उच्छिष्ट गणपति मंत्र साधना

यह दिव्य तांत्रिक साधना अत्यन्त सरल, शीघ्र फल को प्रदान करने वाला, अन्न और धन की वृद्धि के लिए, वशीकरण को प्रदान करने वाला भगवान गणेश जी का ये दिव्य तांत्रिक साधना है । इसकी साधना करते हुए मुह को जूठा रखा जाता है एवं सुबह दातुन भी करना वर्जित है ।
उच्छिष्ट गणपति साधना को जीवन की पूर्ण साधना कहा है । मात्र इस एक साधना से जीवन में वह सब कुछ प्राप्त हो जाता है, जो अभीष्ट लक्ष्य होता है । अनेक इच्छाएं और मनोरथ पूरे होते हैं । इससे समस्त कर्जों की समाप्ति और दरिद्रता का निवारण, निरंतर आर्थिक-व्यापारिक उन्नति, लक्ष्मी प्राप्ति, रोजगार प्राप्ति, भगवान गणपति के प्रत्यक्ष दर्शनों की संभावना भी है । यह साधना किसी भी बुधवार को रात्री मे संपन्न किया जा सकता है ।
अगर किसी पर तांत्रोत्क भूत-प्रेत-पिशाच,कलवा-स्मशानी-जिन-जिन्नात-कृत्या-मारण जैसे अभिचार प्रयोग हुआ हो तो उच्छिष्ट गणपति शत्रु की गन्दी क्रियाओं को नष्ट करके रक्षा करते हैं ।
साधक निम्न सामग्री को पहले से ही तैयार कर लें, जिसमें जल पात्र, केसर, कुंकुम, चावल, पुष्प, माला, नारियल, दूध,गुड़ से बना खीर, घी का दीपक, धूप-अगरबत्ती, मोदक आदि हैं । इनके अलावा उच्छिष्ट गणपति यंत्र और मुंगे की माला की आवश्यकता होती ही है ।
सर्वप्रथम साधक, स्नान कर,लाल वस्त्र पहन कर,आसन भी लाल रंग का हो, पूर्व/उत्तर की ओर मुख कर के बैठ जाए और सामने उच्छिष्ट गणपति सिद्धि यंत्र को एक थाली में, कुंकुम से स्वस्तिक बनाकर, स्थापित कर ले और फिर हाथ जोड़ कर भगवान गणपति का ध्यान करें ।

Ucchistha Ganapati Mantra Viniyoga :

ॐ अस्य श्रीउच्छिष्ट गणपति मंत्रस्य कंकोलऋषि:, विराट छन्द : उच्छिष्टगणपति देवता सर्वाभीष्ट सिद्ध्यर्थे जपे विनियोग: ।
Ucchistha Ganapati Mantra Dhyan :
सिंदुर वर्ण संकाश योग पट समन्वितं लम्बोदर महाकायं मुखं करि करोपमं अणिमादि गुणयुक्ते अष्ट बाहुत्रिलोचनं विग्मा विद्यते लिंगे मोक्ष कमाम पूजयेत ।
ध्यान मंत्र बोलने के बाद अपना कोइ भी एक इच्छा बोलकर यंत्र पर एक लाल रंग का पुष्प अर्पित करे ।
Ucchistha Ganapati Mantra ( Dwadashkshar)
।। ॐ ह्रीं गं हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा ।। {{मंत्र का नित्य 21 माला जाप 11 दिनो तक करना है ।}}
Ucchistha Ganapati Mantra (Bali Mantra)
।। ॐ गं हं क्लौं ग्लौं उच्छिष्ट गणेशाय महायक्षायायं बलि: ।। {{अंत में अनार का बलि प्रदान करें ।}}
अंत में शुद्ध घृत से भगवान गणपति की आरती संपन्न करें और प्रसाद वितरित करें । इस प्रकार से साधक की मनोवांछित कामनाएं निश्चय ही पूर्ण हो जाती हैं और कई बार तो यह प्रयोग संपन्न होते ही साधक को अनुकूल फल प्राप्त हो जाता है। कलियुग मे यह साधना शिघ्र फलदायी माना जाता है ।
 
ज्योतिषाचार्य प्रदीप कुमार
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