The Secret to a Successful Love Marriage

The Secret to a Successful Love Marriage : 

आपको पता है ज्यादातर प्रेम विवाह (Love Marriage) असफल क्यों हो जाते है । आपको बता दें कि प्रेम विवाह (Love Marriage) की असफलता के बारे में अगर धार्मिक दृष्टि से देखा जाये तो कई कारण होते हैं । प्रथम तो प्रेम विवाह (Love Marriage) करने वालों में कम ही ऐसे लोग हैं जिन्हें माता-पिता का आर्शीवाद प्राप्त होता है । अपने बुजुर्गो का आर्शीवाद बहुत महत्व रखता है ।
प्रेम विवाह में यह भी कोई निश्चित नहीं है कि वर और कन्या दोनों सुजातीय हों । खून बेमेल होने की वजह से भी पति-पत्नी के बीच आपस में कम बनती है । प्रेम विवाह (Love Marriage) में न तो देवी-देवताओं का पूजन होता है न ग्रह शान्ति का हवन पूजन होता है। वास्तु देवता का भी पूजन नहीं होता जिस कारण वर-वधू पर देवताओ की कृपा नहीं होती । ऐसे अनेक धार्मिक कारण हैं जिनके कारण अक्सर असफल हो जाते है ।

How to Make a Love Marriage Successful : 

आपको बता दें कि वर और वधु दोनों की राशियां एक दूसरे से समसप्तक हों या एक से अधिक ग्रह समसप्तक हों । चंद्रमा के एक-दूसरे की कुंडली में समसप्तक होने पर वैचारिक तालमेल उत्तम रहता है । दोनों के शुभ ग्रह समान भाव में हों यानी एक की कुंडली में शुभ ग्रह यदि लग्न, पंचम, नवम या केंद्र में हों और दूसरे के भी इन्हीं भावों में हों । दोनों के लग्नेश और राशि स्वामी एक ही ग्रह हों । एक का सप्तमेश जिस राशि में हो वही दूसरे की राशि हो या दोनों का राशि स्वामी एक ही ग्रह हो । इन उत्तम तालमेल से दाम्पत्य जीवन में आने वाली कई परेशानियां अपने आप दूर हो जाती हैं ।
इतना ही नहीं वर- वधु के लग्नेश, राशि स्वामी या सप्तमेश समान भाव में या एक दूसरे के सम-सप्तक होने पर रिश्तों में प्रगाढ़ता और प्रेम भावना प्रदान करेंगे । एक के सप्तम भाव में जो राशि हो वही दूसरे की नवमांश कुंडली का लग्न हो या दोनों के सप्तमेश की नवमांश राशि दूसरे की चंद्र राशि हो । सप्तम और नवम भाव में राशि परिवर्तन हो तो शादी के बाद भाग्योदय होता है । सप्तमेश ग्यारहवें या द्वितीय भाव में स्थित हो और नवमांश कुंडली में भी सप्तमेश 2, 5 या 11वें भाव में हो तो ऐसी ग्रह स्थिति वाले जीवन साथी से आर्थिक लाभ होता है ।
किसी एक की जन्म कुंडली में लग्नेश व सप्तमेश में राशि परिवर्तन हो-जैसे मेष लग्न की कुंडली में मेष का स्वामी मंगल सप्तम भाव में हो तथा सप्तम भाव का स्वामी शुक्र लग्न में हो तो पति-पत्नी में उत्तम प्रीति रहती है । लग्नेश-सप्तमेश दोनों एक साथ किसी शुभ भाव में युति (एक साथ बैठे हों) करें तो जीवन भर उत्तम सामंजस्य रहता है तथा सम्बन्ध मधुर रहेंगे । इसी प्रकार सप्तमेश व पंचमेश की युति होने पर दाम्पत्य जीवन में अगाध प्रेम रहेगा । इन सभी ग्रह स्थितियों में से जितनी अधिक ग्रह स्थितियां दोनों की कुंडलियों में पाई जाएंगी, उनमें उतनी ही अधिक प्रीति और सामंजस्य होकर गृहस्थ जीवन सुखी रहेगा ।
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जय माँ कामाख्या

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