(अघोरी तंत्र में गुरु दीक्षा : समस्त साधना में गुरु का होना और गुरु से साधना सिद्धि की दीक्षा लेना अनिबार्य है !)
साधकों ! कोई भी अघोरी तंत्र साधना (Aghori Tantra Sadhna) आरम्भ करने से पहले (पूर्ब) किसी सिद्ध महात्मा, ऋषि मुनि, योगी, संत, आचार्य या सिद्ध साधक आदि में से किसि योग्य सज्जन महापुरुष को अपने गुरु रुप में धारण करें ! (ग़ुरु बना लें) अनसे शिक्षा-दीक्षा प्राप्त कर लें और अघोरी तंत्र साधना (Aghori Tantra Sadhna) सम्बन्धित ज्ञान अर्जित कर लें ! दीक्षा के उपरांत ही अघोरी तंत्र साधना (Aghori Tantra Sadhna) करनी चाहिये ! बिना दीक्षा ब शिक्षा लिये साधना नहीं करनी चाहियें इसके बिना लाभ नहीं होता ! साधक अपने गुरु से दीक्षा प्राप्त करने के बाद गुरु द्वरा बताये गये नियमों का पालन करते हुये क्रम से साधना करें ! साधना के दिनों मे प्रतिदिन जानकारी लेते रहें और जो साधक (स्वयं) साधना करता हो उसकी जानकारी अपने गुरुजी को बताते रहे !
अगर आप कहीं किसी कारण बश कोई गलती भी करेते होंगे तो गुरुजी पुन: सही रास्ता बताकर सुधार लेंगे ! इसलिये अघोरी तंत्र साधना (Aghori Tantra Sadhna) की अबधि में गुरुजी से परामर्श लेते रहें या हो सके तो आप (साधक) अपने गुरुजी के चरणों (पास में) रहकर ही साधना करें तो सबसे उतम रहेगा !
गुरु का सानिध्य प्राप्त होने के बाद साधक को अपनी साधना का मार्ग सरल और सुगम हो जाता है और साधक के आन्तरिक ज्ञान का बिकास हो जाता है ! जिसमें गुरु की शक्ति रुपी दीक्षा से साधक की अशुधिया स्वयमेब समाप्त हो जाती है ! कयोंकि गुरु से प्राप्त दीक्षा में एक प्रकार से शक्ति रुप या तेज पुंज्ज होता है ! उस पुंज में गुरु की समस्त शक्तियों का समाबेश होता है जो की गुरुजी के सम्पुर्ण जीबन की साधना करने से प्राप्त किया हुआ होता है ! बही शक्ति गुरु अपने शिष्यों को गुरु मंत्र के और दीक्षा-शिक्षा के रुप में प्रदान करते हैं! इसीलिये गुरु की दीक्षा को हमारे भारतीय संस्क्रुति में एक अनमोल एबं सर्बश्रेष्ठ शक्तिदान कहा जाता है ! ग़ुरु की महानता श्रेष्ठता सर्बोपरी है ! समस्त शास्त्रों मे प्राचीन ऋषियों ब मुनियों ने गुरु को ईश्वर तुल्य ही नहीं अपितु उससे भी बडकर एबं महान कहा गया है !
(बलिहारी गुरु आपकी गोबिन्द दियो बताय) इसलिये गुरु की आज्ञा से ही चलना चाहिये !
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जय माँ कामाख्या