कुण्डली में विपरीत राजयोग

ज्योतिषशास्त्र में जब दो अशुभ भावों एवं उनके स्वामियों के बीच सम्बन्ध बनता है तो अशुभता शुभता में बदल जाती है । विपरीत राजयोग भी इसी का एक उदाहरण है ।
जिस प्रकार कुण्डली में राजयोग सुख, वैभव, उन्नति और सफलता देता है उसी प्रकार विपरीत राजयोग भी शुभ फलदायी होता है । ज्योतिषशास्त्र के नियमानुसार जब विपरीत राजयोग बनाने वाले ग्रह की दशा चलती है तब परिस्थितयां तेजी से बदलती है और व्यक्ति को हर तरफ से कामयाबी व सफलता मिलती है । इस समय व्यक्ति को भूमि, भवन, वाहन का सुख प्राप्त होता है । विपरीत राजयोग का फल व्यक्ति को किसी के पतन अथवा हानि से प्राप्त होता है । इस योग की एक विडम्बना यह भी है कि इस योग का फल जिस प्रकार तेजी से मिलता है उसी प्रकार इसका प्रभाव भी लम्बे समय तक नहीं रह पाता है ।
विपरीत राजयोग कैसे बनता है :
विपरीत राजयोग के प्रभाव के विषय में जानने के बाद मन में यह जिज्ञासा होना स्वाभाविक है कि यह योग बनता कैसे है । ज्योतिषशास्त्र में कहा गया है कि जब कुण्डली में त्रिक भाव यानी तृतीय, छठे, आठवें और बारहवें भाव का स्वामी युति सम्बन्ध बनाता है तो विपरीत राजयोग बनता है । त्रिक भाव के स्वामी के बीच युति सम्बन्ध बनने से दोनों एक दूसरे के विपरीत प्रभाव को समाप्त कर देते हैं । इसका परिणाम यह होता है कि जिस व्यक्ति की कुण्डली में यह योग बनता है उसे लाभ मिलता है ।
विपरीत राजयोग फलित होने का सिद्धांत :-
विपरीत राजयोग़ बनाने वाले ग्रह अगर त्रिक भाव में कमज़ोर होते हैं या कुण्डली में अथवा नवमांश कुण्डली में बलहीन हों तो अपनी शक्ति लग्नेश को दे देते हैं । इसी प्रकार अगर केन्द्र या त्रिकोण में विपरीत राजयोग़ बनाने वाले ग्रह मजबूत हों तो दृष्टि अथवा युति सम्बन्ध से लग्नेश को बलशाली बना देते हैं । अगर विपरीत राजयोग़ बनाने वाले ग्रह अपनी शक्ति लग्नेश को नहीं दे पाते हैं तो व्यक्ति अपनी ताकत और क्षमता से कामयाबी नहीं पाता है बल्कि किसी और की कामयाबी से उसे लाभ मिलता है ।
आरूढ लग्न और विपरीत राजयोग :
आरूढ़ लग्न और विपरीत राजयोग़ का नियम बहुत ही अनोखा है । आरूढ़ लग्न से तृतीय अथवा छठे भाव में बैठा शुभ ग्रह अगर कुण्डली में बलशाली हो तो धर्म और अध्यात्म के क्षेत्र में सफलता दिलाता है । इसके विपरीत अगर नैसर्गिक अशुभ ग्रहों की स्थिति आरूढ लग्न से तृतीय अथवा छठे भाव में मजबूत हो तो पराक्रम में वृद्धि होती है व्यक्ति भौतिक जगत में कामयाब और सफल होता है । अगर इसके विपरीत स्थिति हो यानी आरूढ़ लग्न से तृतीय छठे में बैठा शुभ ग्रह कुण्डली और नवमांश में कमज़ोर हो तो विपरीत राजयोग़ के कारण भौतिक जगत में कामयाबी मिलती है । आरूढ लग्न से तृतीय या छठे स्थान में अशुभ ग्रह अगर कमज़ोर हो तो विपरीत पर्वराजयोग का फल देता है जिससे व्यक्ति अध्यात्मिक और धार्मिक होता है ।
विपरीत राजयोग ने जिन्हें बनाया महान :-
भारत के पूर्व प्रधान मंत्री नरसिम्हा राव, पूर्व गृह मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी, पूर्व प्रधान मंत्री राजीव गांधी, उडीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक, स्वामी विवेकानंद ऐसे कुछ महान व्यक्तियों में से हैं जिन्हें विपरीत राजयोग़ ने शिर्ष पर पहुंचाया ।

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