ज्योतिष और अध्ययन :
अध्ययन : ज्योतिष आपके अध्ययन में अनुकूल परिस्थितिओं का निर्माण करता है । विद्यार्थी को यही शिक्षा दी जाती है कि अध्ययन में कठोर मेहनत का कोई विकल्प नहीं है, लेकिन अभिभावक यह ध्यान रख सकते हैं कि अध्ययन के साथ साथ उसे बाहरी सहायता क्या दी जाए ।
ग्रहों से मिलने वाली सहायता लेने पर विद्यार्थी कई बार बेहतर प्रदर्शन करते हैं । इस लेख में हम अध्ययन में सहायता करने वाले और बाधा पैदा करने वाले ग्रहों के बारे में जानेंगे ।
किसी जातक की कुण्डली में पांचवे भाव से आरंभिक शिक्षा अध्ययन और नौंवे भाव से उच्च शिक्षा अध्ययन देखी जाती है । जिस वातावरण में विद्यार्थी पढ़ता है वह वातावरण चौथे भाव से देखा जाता है ।
चीजों को देखने के लिए विद्यार्थी का क्या दृष्टिकोण है, यह चंद्रमा की स्थिति से देखा जाता है । जो शिक्षा विद्यार्थी अर्जित कर रहा है उसे दसवें यानी कर्म भाव और पांचवे या नौवें भाव के संबंध से समझा जाता है ।
कुण्डली में चौथे भाव में शुभ ग्रह हों, चतुर्थ भाव का अधिपति शुभ प्रभाव में हो तो अध्ययन के दौरान घर का वातावरण शांत और सौम्य रहता है । इससे विद्यार्थी को अध्ययन में सहायता मिलती है ।
पांचवे भाव में शुभ ग्रह बैठे हों और पांचवे भाव का अधिपति शुभ प्रभावों में हो तो विद्यार्थी की प्रारंभिक शिक्षा अध्ययन अच्छी होती है । ऐसे छात्र दसवीं की परीक्षा और कई बार स्नातक स्तर की परीक्षाओं में शानदार परिणाम देते हैं ।
नौंवे भाव में शुभ ग्रह होने तथा नवमेश के शुभ प्रभाव में होने पर जातक उच्च अध्ययन में शानदार परिणाम देता है । किसी जमाने में स्नातकोत्तर को उच्च अध्ययन समझा जाता था, अब शिक्षा के प्रसार के बाद पीएचडी अथवा पोस्ट डॉक्टरल को हम उच्च शिक्षा अध्ययन की श्रेणी में रख सकते हैं ।
अगर पांचवां भाव बेहतर न हो और नौंवा भाव शुभ हो तो स्नातक स्तर तक औसत प्रदर्शन करने वाला छात्र भी उच्च अध्ययन के दौरान बेहतर परिणाम पेश करता है ।
चंद्रमा मन का कारक ग्रह है । अगर मानसिकता मजबूत हो तो जातक हर तरह के बेहतर परिणाम दे सकता है । अध्ययन में भी यही बात लागू होती है । चौथा, पांचवां और नौंवा भाव बेहतर होने के बावजूद चंद्रमा खराब होने पर विद्यार्थी को एकाग्रता में कमी और चिड़चिड़ेपन की समस्या हो सकती है ।
इसके लिए एक सामान्य उपचार यह बताया जाता है कि इम्तिहान के दिनों में विद्यार्थी को नियमित रूप से चांदी की कटोरी में मक्खन मथकर खिलाया जाए तो वह अधिक एकाग्रता से अध्ययन कर सकता है ।
अगर चंद्रमा से राहू, केतू अथवा शनि की युति अथवा दृष्टि हो तो राहू एवं चंद्रमा के उपचार भी कराने की जरूरत होती है । अध्ययन के लिए किसी जातक का गुरु बेहतर होना जरूरी है । वह जातक को जीवन में स्थायीत्व एवं साख दिलाता है ।
आज जब शिक्षा ही इन दोनों का आधार है तो हम गुरु को शिक्षा अध्ययन से जोड़कर भी देखते हैं । सामान्य तौर पर कुण्डली का बारहवां भाव खर्च का भाव है । किसी ग्रह के बारहवें भाव में होने पर उस ग्रह से संबंधित कारकों का ह्रास होता है, लेकिन गुरु के मामले में इससे ठीक उल्टा होता है । यानी बारहवें भाव में बैठा गुरु शिक्षा अध्ययन संबंधी योग को कम करने के बजाय बढ़ाने का काम करता है ।
कई मामलों में शुक्र के साथ भी ऐसा देखा गया है । शुक्र भी देवताओं के गुरु हैं । गुरु और शुक्र में मूल अंतर यह रहता है कि शुक्र सांसारिकता एवं विलासिता अथवा इससे संबंधित शिक्षा अध्ययन में बढ़ोतरी करता है ।
राशियों के अनुसार आराध्य देव :
मेष : मेष राशि के विद्यार्थियों की शिक्षा के लिए सूर्य सहायक है । ऐसे जातकों को रोजाना सुबह सूर्य नमस्कार करना चाहिए और सूर्य भगवान को अर्ध्य देना चाहिए । इन छात्रों का रूटीन जितना नियमित होगा, पढ़ाई में उतने ही अच्छे परिणाम हासिल कर पाएंगे ।
वृष : वृष राशि के जातकों को के लिए पढ़ाई का कारक ग्रह बुध है । इन जातकों को नियमित रूप से गणेशजी की आराधना करनी चाहिए । इन जातकों को बार-बार रिवीजन करते रहने की जरूरत है ।
मिथुन : मिथुन राशि के जातकों के लिए शुक्र पढ़ाई का कारक है । ऐसे जातकों को देवी आराधना करना लाभदायी है। पढ़ते समय कमरे का वातावरण अगर खुश्बूदार होगा तो ये बेहतर एकाग्र हो पाएंगे।
कर्क : कर्क राशि के जातकों की पढ़ाई के लिए मंगल कारक ग्रह है । नियमित अध्ययन के साथ रोजाना हनुमान मंदिर जाने से परीक्षाओं में अंकों का प्रतिशत तेजी से बढ़ सकता है ।
सिंह : सिंह राशि के जातकों के लिए गुरु पढ़ाई का कारक है। नियमित रूप से गायत्री मंत्र का जाप करना और विष्णु मंदिर जाने से छात्रों को विद्याध्ययन में लाभ होगा ।
कन्या & तुला : कन्या एवं तुला राशि के छात्रों के लिए शनि की आराधना लाभदायक रहती है । रोजाना शनि मंदिर जाना और प्रत्येक शनिवार तेल एवं तिल की वस्तुएं चढ़ाने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं।
वृश्चिक : वृश्चिक राशि के छात्रों के लिए गुरु शिक्षा दिलाने वाला है । सरस्वती मंत्र का जाप करने और सरस्वती के मंदिर जाना लाभदायक सिद्ध हो सकता है ।
धनु : धनु राशि के लिए मंगल कारक है। इन छात्रों को नियमित रूप से हनुमान मंदिर जाना चाहिए ।
मकर : मकर राशि के छात्र देवी आराधना कर शिक्षा में बेहतर परिणाम हासिल कर सकते हैं ।
कुंभ : कुंभ राशि के जातकों को गणपति की आराधना करने से अध्ययन क्षेत्र में सफलता मिलेगी
मीन : मीन राशि के छात्रों के लिए चंद्रमा शिक्षा का कारक है। ये छात्र शिव आराधना कर अच्छे परिणाम हासिल कर सकते हैं ।
सरस्वती मंत्र :
पढ़ाई में लगे विद्यार्थियों को सरस्वती मंत्र का जाप करने से पढ़ी सामग्री को तेजी से याद करने और उसे बेहतरीन तरीके से प्रस्तुत करने में सहायता मिल सकती है । तंत्र में बीजमंत्र से युक्त सरस्वती मंत्र को महामंत्र तक कहा गया है ।
“ऐं वद् वद् वाग्वादिनी स्वाहा”
हालांकि तंत्र में इस मंत्र को सिद्ध करने के लिए बड़ी संख्या में जाप करने के लिए कहा जाता है, लेकिन विद्यार्थी रोजाना सुबह नहा धोकर, साफ सुथरे आसन पर बैठकर एक माला का जाप नियमित रूप से करे तो कुछ ही महीनों में इसका शानदार परिणाम दिखाई देने लगता है ।
अगर जाप करने से पूर्व ग्यारह बार अनुलोम विलोम प्राणायाम किया जाए तो विद्यार्थी की इडा और पिंगला दोनों नाडि़यां चलने लगती है और मंत्र अधिक तेजी से सिद्ध होता है । किसी भी विद्यार्थी के लिए सुबह पंद्रह मिनट की यह प्रक्रिया अपनाना मुश्किल नहीं है । इससे शिक्षा संबंधी शानदार परिणाम हासिल किए जा सकते हैं ।
चंद्र है महत्वपूर्ण :
कुछ विद्यार्थी अलसुबह जल्दी उठकर पढ़ते हैं, तो कुछ देर रात तक जागकर पढ़ते हैं । हर विद्यार्थी की अपनी जैविक घड़ी होती है, जिसके अनुसार वह अपने पढ़ने का समय निर्धारित कर लेता है । इसके बावजूद देखा यह गया है कि सुबह तड़के उठकर पढ़ने वाले विद्यार्थी परीक्षाओं में बेहतर परिणाम हासिल करते हैं ।
परीक्षाओं के दिनों में भले ही यह क्रम न बना रहे, लेकिन पूरे साल की जाने वाली पढ़ाई में रात की तुलना में सुबह का समय बेहतर बताया गया है । इसका प्रमुख कारण यह है कि दिन के समय चंद्रमा सक्रिय होता है तो रात के समय शुक्र ।
चंद्रमा के काल में की गई पढ़ाई न केवल सात्विक और शुद्ध होती है, बल्कि लंबे समय तक काम आने वाली होती है, वहीं शुक्र के प्रभाव में किया गया अध्ययन दीर्ध अवधि तक काम नहीं आ पाता है ।
शिक्षा-विषय चयन :
1. विषय प्रवेश शिक्षा की महत्ता इसी तथ्य से स्पष्ट होती है कि भारतीय हिन्दू दर्शन में शिक्षा को माँ सरस्वती की देन माना गया है और भारत में शिक्षा एक संवैधानिक अधिकार भी है ।
अगर अच्छे प्रारंभिक संस्कार और जातक की प्रवृत्ति अनुसार शिक्षा मिल जाये तो जातक को उन्नति और प्रगति की ओर अग्रसर होने में आसानी होती है। प्राचीन समय में शिक्षा का दायरा सीमित था । आजकल शिक्षा की अनेक सूक्ष्म शाखाएं हो गयी हैं परन्तु आधारभूत विषय तीन ही हैं साइंस, कॉमर्स और आर्ट्स । विद्यार्थियों को ग्यारहवीं कक्षा में ही इनमें से किसी एक का चयन करना पड़ता है और कई बार विद्यार्थी निर्णय नहीं ले पाता कि वह किस विषय का चयन करे । ऐसी भ्रमित परिस्थितियों में ज्योतिषीय सलाह ही इस लेख का विषय है ।
2. ग्रह और शिक्षा की दिशा उपलब्ध शिक्षा विषयों में साइंस को तकनीकी, कॉमर्स को अर्ध-तकनीकी और आर्ट्स को अतकनीकी कह सकते हैं । ज्योतिषीय दृष्टिकोण से नैसर्गिक अशुभ ग्रह (शनि, मंगल, सूर्य, राहु और केतु) जातक का रुझान तकनीकी विषयों में कराते हैं । नैसर्गिक शुभ ग्रह (गुरु, शुक्र, बुध और चन्द्र) जातक का रुझान अतकनीकी विषयों में कराते हैं । अगर दोनों प्रकार के प्रभावों का मिश्रण हो तो अर्ध-तकनीकी विषयों की तरफ रुझान होता है । चयन के समय की महादशा का प्रभाव भी जातक के रुझान पर पड़ता है ।
3. भाव और ग्रह द्वितीय भाव से प्रारंभिक संस्कार, चतुर्थ भाव से स्कूली शिक्षा (जब तक किसी चयन की आवश्यकता न हो) और पंचम से चयन एवं उसके पश्चात् की शिक्षा देखी जाती है । बदलते समय के कारण भावों के सम्बन्ध में कुछ मत भिन्नता भी है । इसके अतिरिक्त, बुध की स्थिति और बुध से पंचम का आकलन भी आवश्यक है क्योंकि बुध व्यावहारिक बुद्धि, श्रवण-स्मृति और विश्लेषणात्मक क्षमता के भी कारक हैं ।
अच्छी शैक्षणिक योग्यता के महत्वपूर्ण योग :
1. द्वितीयेश या बृहस्पति केन्द्र या त्रिकोण में स्थित हो ।
2. पंचम भाव में बुध की स्थिति अथवा दृष्टि या बृहस्पति और शुक्र की युति हो ।
3. पंचमेश की पंचम भाव में बृहस्पति या शुक्र के साथ युति हो ।
4. बृहस्पति , शुक्र और बुध में से कोई केन्द्र या त्रिकोण में हो ।
शैक्षणिक योग्यता का अभाव या न्यूनता: –
1. पंचम भाव में शनि की स्थिति और उसकी लग्नेश पर दृष्टि हो।
2. पंचम भाव पर अशुभ ग्रहों की दृष्टि या अशुभ ग्रहों की स्थिति हो।
3. पंचमेश नीच राशि में हो और अशुभ ग्रहों से दृष्ट हो।
विभिन्न ग्रहों के शिक्षा सम्बन्धी प्रतिनिधित्व का विवरण अंकित किया जा रहा हैं जिसके आधार पर ग्रहों की उपरोक्त भावों में स्थिति को देखकर जातक के लिए उपयुक्त विषय का चयन किया जा सकता हैं।
सूर्य: – चिकित्सा, शरीर विज्ञान, प्राणीशास्त्र, नेत्र-चिकित्सा, राजभाषा, प्रशासन, राजनीति, जीव विज्ञान।
चन्द्र: – नर्सिंग, नाविक शिक्षा, वनस्पति विज्ञान, जंतु विज्ञान (जूलोजी), होटल प्रबन्धन, काव्य, पत्रकारिता, पर्यटन, डेयरी विज्ञान, जलदाय
मंगल: – भूमिति, फौजदारी, कानून, इतिहासस, पुलिस सम्बन्धी प्रशिक्षण, ओवर-सियर प्रशिक्षण, सर्वे अभियांत्रिकी, वायुयान शिक्षा, शल्य चिकित्सा, विज्ञान, ड्राइविंग, टेलरिंग या अन्य तकनीकी शिक्षा, खेल कूद सम्बन्धी प्रशिक्षण , सैनिक शिक्षा, दंत चिकित्सा
गुरू: – बीजगणित, द्वितीय भाषा, आरोग्यशास्त्र, विविध, अर्थशास्त्र, दर्शन, मनोविज्ञान, धार्मिक या आध्यात्मिक शिक्षा।
बुध: – गणित, ज्योतिष, व्याकरण, शासन की विभागीय परीक्षाएं, पर्दाथ विज्ञान, मानसशास्त्र, हस्तरेखा ज्ञान, शब्दशास्त्र (भाषा विज्ञान), टाइपिंग, तत्व ज्ञान, पुस्तकालय विज्ञान, लेखा, वाणिज्य, शिक्षक प्रशिक्षण।
शुक्र: – ललितकला (संगीत, नृत्य, अभिनय, चित्रकला आदि), फिल्म, टी0वी0, वेशभूषा, फैशन डिजायनिंग, काव्य साहित्य एवं अन्य विविध कलाएं।
शनि: – भूगर्भशास्त्र, सर्वेक्षण, अभियांत्रिकी, औद्योगिकी, यांत्रिकी, भवन निर्माण, मुद्रण कला (प्रिन्टिंग)।
राहु: – तर्कशास्त्र, हिप्नोटिजम, मेस्मेरिजम, करतब के खेल (जादू, सर्कस आदि), भूत-प्रेत सम्बन्धी ज्ञान, विष चिकित्सा, एन्टी बायोटिक्स, इलेक्ट्रोनिक्स।
केतु: – गुप्त विद्याएं, मंत्र-तंत्र सम्बन्धी ज्ञान।
वैज्ञानिक और औद्योगिक प्रगति के कारण व्यवसायों एवं शैक्षणिक विषयों की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि होती जा रही हैं । अतः ज्योतिष सिद्धान्तों के आधार पर ग्रहों के पारस्परिक सम्बन्धों को ध्यान में रखते हुए विचार किया जा सकता हैं ।
ज्योतिष में उच्च शिक्षा के योग :
आज के समय में व्यक्ति की सफलता उसकी शिक्षा पर निर्भर करती हैं। शिक्षित्त व्यक्ति हर जगह मान सम्मान व यश प्राप्त करता हैं । शिक्षित व्यक्ति अपने परिवार एवम अपने देश का उपकार करने वाला होता हैं । आज के समय में अत्यधिक प्रतिस्पर्धा की वजह से शिक्षित होना नितांत आवश्यक हैं । जो व्यक्ति जितना शिक्षित होगा उसे कार्य क्षेत्र में उतना ही बडा ओहदा प्राप्त होता हैं।
आज के समय में माता-पिता कि सबसे बडी समस्या होती हैं, कि उनकी संतान की शिक्षा कैसी होगी। आज मैं आपको उच्च शिक्षा के कुछ महत्वपूर्ण योगों के बारे में जानकारी यंहा दे रहा हूँ …
1- जन्म कुंडली में गुरु, शुक्र व बुध की युक्ति पंचम द्वितिय या नवम स्थान में हो तो जातक विद्वान होता हैं व उच्च शिक्षा प्राप्त करता हैं। ऐसा जातक विभिन्न विषयों मे पारंगत होता हैं । अपने कुल व परिवार के नाम को रोशन करने वाला होता हैं। इस योग को सरस्वति योग के नाम से भी जाना जाता हैं ।
2- दूसरे व पंचम भाव के मालिक एक साथ त्रिकोण (5,9) स्थान में स्थित हो तो जातक उच्च शिक्षा प्राप्त करता हैं ।
3- बुध व गुरु उच्च के हों अथवा बली हो, दूसरें स्थान का मालिक तीसरे या अष्टम भाव में मित्र राशी का हो तो जातक विदेश में उच्च शिक्षा प्राप्त करता हैं ।
4- दूसरे या पांचवे स्थान का मालिक बली हो तथा लग्न में शुभ ग्रह होने पर जातक को उच्च शिक्षा प्राप्त होती हैं। व्यक्ति को उचित माहौल प्राप्त होता हैं ।
5- जन्म कुंडली में पापी ग्रह उच्च के हो व लग्नेश के मित्र हो, तथा पांचवें भाव में शुभ ग्रहों का प्रभाव उच्च शिक्षा के योग बनाता हैं ।
6- दूसरे भाव के मालिक व पंचम भाव के मालिक में राशि परिवर्तन होने तथा शुभ ग्रह की दशा हो तो व्यक्ति उच्च शिक्षा प्राप्त करता हैं ।
7- शुक्र व गुरु की युक्ति व्यक्ति को उच्च शिक्षा देता हैं ।
8- दशमेष उच्च का हों तथा पंचमेश से समबंध बनायें तो जातक अच्छी शिक्षा प्राप्त करता हैं। इस योग में जातक ऐडवाइजर, प्रबंधक (मेनेजर), प्रिन्सिपल, व लीडर होता हैं ।
9- जन्म कुंडली में चंद्र उच्च का हो तथा शुभ ग्रहों से युक्त हो तो भी जातक उच्च शिक्षा प्राप्त करता हैं ।
10- यदि अष्टम या तृतिय भाव का मालिक शुभ ग्रह हो एवम उच्च का हो साथ ही दूसरे या पांचवे स्थान में स्थित हो तो जातक उच्च शिक्षा प्राप्त करता हैं ।
11- शनि बली हो और मित्र लग्न हो, 1,2,5,10 स्थान में स्थित हो तो बडी उम्र तक शिक्षा प्राप्त करता हैं। और शिक्षा के क्षेत्र में बडी उपलब्धी हासिल करता हैं ।
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