Kundli Matching for Happy Married Life

विवाह प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में एक महत्वपूर्ण हिस्सा है प्राचीन काल से लेकर आज तक विवाह न केवल दो आत्माओं का मिलन रहा है अपितु दो परिवारों के मिलन के रुप में भी देखा जाता है प्राचीन काल में कुंडली मिलान (Kundli Matching) करके विवाह किया जाता था तो विवाह सफल रहता था परंतु आज के आधुनिक युग में युवा कुंडली मिलान के साथ-साथ विवाह करने से पूर्व अपने होने वाले जीवनसाथी के साथ कुछ समय गुजारना चाहता है जिससे वह एक दूसरे के विचारों को समझ सके विचार मिलने के पश्चात दोनों पक्षों के अभिभावक भावी दांपत्य जीवन को सुखी बनाने के लिए पंडित जी के पास कुंडली मिलान (Kundli Matching) कराने के लिए जाते हैं पंडित जी दोनों वर वधु के चंद्रमा का मिलान करके अर्थात गुणों का मिलान करके विवाह की सफलता या असफलता निश्चित कर देते हैं उनके अनुसार यदि कुंडली मिलन (Kundli Matching) में 28 से अधिक गुण मिलते हैं तो विवाह सफल होगा अन्यथा नहीं परंतु कई बार ऐसा करने पर भी कई बार विवाह सफल नहीं हो पाता है ऐसा क्यों ?
क्या कुंडली मिलान करने वालों में उचित ज्ञान का अभाव है ?
क्या चंद्रमा के नक्षत्र द्वारा किए जाने वाला अष्टकूट गुणों का मिलान ही काफी है ?
क्या 28 से अधिक गुणों का मिलान ही वैवाहिक जीवन में सफलता की गारंटी है ?
क्या वर वधु दोनों का मांगलिक होना ही वैवाहिक जीवन में उत्पन्न होने वाली समस्याओं को दूर कर देता है ?
 
निश्चय ही ऐसा होता तो प्रत्येक दंपति जिनके 28 से अधिक 32 गुण मिले हैं तो उनका वैवाहिक जीवन सफल होता परंतु व्यावहारिक रूप में ऐसा देखने को नहीं मिलता विवाह करने से पूर्व कुंडली का मिलान (kundli Matching) किस प्रकार करना चाहिए ? आइए डालते हैं उस पर एक सटीक गणना ज्योतिष के माध्यम से :-

Why Individual Horoscope Analysis is Important Before Kundli Matching :

१) दोनों कुंडलियों में स्वतंत्र रूप से ग्रह अर्थात लग्न वह लग्नेश की स्थिति को ठीक प्रकार से जांचना चाहिए ।
२) दोनों कुंडलियों में स्वतंत्र रूप से दूसरा भाव जो परिवार से संबंधित स्थान है इसको जांच लेना आवश्यक है
३) दोनों कुंडलियों में सुख भाव अर्थात चतुर्थ भाव तथा भावेश की स्थिति को देखना भी आवश्यक है
४) दोनों कुंडलियों में पंचम भाव जो कि संतान से संबंधित स्थान है संतान उत्पत्ति का भाव भी माना जाता है इसे सूक्ष्मता से जांच लेना चाहिए यदि दोनों के पंचम भाव पीड़ित हैं तो, संतान उत्पन्न होने में समस्याएं रहती हैं
५) दोनों कुंडली में विवाह स्थान अर्थात सप्तम भाव भावेश तथा शुक्र की स्थिति को भी गहराई से देख लेना चाहिए सप्तम भाव या शुक्र दोनों कुंडलियों में पीड़ित नहीं होना चाहिए
६) वधू की कुंडली में अष्टम भाव को मांगल्या स्थान कहां जाता है इस भाव पर किसी भी अशुभ ग्रह को पीड़ित नहीं होना चाहिए
७) दोनों कुंडलियों में आयु स्थान अर्थात अष्टम भाव बली होने चाहिए लग्न एवं लग्नेश सदैव अष्टम भाव से बलि होने चाहिए
८) दोनों कुंडलियों में भाग्य स्थान अर्थात नवम भाव को भी सूक्ष्मता से देखना चाहिए यदि दोनों के भाग्य स्थान पीड़ित हैं तो विवाह के बाद भाग्य उदय नहीं होगा
९) दोनों कुंडलियों में शयन सुख का भाव अर्थात द्वादश भाव अशुभ ग्रहों से पीड़ित नहीं होना चाहिए यदि ऐसा होता है तो दोनों को शयन सुख नहीं मिलता अर्थात यौन संबंध संतोषजनक नहीं होते
१०) दोनों कुंडली में जन्म नक्षत्र की स्थिति को भी देख लेना चाहिए वर व वधू दोनों के जन्मकालीन नक्षत्र पीड़ित अवस्था में नहीं होना चाहिए
११) कन्या की कुंडली में विवाह सुख का कारक गुरु ग्रह तथा लड़के की कुंडली में विवाह सुख का कारक शुक्र मजबूत होने चाहिए अन्यथा विवाह सफल नहीं होता
१२) दोनों कुंडलियों को मिलाते (Kundli Matching) समय उनके नवमांश कुंडली पर भी विचार कर लेना चाहिए कोई ग्रह वास्तव में कितना बलि है इसका पता नवमांश से चलता है नवमांश भी नीचस्थ है तो उसकी अशुभता और बढ़ जाएगी
१३)लग्न कुंडली के ग्रहों की स्थिति को चलित कुंडली में भी अवश्य देखना चाहिए चलित कुंडली ग्रहों की वास्तविकता को दर्शाता है
१४) वर की कुंडली में आजीविका के लिए दशम भाव एकादश भाव तथा दूसरे भाव को भी ध्यानपूर्वक देख लेना चाहिए यदि दूसरा भाव व एकादश भाव दोनों पीड़ित हैं तो धन का अभाव सदैव बना रहता है
१५) वधु की कुंडली में चंद्रमा व मंगल की स्थिति को भी ठीक से देखना चाहिए क्योंकि यदि मंगल व चंद्रमा दोनों पीड़ित हैं तो, ऐसी स्त्री को गर्भधारण करने में कठिनाई आती है
१६) कुंडली में यदि शनि बुध को दृष्टि दे तो नपुंसक पति या बाँझ पत्नी की प्राप्ति होती है इससे बचने के लिए वर की कुंडली में शुक्र और वधू की कुंडली में मंगल व गुरु मजबूत होने चाहिए
१७) कुंडली में शुक्र सूर्य से अस्त नहीं होना चाहिए ऐसा होने पर स्त्री व पुरुष दोनों की यौन संबंधों की रूचि कम होती है
१८) कुंडली में विवाह के समय चल रही दशाओं की सूक्ष्मता से परीक्षण करना चाहिए यदि आने वाली दशा नीचस्थ या अशुभ ग्रह की है जोकि सप्तम भाव से संबंध बना रही है तो, आने वाले परिणाम घातक हो सकते हैं
To know more about Tantra & Astrological services, please feel free to Contact Us :
ज्योतिषाचार्य प्रदीप कुमार (मो.) +91- 9438741641 {Call / Whatsapp}

For any type of astrological consultation with Acharya Pradip Kumar, please contact +91-9438741641. Whether it is about personalized horoscope readings, career guidance, relationship issues, health concerns, or any other astrological queries, expert help is just a call away.

Sharing Is Caring:

Leave a Comment