अबधूत मंत्र साधना :

अबधूत मंत्र साधना :

अबधूत मंत्र साधना एक आध्यात्मिक अभ्यास की एक विशेष प्रकार है जिसमें मंत्रों का उच्चारण और ध्यान के माध्यम से आत्मा का परिपूर्णता की प्राप्ति का प्रयास किया जाता है । यह एक प्राचीन आध्यात्मिक परंपरा से जुड़ा हुआ है जिसमें शब्दों और मंत्रों की शक्ति को मान्यता दी जाती है ।

अबधूत मंत्र साधना का मुख्य उद्देश्य मानसिक शांति, आत्मा के उन्नति और आध्यात्मिक जागरण की प्राप्ति होती है । इस साधना में, योगी या साधक विशिष्ट मंत्रों का जाप करते हैं और उन्हें अपने मन को शांत और ध्यानयोग में स्थित रखने का प्रयास करते हैं । मंत्रों का उच्चारण और सुनने से आत्मा की ऊर्जा को नवा किया जाता है और यह मानसिक तनाव को कम करने में मदद करता है ।

अबधूत मंत्र साधना को अभ्यास करने के लिए, योगी को नियमित रूप से बैठकर ध्यान करना होता है और उन्हें मंत्रों का जाप करने के लिए समय निकालना पड़ता है । इसके अलावा, शुद्ध आहार, योगासन और प्राणायाम जैसे आध्यात्मिक अभ्यास भी साधक को साधना में सहायक होते हैं ।

यह ध्यान की विशेष रूप है जो आत्मा के अंतर्गत गहराईयों तक पहुँचने की कोशिश करता है । अबधूत मंत्र साधना में सफलता प्राप्त करने के लिए, सतत प्रैक्टिस और आध्यात्मिक गुरु की मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है ।

इस अद्वितीय साधना के माध्यम से, योगी अपने आत्मा के अंतर्गत नए दर्शन और ज्ञान का अनुभव करते हैं और अपने जीवन की दिशा में सकारात्मक परिवर्तन का अनुभव करते हैं । यह साधना आत्मा की महत्वपूर्णता को समझने में मदद करती है और आध्यात्मिक सफलता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकती है ।

अबधूत मंत्र साधना गायत्री :

ओम संत नमो आदेश गुरुजी को आदेश।
ओम गुरुजी। अबधु-अबधु भाई-भाई अबधू खोजो घटके माही।
एक अबधू का सकल पंसारा एक अबधू सभी से न्यारा। उस
अबधू की संगत करना जिस संगति से पार उतरना।
उतराखण्ड से जोगण आयी उंची चढ के ब्रह्मा
जगायो नाद बजायी ऐसा योगी कभी नहीं आया शैली सिंगी
बटुआ लाया। बटाबें में काली नागिनी काली
नागण किसकी चेली, गंगन मण्डल में फिरे अकेली काली नागण
को मारके तले बिछालों मेरे भाई, तब न होगी आबाज भाई। हम
बिगडे सो बिगडे भाई तुम बिगडे सो राम दुहाई। हमारे गुरु तो
बहुरंगी सबके संगी सबका भेद बतायेंगे अनघड चेले
फिर अकेले जती-सती को शीश नमायेंगे। इस ज्ञान से दुनिया में
योगी कहलायेंगे। पात्र फोड पबित्र कर दुं हुकम का मुख काला
राजा कर दुं भस्म मंढी मसाणी ढेला डूंगरा रुंख बृख्य की छाया, सुनरे
हंसा कहा से आया। तीन लोक से आया। सब कुल की लज्जा मिटा,
सब दर भिख्या करने जा कोढी कपडी के हाथ की भिख्या न लेना कोढी कपटी कैसे
जीते कैसे हारे। हिन्दु तुर्क एक ही जान चलती पबन रोक दुं धरती।
आसमान उलट दुं पलट दुं रोडीया-खोडीया दुण्डीया हाथी नौबत कर दुं। उल्टी
खाक रस्ता सुरसुरी भुरसरी योगेश्वर बढे योग के ध्यानी, कौन चेला लोभी,
कौन लालची, औडलो कपडा दूध का दूध पानी का पानी।
सिद्ध का मार्ग साधक कर जानी यह अबधूत गायत्री जाप पूर्ण भया।
गंगा गोदाबरी त्यंब्रक खेत्र अनुपम शिला कोला गढ पर्बत पर बैठकर
अनन्त कोटि सिद्धों को श्री शम्भु जती गोरखनाथ ने पढकर सुनायो।
सत्य नाम आदेश गुरुजी को।।
नोट : इस मंत्र साधना बिधि ब प्रयोग बिधि गुरु से प्राप्त करें।

ज्योतिषाचार्य प्रदीप कुमार

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