त्रिया बंगालन-भैंसासुर वीर साधना

त्रिया बंगालन जिनके दुहाई से कई सारी मशानी शक्तियां काम करती है और भैंसासुर वीर तो बहोत खतरनाक शक्ति है । भैंसासुर वीर को दिया हुआ कोई भी काम वह करता है,इनके लिए षट्कर्म तो बहोत मामूली काम है । यह मंत्र साधना षट्कर्म में पूर्ण सिद्धिदायक है,इसी साधना से मयांग (आसाम का तांत्रिक क्षेत्र ) के तांत्रिक आज के समय मे प्रसिद्ध हुए है ।
गुवाहाटी के पास एक गांव में आज भी काला जादू सिर चढ़कर बोलता है । चमत्कार और आसाम का बेहद पुराना रिश्ता है,तब यह प्रागज्योतिषपुर के नाम से मशहूर था । मिर्जा नत्थन, इब्न बतूता और शहाबुद्दीन जैसे विद्वानों ने अपनी किताबों में प्रागज्योतिषपुर की तंत्र-मंत्र विद्या का उल्लेख भी किया है । हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान कृष्ण ने यहीं पर आध्यात्मिक शक्तियों से संपन्न भागदत्त के पिता नरकासुर से माया युद्ध किया था । प्राचीन काल में आसाम स्थित शक्तिपीठ कामाख्या तंत्र-मंत्र का गढ़ हुआ करता था,तब वहां बौद्ध संन्यासी तंत्र-मंत्र करने के लिए जाते थे । जैसे-जैसे वक्त गुजरा, बौद्ध संन्यासी आसाम के विभिन्न हिस्सों में जाने लगे,यह बात दीगर है कि उनमें से ज्यादातर ने हाजो और मयांग को ही अपना डेरा बना लिया ।
मयांग में तंत्र-मंत्र की प्रथा आज की नहीं है, यहां यह आठवीं-नौवीं सदी से चली आ रही है,12वीं सदी में बौद्ध संन्यासियों ने मयांग की तंत्र विद्या को हिंदू और बौद्ध ‘गुप्त विद्या’ के एक अनोखे साझा केंद्र के रूप में स्थापित करने में खास योगदान किया । इसके मूल में काला जादू है,यही वजह है कि गुवाहाटी के काफी करीब होने के बावजूद मयांग आधुनिकता से कोसों दूर है ।
मयांग का नाम राजा के नाम पर ही पड़ा,प्रचीन काल से ही मयांग तंत्र-मंत्र विद्या के लिए मशहूर था, इसीलिए पहले अहोम शासक और बाद में ब्रिटिश शासक काचरी साम्राज्य को चुनौती देने का साहस नहीं जुटा सके । वहां लोग दुश्मनों को हराने के लिए वशिकरण विद्या का इस्तेमाल करते थे और त्रिया बंगालन का विद्या से एक ही समय पर बहोत सारे लोगो पर वशिकरण क्रिया के माध्यम से सफलता हासिल करते थे ।
कहा जाता है सन 1332 में आसाम पर मुग़ल बादशाह मोहम्मद शाह ने एक लाख घुड़सवारों के साथ आक्रमण कीया था । तब उस समय गांव में हज़ारों तांत्रिक मौजूद थे, उन्होंने मयांग गांव को बचाने के लिए एक ऐसी जादुई दीवार खड़ी कर दी थी जिसको पार करते ही सैनिक गायब हो जाते थे ।
मयांग गांव में बूढ़े मयांग नाम का एक जगह है, जिसको काले जादू का केंद्र माना जाता है, यहां भगवान शिव, देवी पार्वती एवं श्री गणेश की तांत्रिक प्रतिमा है, जहां सदियों पहले नरबलि दी जाती थी,आज के समय मे यह प्रथा बंद किया गया है । एक विशेष योनि कुंड यहा पर बना हुआ है,जिस पर कई मन्त्र लिखे हैं, मान्यता है कि तंत्र-मंत्र शक्ति के कारण ये कुंड हमेशा पानी से भरा रहता है ।
मयांग में नाटा, कलवा, दायमत, किच्चिन और बिरो से काम करवाया जाता है,इसमे कलवा और भैंसासुर वीर का पूजा ज्यादा होता है । भैंसासुर वीर एक आक्रामक शक्ति होने के साथ-साथ साधक के लिये दयालु शक्ति है परंतु साधक के शत्रुओं के लिए हानिकारक शक्ति है । जो भैंसासुर वीर का साधना करता है,उसको भैंसासुर वीर महाराज हमेशा अभय प्रदान करते है और साधक से प्रेमपूर्वक रहते है । साधक पर जो भी शत्रु हानि पहोचाना चाहता हो उसको भैंसासुर वीर जी दंड भी देते है । षट्कर्म में से कोई भी कर्म स्वयं भैंसासुर वीर साधक को करवा देता है, चाहे साधक किसीका वशिकरण करवाना चाहे या फिर उच्चाटन करवाना चाहे तो भैंसासुर वीर करवा देते है । भैंसासुर वीर के मदत से साधक अन्य लोगो के काम भी करवा देता है । यह मंत्र साधना त्रिया बंगालन जी का है जो तंत्र की महारानी है, माँ कामाख्या के कृपा से त्रिया बंगालन मयांग की जादूगरनी कहलाती थी,आज के समय मे सिर्फ उनका विद्या और मंत्र जीवित है ।

Bhaisasur Veer Sadhana Bidhi :

यह साधना किसी भी अमावस्या से शुरू करके 21 दिनों तक नित्य 3 माला जाप करने से सिद्ध होता है, साधना के समय त्रिया बंगालन के कहेनुसार साधक को काला आसन ओर काले वस्त्र पेहेनना जरूरी है । Bhaisasur Veer साधना रात्रि में 9 बजे के बाद ही सम्पन्न किया जा सकता है, BhaisaSur Veer साधना महाकाली जी के चित्र के सामने सम्पन्न किया जाता है । Bhaisasur Veer साधना में रक्षा कवच आवश्यक है और एक जादूई वनस्पति से बना भैंसासुर वीर (Bhaisasur Veer) प्रत्यक्षीकरण यंत्र जरूरी है, वैसे मयांग में कई प्रकार की जादुई वनस्पति है परंतु उनके नाम सिर्फ वहां के लोग याद रख सकते है क्योके वहां का भाषा अलग है, जो हमारे समझ के बाहर है । जब जरूरत पड़ता है तो वहां के लोगो से “जादुई वीर का वनस्पति चाहिए” ये भी उन्हींके भाषा मे बोलना पड़ता है । इस वनस्पति से बने ताबीज के बिना इस साधना में सफलता प्राप्त करना संभव नही । इस जादुई वीर वनस्पति को 24 घंटे तक लाल कुंकुम के पानी मे भिगाकर रखा जाता है,उसके बाद जब वनस्पति मोटा हो जाता है तो उसी समय उसपर भैंसासुर वीर का आवाहन करके इत्र लगाते है और महुआ के फूलों का हवन करके 108 बार आहुति दिया जाता है,एक नारियल के साथ एक अनार और ग्यारह नींबू का बली दीया जाता है ।
रक्षा कवच को काले धागे में पहनना है और भैंसासुर वीर (Bhaisasur Veer) प्रत्यक्षीकरण यंत्र को काले चावल पर स्थापित करना है,मंत्र याद किये बिना जाप नही किया जा सकता है,इसलिए मंत्र को याद करना जरूरी है और भैंसासुर वीर प्रत्यक्षीकरण यंत्र को देखते हुए जाप करना है । इस (Bhaisasur Veer) साधना में रुद्राक्ष के माला का इस्तेमाल होता है, अन्य किसी भी माला से जाप नही किया जा सकता है ।
मंत्र:-।। ॐ नमो आदेश गुरु का,अड़हुल फुल फुले फुफनर ऊपर बामत योगनी करे सिंणगर,माँस खाए हाड़ जोगवे तब तु बामत जोगनी कहांवे,आदि देवता वीर बजरंगबली भैसासुर को पकड़ बांध लाए और वचनबद्ध कराएं,मेरा इतना काम इसी क्षण आदि देवता वीर बजरंगबली करके नहीं बताए तो (*****यहां मंत्र को गोपनीय रखा जा रहा है****) आदेश गुरु का शब्द सांचा पिंड काचा चले मंत्र ईश्वर वाचा ।। {{ जिनके गुरु नही है वो न करे }}
{{ किसी लालच के वशीभूत होकर साधक यह (Bhaisasur Veer) साधना न करे । योग्य गुरु के निर्देशन में ही करे। कोई इसका दुरुपयोग न कर सके ,इसलिये मन्त्र (Bhaisasur Veer) गोपनीय रखा दिया गया।}}
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