चन्द्रबट यक्षिणी साधना विधि

Chandrabat Yakshini Sadhana Vidhi :

चन्द्रबट यक्षिणी (Chandrabat Yakshini) की साधना बिधि लगभग एक ही है लेकिन इनके मंत्र अलग है । साधक इच्छानुसार जिस यक्षिणी की सिद्धि करना चाहे कर सकता है ।सिद्धि के लिए निर्धारित मंत्र का निर्दिष्ट संख्या में जप करके जप का दशांश हबन एबं तर्पण करना चाहिए । यक्षिणी को सिद्ध करके साधक की सांसारिक मनोरथों की पूर्ति होती है । साधक का जीबन सम्पन्नता, यश बैभब मान –सम्मान से भर देती है ।इनकी सिद्धि के पश्चात साधक को सात्विक बृति में रहना चाहिए अन्यथा उसकी सिद्धि के समाप्त होने का भय बराबर बना रहता है । यक्षिणीयों को देबी का स्थान प्राप्त है । इनको कोई भी तांत्रिक भूत प्रेतों पिशाचों की भाँती बलपुर्बक बशीभूत नही कर सकता है ।

समस्त यक्षिणीयां दुर्गा की उपासिका तथा सहचरी हैं । इनकी एक यह भी बिशेषता है कि जो बस्तु साधक के भाग्य में ही न हो उसे भी ये प्रसन्न होकर प्राप्त करा देती हैं । यक्षिणी साधनाकाल में प्रति दिन कुंबारी कन्याओं को भोजन कराते हुए बस्त्र तथा द्रब्य का दान करते रहना चाहिए ।

Chandrabat Yakshini Mantra : 

मंत्र : ॐ ह्रीं नमश्चन्द्राधाबा कर्णाकर्ण कारणे स्वाहा ।

इस चन्द्रबट यक्षिणी (Chandrabat Yakshini) को ये मंत्र स्वयं शंकर जी ने प्रसन्न होकर दिया है अत: मंत्र स्वयं शंकरबत् हैं । इन मन्त्रों से स्नान कर शिबजी का ध्यान कर शुद्ध बस्त्र धारण कर बट बृक्ष के समीप जाकर उसे प्रणाम कर उसकी किसी शाखा पर बैठकर मंत्र का एक लाख जप किया जाय । यह जप तीन माह की अबधि में पूरा किया जाये । जप पूरा करने के बाद सबसे पहले किसी रात्री को कांजा से मुख शुद्धि करके सात बार इस मंत्र का जप करे, इसके बाद मंत्र का दशांश हबन तर्पण करे । हबन में बिल्व पत्र तथा फल दोनों ही सम्मिलित करे ।

यक्षिणी साधना में प्रब्रुत होने बाले साधक को किसी योग्य गुरु के निर्देशन में एबं श्रद्धा से सफलतापुर्बक की जा सकती है ।

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