवारें भी उसका कुछ भी अनिष्ट नहीं कर सकतीं।
4. वैताल भविष्य सिद्धि सम्पन्न होता है, अतः अपने जीवन या किसी के भी जीवन के भविष्य से सम्बन्धित जो भी प्रश्न पूछा जाता है, उसका तत्काल उत्तर प्रामाणिक रूप से मिल जाता है, ऐसा व्यक्ति सही अर्थों में भविष्य दृष्टा बन जाता है।
5. जो साधक वैताल को सिद्ध कर लेता है, वह वैताल के कन्धों पर बैठ कर अदृश्य हो सकता है, एक स्थान से दूसरे स्थान पर कुछ ही क्षणों में जा सकता है और वापिस आ सकता है, उसके लिए पहाड़, नदियां या समुद्र बाधक नहीं बनते।
ऐसा साधक कठिन से कठिन कार्य को वैताल के माध्यम से सम्पन्न करा लेता है, और चाहे कोई व्यक्ति कितनी ही दूरी पर हो, उसे पलंग सहित उठा कर अपने यहां बुलवा सकता है, और वापिस लौटा सकता है, उसके द्वारा गोपनीय से गोपनीय सामग्री प्राप्त कर सकता है।
6. वैताल सिद्धि प्रयोग सफल होने पर साधक अजेय, साहसी, कर्मठ और अकेला ही हजार पुरुषों के समान कार्य करने वाला व्यक्ति बन जाता है।
वास्तव में वैताल साधना (Viir Vaitaal Sadhana) अत्यन्त सौम्य और सरल साधना है, जो भगवान शिव की साधना करता है वह वैताल साधना (Viir Vaitaal Sadhana) भी सम्पन्न कर सकता है। जिस प्रकार से भगवान शिव का सौम्य स्वरूप है, उसी प्रकार से वैताल का भी आकर्षक और सौम्य स्वरूप है। इस साधना (viir vaitaal sadhana) को पुरुष या स्त्री सभी सम्पन्न कर सकते हैं।
यद्यपि यह तांत्रिक साधना है, परन्तु इसमें किसी प्रकार का दोष या वर्जना नहीं है। गायत्री उपासक या देव उपासक, किसी भी वर्ण का कोई भी व्यक्ति इस साधना (viir vaitaal sadhana) को सम्पन्न कर अपने जीवन में पूर्ण सफलता प्राप्त कर सकता है। सबसे बड़ी बात यह है, कि इस साधना (viir vaitaal sadhana) में भयभीत होने की बिल्कुल जरूरत नहीं है, घर में बैठकर के भी यह साधना (viir vaitaal sadhana) सम्पन्न की जा सकती है। साधना सम्पन्न करने के बाद भी साधक के जीवन में किसी प्रकार अन्तर नहीं आता, अपितु उसमें साहस और चेहरे पर तेजस्विता आ जाती है, फलस्वरूप वह जीवन में स्वयं ही अपने अभावों, कष्टों और बाधाओं को दूर कर सकता है।
आज के युग में वैताल साधना (viir vaitaal sadhana) अत्यन्त आवश्यक और महत्वपूर्ण हो गई है, दुर्भाग्य की बात यह है कि अभी तक इस साधना (viir vaitaal sadhana) का प्रामाणिक ज्ञान बहुत ही कम लोगों को था, दूसरे साधक ‘वैताल’ शब्द से ही घबराते थे, परन्तु ऐसी कोई बात नहीं है। जिस प्रकार से साधक लक्ष्मी, विष्णु या शिव आदि की साधना सम्पन्न कर लेते हैं, ठीक उसी प्रकार के सहज भाव से वे वैताल साधना भी सम्पन्न कर सकते हैं।
Viir Vaitaal Sadhana Samay :
साधक यह साधना किसी भी रविवार को संपन्न कर सकता है, पर यदि श्रावण मास के अवसर पर यह साधना की सिद्धि करने से यह शीघ्र ही संपन्न हो जाता है।
Viir Vaitaal Sadhana Samagri :
इस प्रयोग में न तो कोई पूजा और सिर्फ विशेष सामग्री की आवश्यकता होती है,नाथ संप्रदाय के अनुसार इस प्रयोग में केवल तीन उपकरणों की जरूरत होती है।
{{वैताल यंत्र , वेताल माला, भगवान शिव जी का चित्र।}}
इसके अलावा साधक को अन्य किसी प्रकार की सामग्री जल पात्र या कुंकुम आदि की जरूरत नहीं होती, यह साधना रात्रि को सम्पन्न की जाती है, परन्तु जो साधक न भयभीत हों, और न विचलित हों, वे निश्चिन्त रूप से इस साधना को सम्पन्न कर सकते हैं।
Viir Vaitaal Sadhana Vidhan :
साधक रात्रि को दस बजे के बाद स्नान कर लें और स्नान करने के बाद अन्य किसी पात्र को छुए नहीं। पहले से ही धोकर सुखाई हुई काली धोती को पहन कर काले आसन पर दक्षिण की ओर मुंह कर घर के किसी कोने में या एकान्त स्थान में बैठ जाएं।
अपने सामने लकड़ी के एक बाजोट पर शिव परिवार चित्र/विग्रह/शिव यंत्र/शिवलिंग स्थापित कर लें और साथ ही अपने गुरु/गोरक्षनाथ का चित्र भी स्थापित कर दें। वैताल साधना में सफलता हेतु गुरु और शिव जी से आशीर्वाद अवश्य प्राप्त करें। इस हेतु सर्वप्रथम गुरु और शिव जी का ध्यान करें –
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् पर ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥
अब भगवान शिव जी का मन ही मन नीचे लिखे मंत्र से ध्यान करें-
ध्यायेन्नित्यंमहेशं रजतगिरिनिभं चारुचंद्रावतंसं रत्नाकल्पोज्ज्वलांग परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम।
पद्मासीनं समंतात्स्तुतममरगणैव्र्याघ्रकृत्तिं वसानं विश्वाद्यं विश्ववंद्यं निखिलभयहरं पंचवक्त्रं त्रिनेत्रम॥
एक ताँबे के पात्र या स्टील की थाली में काजल से एक गोला बनाएं और उस गोले में वैताल यंत्र को स्थापित कर दें। यंत्र स्थापन के पश्चात् हाथ जोड़कर वैताल का ध्यान करें।
ध्यान :
धूम्र-वर्ण महा-कालं जटा-भारान्वितं यजेत्
त्रि-नेत्र शिव-रूपं च शक्ति-युक्तं निरामपं॥
दिगम्बरं घोर-रूपं नीलांछन-चय-प्रभम्
निर्गुण च गुणाधरं काली-स्थानं पुनः पुनः॥
ध्यान के उपरान्त साधक वैताल सिद्धि माला से मंत्र की 3 माला मंत्र जप नित्य कम से कम 21 दिनों तक सम्पन्न करें। यह शाबर मंत्र छोटा होते हुए भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है और शाबरी तंत्र में इस मंत्र की अत्यन्त प्रशंसा की हुई है।
Shabar Viir Vaitaal Sadhana Mantra :
॥ॐ नमो आदेश गुरुजी को,वैताल तेरी माया से जो चाहे वह होये,तालाब के वीर-वैताल यक्ष बनकर यक्षिणियों संग चले,शिव का भक्त माता का सेवक मेरा कह्यो कारज करे,इतना काम मेरा ना करो तो राजा युधिष्ठिर का गला सूखे,(यहां पर मैं आगे का मंत्र नही लिख रहा हु,क्योके मंत्र गोपनीय होने के कारण अधूरा रखना ही बेहतर है) ॥
मंत्र जप करते समय किसी प्रकार आलस्य नहीं लायें, शांत भाव से मंत्र जप करते रहें। यदि खिड़की, दरवाजे खड़खड़ाने लगे तो भी अपने स्थान से न उठें, उठने की चेष्टा ना करें इस समय आप को भयभीत नहीं होना है यह साधक के लिए परीक्षा की घड़ी होती है इस प्रकार साधना पूर्ण करें दूसरे दिन साधक प्रातः काल उठकर स्नान आदि से निवृत हो जाए और बेताल यंत्र बेताल माला और साथ मैं भोग को ले जाकर किसी नदी तालाब कुएं में डाल आए और भगवान शिवजी के चित्र को अपने घर के पूजा स्थल में स्थापित कर दें। मंत्र जप के पश्चात् बेसन के लड्डुओं का भोग यंत्र के सामने अर्पित कर दें।
वास्तव में ही यह अत्यन्त गोपनीय प्रयोग है, अतः यह प्रयोग सामान्य व्यक्ति को, निन्दा करने वाले को, तर्क करने वाले दुराचारी को नहीं देना चाहिए और न इसकी विधि समझानी चाहिए।
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जय माँ कामाख्या

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