तंत्र और प्रेत साधना सिद्धि :
तंत्र का क्षेत्र असीम सम्भावनाओं से भरा पड़ा है. ऐसे ही रहस्यों की श्रंखला में एक नाम आता है प्रेत सिद्धि। इस प्रयोग के विधान को समझने से पहले या ये प्रयोग करने से पहले आपको दो अति महत्वपूर्ण बातों को अपने ज़हन में रखना होगा –
१) यह साधना प्रेत प्रत्यक्षीकरण साधना है तो हम ये भी जानते हैं की यदि आपने उसे प्रत्यक्ष करके सिद्ध कर लिया तो वो आपके द्वारा दिए गए हर निर्देश का पालन करेगा किन्तु उससे यह सब करवाने के लिए आपको अपने संकल्प के प्रति दृढ़ता रखनी पड़ेगी अर्थात आपको पूरे मन, वचन और क्रम से ये साधना करनी पड़ेगी, क्योंकि जहाँ आप कमजोर पड़े आपकी साधना उसी एक क्षण विशेष पर खत्म हो जायेगी……और हाँ एक बात और अब चूंकी ये योनियाँ मंत्राकर्षण की वजह से आपकी तरफ आकर्षित होती है तो यथा संभव कोशिश करें की यदि आपने आसन सिद्ध किया हुआ है तो आप उसी आसन पर बैठ कर इस प्रयोग को करें… क्योंकि वो आसन भू के गुरुत्व बल से आपका सम्पर्क तोड़ देता है.
२) हम में से बहुत कम लोग यह बात जानते है की दिन के २४ घंटों में एक क्षण ऐसा भी होता है जब हमारी देह मृत्यु का आभास करती है अर्थात यह क्षण ऐसा होता है जब हमारी सारी इन्द्रियाँ शिथिल हो जाती है और ह्रदय की गति रुक जाती है…. रोज मरा की दिनचर्या में यह पल कौन सा होता है और कब आता है यह तो बहुत आगे का विधान है पर इस प्रयोग को करते समय यह पल तब आएगा जब आप साधना सम्पूर्णता की कगार पर होंगे तो आपको उस समय खुद के डर पर नियंत्रण करते हुए उस मूक संकेत को समझना है……वो जिसका कोई अस्तित्व नहीं है उसके अस्तित्व को पहचानते हुए उसकी मूल पद ध्वनि को सुनना है.
विधान – मूलतः ये साधना मिश्रडामर तंत्र से सम्बंधित है.
अमावस्या की मध्य रात्रि का प्रयोग इसमें होता है,अर्थात रात्रि के ११.३० से ३ बजे के मध्य इस साधना को किया जाना उचित होगा.
वस्त्र व आसन का रंग काला होगा.
वीरासन का प्रयोग कही ज्यादा सफलतादायक है.
नैवेद्य में काले तिलों को भूनकर शहद में मिला कर लड्डू जैसा बना लें,साथ ही उडद के पकौड़े या बड़े की भी व्यवस्था रखें और एक पत्तल के दोनें या मिटटी के दोने में रख दें..
दीपक सरसों के तेल का होगा.
बाजोट पर काला ही वस्त्र बिछेगा,और उस पर मिटटी का पात्र स्थापित करना है जिसमें यन्त्र का निर्माण होगा.
रात्रि में स्नान कर साधना कक्ष में आसन पर बैठ जाएँ. गुरु पूजन,गणपति पूजन,और भैरव पूजन संपन्न कर लें. रक्षा विधान हेतु सदगुरुदेव के कवच का ११ पाठ अनिवार्य रूप से कर लें.
अब यन्त्र का निर्माण अनामिका ऊँगली या लोहे की कील से उस मिटटी के पात्र में कर दें और उसके चारों और जल का एक घेरा मूल मंत्र का उच्चारण करते हुए छिड़क दें. और उस यन्त्र के मध्य में मिटटी या लोहे का तेल भरा दीपक स्थापित कर प्रज्वलित कर दें.और भोग का पात्र सामने रख दें.अब काले हकीक या रुद्राक्ष माला से ५ माला मंत्र जप निम्न मंत्र की संपन्न करें.मंत्र जप में लगभग ३ घंटे लग सकते हैं.
मंत्र जप के मध्य कमरे में सरसराहट हो सकती है, उबकाई भरा वातावरण हो जाता है,एक उदासी सी चा सकती है.कई बार तीव्र पेट दर्द या सर दर्द हो जाता है और तीव्र दीर्घ या लघु शंका का अहसास होता है. दरवाजे या खिडकी पर तीव्र पत्रों के गिरने का स्वर सुनाई दे सकता है, इनटू विचलित ना हों. किन्तु साधना में बैठने के बाद जप पूर्ण करके ही उठें. क्यूंकि एक बार उठ जाने पर ये साधना सदैव सदैव के लिए खंडित मानी जाती है और भविष्य में भी ये मंत्र दुबारा सिद्ध नहीं होगा.
जप के मध्य में ही धुएं की आकृति आपके आस पास दिखने लगती है. जो जप पूर्ण होते ही साक्षात् हो जाती है, और तब उसे वो भोग का पात्र देकर उससे वचन लें लें की वो आपके श्रेष्ट कार्यों में आपका सहयोग ३ सालों तक करेगा, और तब वो अपना कडा या वस्त्र का टुकड़ा आपको देकर अदृश्य हो जाता है, और जब भी भाविओश्य में आपको उसे बुलाना हो तो आप मूल मंत्र का उच्चारण ७ बार उस वस्त्र या कड़े को स्पर्श कर एकांत में करें, वो आपका कार्य पूर्ण कर देगा. ध्यान रखिये अहितकर कार्यों में इसका प्रयोग आप पर विपत्ति ला देगा. जप के बाद पुनः गुरुपूजन, इत्यादि संपन्न कर उठ जाएँ और दुसरे दिन अपने वस्त्र व आसन छोड़कर, वो दीपक, पात्र और बाजोट के वस्त्र को विसर्जित कर दें. कमरे को पुनः स्वच्छ जल से धो दें और कवच का उच्चारण करते हुए गंगाजल छिड़क कर गूगल धुप दिखा दें.
“ इरिया रे चिरिया,काला प्रेत रे चिरिया. पितर की शक्ति, काली को गण,कारज करे सरल, धुंआ सो बनकर आ,हवा के संग संग आ,साधन को साकार कर, दिखा अपना रूप, शत्रु डरें कापें थर थर, कारज मोरो कर रे काली को गण, जो कारज ना करें शत्रु ना कांपे तो दुहाई माता कालका की काली की आन.”
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