विदेश यात्रा योग और व्यवसाय

आज के आधुनिक समय में हर अधिकतर जातकों की ये इच्छा होती है की वो विदेश में जाकर गुजर बसर करे विदेशों की भव्यता उनको बहुत लुभाती है आज हम कुंडली में बनने वाले कारणों की चर्चा करेंगे की कैसे विदेश यात्रा योग बनते है
कुंडली का चोथा भाव हमारी मात्रभूमि का कहलाता है किसी भी जातक के विदेश यात्रा योग और वंहा सेटल होने के लिय इस भाव का पीड़ित होना जरुरी है क्योंकि जब ये भाव पीड़ित होगा तो जातक के जन्मभूमि छोड़ने के योग बनते है
विदेश यात्रा योग के लिय कुंडली में तीसरा नोवाँ और बारवां भाव मुख्य भूमिका निभाते है बारवें भाव को विदेश का ही भाव माना गया है इसिलिय तीसरा भाव जो की चोथे से बारवा होता है को विदेश जाने में अहम मना गया है तीसरा भाव हमारी छोटी मोटी यात्राओं को इंगित करता है और ऐसे स्थान को बताता है जिनकी हमारे जन्मस्थान से ज्यादा दुरी न हो कुंडली का नवम भाव जिसे भाग्य भाव भी कहते है जो लम्बी दुरी की यात्राओं को बताता है और ऐसे स्थानों को इंगित करता है जो हमारे जन्म स्थान से मध्यम दुरी पर हो बारवा भाव लम्बी यात्रों और ऐसे स्थानों को बताता है जो हमारे जन्मस्थान से काफी दूर हो
जैसा की आपको पता है की लग्न और लग्नेश की कुंडली में अहम भूमिका होती है ऐसे में विदेश यात्रा योग की चर्चा इनके बिना नही हो सकती जब भी बारवें भाव के स्वामी का सम्वन्ध लग्न या लग्नेश से हो रहा हो तो विदेश यात्रा योग बनते है जैसे बारवें का स्वामी लग्न में और लग्नेश बारवें भाव में हो यदि लग्नेश बारवें में हो तो भी विदेश यात्रा योग बनेगे इसके साथ चूँकि हमारा कर्म छेत्र का भाव दसम होता है इसीलिये यदि व्ययेश का सम्बन्ध दशमेश से बन रहा हो तो जातक के विदेश जाकर या विदेश से सम्बन्धित व्यवसाय करने के योग बनते है इसी प्रकार ग्यारवाँ भाव हमारी आय लाभ को दर्शाता है ऐसे में जब व्ययेश का सम्बन्ध आएश से बन रहा हो तो भी विदेश से लाभ के योग बनते है यदि व्ययेश चोथे भाव में हो तब भी विदेश यात्रा योग बनते है
जब लग्नेश भाग्य भाव में हो और भाग्येश लग्न में हो तब भी विदेह जाने का योग जातक की कुंडली में बनता है इसी प्रकार जब तृतीयेश का सम्बन्ध लग्नेश से बन रहा हो तो भी विदेश के कुछ योग बनते है
जब भी विदेश में सेटेल होने की बता हो तो हमे इस बात का ध्यान रखना होता है की व्ययेश चतुर्थेस से बली हो और व्यय भाव चोथे भाव से ज्यादा बली होना चाहिए चोथे भाव के पीड़ित होने से और व्यय भाव के बली होने से विदेश के योग प्रबल बनते है जातक के विदेश में सेटेल होने के इन सबके साथ भाग्य भाव और भाग्येश का बली होना जरुरी है क्योंकि जब तक जातक को भाग्य का साथ नही मिलता उसे सफलता नही मिलती चाहे वो विदेश हो या देश इन सबके साथ दशा महादशा देखना जरूरी है यदि किसी ऐसे ग्रह की दशा चल रही हो जो आपको विदेश में लाभ दिला सकती है तो उस समय विदेश के लिय किया गया प्रयत्न लाभप्रद सिद्ध होता हैइसिलिय सभी बिन्दुओं पर विचार करके उसके बाद विदेश की तैयारी करे

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