वनस्पति यक्षिणि साधना कैसे करें?

कुछ ऐसी यक्षिणियां भी होती हैं , जिनका वास किसी विशेष वनस्पति ( वृक्ष – पौधे ) पर होता है । उस वनस्पति का प्रयोग करते समय उस यक्षिणी (Vanaspati Yakshini) का मंत्र जपने से विशेष लाभ प्राप्त होता है । वैसे भी वानस्पतिक यक्षिणि साधना (Vanaspati Yakshini Sadhana) की जा सकती है । अन्य यक्षिणियों की भांति वे भी साधक की कामनाएं पूर्ण करती हैं ।
वानस्पतिक यक्षिणियों (Vanaspati Yakshini) के मंत्र भी भिन्न हैं । कुछ बंदों के मंत्र भी प्राप्त होते हैं । इन यक्षिणि साधना में काल की प्रधानता है और स्थान का भी महत्त्व है ।
जिस ऋतु में जिस वनस्पति का विकास हो , वही ऋतु इनकी साधना में लेनी चाहिए । वसंत ऋतु को सर्वोत्तम माना गया है । दूसरा पक्ष श्रावण मास ( वर्षा ऋतु ) का है । स्थान की दृष्टि से एकांत अथवा सिद्धपीठ कामाख्या आदि उत्तम हैं । साधक को उक्त साध्य वनस्पति की छाया में निकट बैठकर उस यक्षिणी के दर्शन की उत्सुकता रखते हुए एक माह तक मंत्र – जप करने से सिद्धि प्राप्त होती हैं ।
बनस्पति यक्षिणि (Vanaspati Yakshini) साधना के पूर्व आषाढ़ की पूर्णिमा को क्षौरादि कर्म करके शुभ मुहूर्त्त में बिल्वपत्र के नीचे बैठकर शिव की षोडशोपचार पूजा करें और पूरे श्रावण मास में इसी प्रकार पूजा – जप के साथ प्रतिदिन कुबेर की पूजा करके निम्नलिखित कुबेर मंत्र का एक सौ आठ बार जप करें –
” ॐ यक्षराज नमस्तुभ्यं शंकर प्रिय बांधव ।
एकां मे वशगां नित्यं यक्षिणी कुरु ते नमः ॥
इसके पश्चात् अभीष्ट यक्षिणि साधना मंत्र का जप करें । ब्रह्मचर्य और हविष्यान्न भक्षण आदि नियमों का पालन आवश्यक है । प्रतिदिन कुमारी पूजन करें और जप के समय बलि नैवेद्य पास रखें । जब यक्षिणी मांगे , तब वह अर्पित करें । वर मांगने की कहने पर यथोचित वर मांगें । द्रव्य प्राप्त होने पर उसे शुभ कार्य में भी व्यय करें ।
यह विषय अति रहस्यमय है । सबकी बलि सामग्री , जप – संख्या , जप – माला आदि भिन्न – भिन्न हैं । अतः साधक किसी योग्य गुरु की देख – रेख में पूरी विधि जानकर यक्षिणि (Vanaspati Yakshini) साधना करें , क्योंकि यक्षिणी देवियां अनेक रुप में दर्शन देती हैं उससे भय भी होता है । वानस्पतिक यक्षिणियों (Vanaspati Yakshini) के वर्ग में प्रमुख नाम और उनके मंत्र इस प्रकार हैं –
बिल्व यक्षिणी –
मंत्र : “ॐ क्ली ह्रीं ऐं ॐ श्रीं महायक्षिण्यै सर्वेश्वर्यप्रदात्र्यै ॐ नमः श्रीं क्लीं ऐ आं स्वाहा ।”
इस यक्षिणि साधना से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है ।
निर्गुण्डी यक्षिणी –
मंत्र : “ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः ।”
इस यक्षिणि साधना से विद्या – लाभ होता है ।
अर्क यक्षिणी –
मंत्र :”ॐ ऐं महायक्षिण्यै सर्वकार्यसाधनं कुरु कुरु स्वाहा ।”
सर्वकार्य साधन के निमित्त यह यक्षिणि साधना करनी चाहिए ।
श्वेतगुंजा यक्षिणी –
मंत्र : “ॐ जगन्मात्रे नमः ।”
इस यक्षिणी की साधना से अत्याधिक संतोष की प्राप्ति होती है ।
तुलसी यक्षिणी –
मंत्र : “ॐ क्लीं क्लीं नमः ।”
राजसुख की प्राप्ति के लिए इस यक्षिणी की साधना की जाती है ।
कुश यक्षिणी –
म्मंत्र : “ॐ वाड्मयायै नमः ।”
वाकसिद्धि हेतु इस यक्षिणी की साधना करें ।
पिप्पल यक्षिणी –
मंत्र :”ॐ ऐं क्लीं मे धनं कुरु कुरु स्वाहा ।”
इस यक्षिणी की साधना से पुत्रादि की प्राप्ति होती है । जिनके कोई पुत्र न हो , उन्हें इस यक्षिणी की साधना करनी चाहिए ।
उदुम्बर यक्षिणी –
मंत्र : “ॐ ह्रीं श्रीं शारदायै नमः ।”
विद्या की प्राप्ति के निमित्त इस यक्षिणी की साधना करें ।
अपामार्ग यक्षिणी –
मंत्र : “ॐ ह्रीं भारत्यै नमः ।”
इस यक्षिणी की साधना करने से परम ज्ञान की प्राप्ति होती है ।
धात्री यक्षिणी –
मंत्र : “ऐं क्लीं नमः ।”
इस यक्षिणी के मंत्र – जप और करने से साधना से जीवन की सभी अशुभताओं का निवारण हो जाता है ।
सहदेई यक्षिणी –
मंत्र : “ॐ नमो भगवति सहदेई सदबलदायिनी सदेववत् कुरु कुरु स्वाहा ।”
इस यक्षिणी की साधना से धन – संपत्ति की प्राप्ति होती है । पहले के धन की वृद्धि होती है तथा मान – सम्मान आदि इस यक्षिणी की कृपा से सहज ही प्राप्त हो जाता है ।
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