अघोर कपाल साधना :
अघोर कपाल साधना एक प्राचीन तांत्रिक साधना से एक है जिसमे ब्यक्ति तांत्रिक मार्ग से आध्यत्मिक उन्नति की और बढ़ता है । यह प्राकृतिक शक्तियों का उपयोग करके अपना साधना सम्पूर्ण करके अपना लक्ष्य स्थल तक पहंचते हैं , बोला जाए तो यह साधना एक अद्दितीय साधना माना जाता है । जिसे समझने और अभ्यास करने केलिए बिशेष ध्यान और गुरु की मार्गदर्शन की आबश्यकता जरुरी है ।
अघोर कपाल साधना बिधि :
अघोर पुरुष साधना लघभग शव साधना जैसी ही है मगर साधना के अंतिम चरणों में बदलाव आ जाता है । इस अघोर पुरुष साधना में अघोर पुयूआह् की साधना की जाती है । ये मुख्यतः अमव्यस्या या ग्रहण वाली मध्यरात्रि को की जाती है । इस क्रिया में जलती चिता से मुर्दे को खीच कर बहार निकल जाता है यदि मुर्दा बिलकुल जल गया है तो वो किसी काम का नहीं । फिर उस मुर्दे के चारो और सुरक्षा लिख खिची जाती है और फिर खुद के चारो तरफ।फिर विभिंन्न मंत्रो के द्वारा और मुर्दे को मांस मदिरा मिठाइयां और अपने रक्त का भोग देकर उसको सिद्ध किया जाता है । इसके बाद मुर्दे को वापिस चिता में रख कर जलाया जाता है लेकिन ध्यान रखा जाता है की किसी भी हालात में उसका कपाल खण्डित न हो पाये । और फिर उसके कपल को सरीर से अलग कर उसको भोग देकर मंत्रो से सिद्ध कर लिया जाता है । यही अघोरी की पहली सीधी है । ये सिद्धि प्रपात होते ही आगे की सिद्धियों का मार्ग ये सइद्धि स्वयं बताई है और उनका फल प्रपात करने में सहायता करती है ।
ये केवल सामान्य जानकारी है । भूल से भी ये अघोर कपाल साधना क्रिया बिना गुरु आज्ञा और बिना गुरु के साथ हुए न करे । वतन अपने नुकसान के आप स्वयं जिम्मेदार होंगे ।
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ज्योतिषाचार्य प्रदीप कुमार – मो. 9438741641 {Call / Whatsapp}
जय माँ कामाख्या