गर्भकाकिणी की साधना सिद्धि

एक मिट्टी के घडे के पैदे की आद्दा निकाल दें । घर के आंगन के ईशान में (आंगन के मकान के नहीं ) या किसी स्वछ भुमि पर सबाहाथ लम्बाई, चौडाई और गहराई का गड्ढा खोदें । इसमे कुम्हार के चाक की मिट्टी लाकर भरें और घडे के पैदे के किनारों को चार अंगुल नीचे दबाकर घडे में भी कुम्हार के चाक की मिट्टी भर दे । इसमें शीर्ष पर आम का कलश डालकर गाय के घी का दीपक जलायें । हल्दी, चाबल, दही, बेसन और गाय के घी से इस पर स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर इसके सामने हल्दी से भैरबी चक्र बनाकर उसके मध्य मे गाय के घी का दीपक रखें । स्वास्तिक के स्थान पर महालक्ष्मी गहबरचक्र बनाने से और उत्तम रह्ता है ।
हल्दी और कुम्हार की मिट्टी को बराबर मिलाकर रीढ की हड्डी में दुर्गा के उपर के उर्जा बिंन्दु पर लेप लगाकर भूकुटि पर इसी मिश्रण का तिलक लगायें , फिर उतर की और मुख करके भैरबी चक्र को सामने रखकर बैठें ।
 
यह गर्भकाकिणी साधना 9 बजे से 12 बजे रात तक की जाति है । प्रथम रात्रि धूप दीप, पीले या नारंगी पुष्प से पुजा-अर्चना करके स्वास्तिक या लक्ष्मी चक्र के मध्य बिंन्दु मे ध्यान लगाकर मंत्र जाप करें ।
 
गर्भकाकिणी मंत्र : ओम ह्रीं श्रीं श्रीं त्रं फट् स्वाहा।
 
दूसरे दिन से इसे 108 मंत्र प्रतिदिन जाप करें । यह गर्भकाकिणी साधना किसी शुभ शुक्रबार से करनी चाहिए ।
 
गर्भकाकिणी की तामसी साधना –
क्रूष्ण्पख्य के शुक्रबार की रात 9 बजे किसी उर्ब्रर भूमिखण्ड में- जो सुद्ध हो-मिट्टी की एक सबाहाथ उंची पिण्डी बनायें । इसे सिंदूर ,महाबर, दूध, केसर एब गाय के घ्रुत से स्नान कराके इस पर हल्दी, केसर, सिंदुर, महाबर से अपने सामने भैरबी चक्र बनायें और इस पिण्डी को मध्य मे लेकर भी भैरबी चक्र बनायें । इस पर गाय के घी का दीपक जलाकर रखें और सामने उत्तर की और मुख करके बैठें ।
सबाहाथ गहराई, लम्बाई, चौडाई का हबनकुण्ड बनाकर गूलर, आम , कटहल, आक और कोम्हरे की जड की समिधा जलाकर इसमें गाय का घी, हल्दी, मेढक की चर्बी, उल्लू के पंख और जिमीकन्द के तुकुडों को होम करते हुए अर्धरात्रि तक जाप करें । यह साधना नग्न होकर की जाती है ।
 
ध्यान योग में गर्भकाकिणी :
इस बिंदु पर कुम्हार की मिट्टी एब हल्दी की बिन्दी इस उर्जा चक्र एब तिलक लगाकर ध्यान भूकुटियों के मध्य लगाकर पहले (ॐ) का जाप करें , फिर रीढ के बिंदु को ऊपर खींचें । प्रत्येक बार मंत्र जाप करें। यह 108 दिन मे सिद्ध होता है ।
 
सिद्धि लाभ :
1. स्त्रियो मे स्निग्धता, कोमलता, कांन्ति, स्वस्थता ,सुडौलता एब गर्भधारण की शक्ति में चमत्कारिक ब्रुधी होति है ।
2. इस शक्ति को सिद्ध करके दुर्गा की आराधना करने बाले पुरूष को धन,स्म्पति, आय का स्तोत्र प्रबल होता है । शरिर सवस्थ एब मांसल बनता है ।
3. स्त्रियों मे सन्मोहन एब बशिकरण शक्ति प्रबल रुप से उतपन्न होती है ।
4. खेत मे इसकी साधना करने से फसल एब बाग मे करने से फलों की फसल मे ब्रुधि होति है ।
5. ब्यबसाय और नौकरी में उन्नति होती है ।
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