पंचांगुली साधना क्या है?

Panchaanguli Sadhana Kya Hai ?

यह पंचांगुली साधना (Panchaanguli Sadhana) किसी भी समय से प्रारम्भ की जा सकती है । परन्तु साधकको चाहिए कि वह पूर्ण विधि विधान के साथ इस पंचांगुली साधना (panchaanguli sadhana) को सम्पन्न करेँ । मन्त्र जप तीर्थ भूमि, गंगा-यमुना संगम, नदी-तीर, पर्वत, गुफा या किसी मन्दिर मे की जा सकती है । साधक चाहे तो पंचांगुली साधना (panchaanguli sadhana) केलिए घर के एकांत कमरे का उपयोग भी कर सकते हैँ । इस पंचांगुली साधना मेँ यन्त्र आवश्यक है । शुभ दिन शुद्ध , समय मे साधना स्थान को स्वच्छ पानी से धो ले । कच्चा आंगन हो तो लीप लेँ । तत्पश्चात लकडी के एक समचौरस पट्टे पर श्वेत वस्त्र धो करबिछा देँ और उस पर चावलोँ से यन्त्र का निर्माण करेँ चावलोँ को अलग-अलग 5 रंगो मे रंग देँ । यन्त्र को सुघडता से सही रुपमेँ बनावे यन्त्र की बनावट मे जरा सी भी गलती सारे परिश्रम को व्यर्थकर देती है । तत्पश्चात यन्त्र के मध्य ताम्र कलश स्थापित करेँ और उस पर लालवस्त्र आच्छादित कर ऊपर नारियल रखेँ और फिर उस पर पंचागुली देवी की मूर्ति स्थापित करे । इसके बाद पूर्ण षोडसोपचार से 9 दिन तक पूजन करेँ और नित्य पंचागुली मन्त्र का जप करें । सर्व प्रथम मुख शोधन कर पंचागुली मन्त्र चैतन्य करेँ । पंचांगुली की साधना मेँ मन्त्र चैतन्य ‘ ई ‘ है अतः मन्त्र के प्रारम्भ और अन्त मे ‘ ई ‘ सम्पुट देने से मंत्र चैतन्य हो जाता है । मन्त्र चैतन्य के बाद योनि-मुद्रा का अनुष्ठान किया जाय यदि योनि-मुद्रा अनुष्ठान का ज्ञान न हो तो भूत लिपि – विधान करना चाहिए । इसके बाद यन्त्र पूजा कर पंचांगुली देवी की ध्यान करेँ ।
ध्यान – पंचांगुली ध्यान-पंचांगुली महादेवीँ श्री सोमन्धर शासने । अधिष्ठात्री करस्यासौ शक्तिः श्री त्रिदशोशितुः ।। पंचांगुली देवी के सामने यह ध्यान करके पंचांगुली मन्त्र का जपकरना चाहिए –

Panchaanguli Sadhana Mantra :

{{ ॐ नमो पंचागुली पंचांगुली परशरी माता मयंगल वशीकरणी लोहमयदडमणिनी चौसठ काम विहंडनी रणमध्ये राउलमध्ये शत्रुमध्येदीपानमध्ये भूतमध्ये प्रेतमध्ये पिशाचमध्ये झोटिगमध्ये डाकिनिमध्येशाखिनीमध्ये यक्षिणीमध्ये दोषणिमध्ये गुणिमध्ये गारुडीमध्येविनारिमध्ये दोषमध्ये दोषशरणमध्ये दुष्टमध्ये घोर कष्ट मुझ ऊपरबुरो जो कोई करे करावे जडे जडावे चिन्ते चिन्तावे तस माथेश्री माता पंचांगुली देवी ताणो वज्र निर्घार पडे ॐ ठं ठं ठं स्वाहा }}
वस्तुतः यह पंचांगुली साधना (Panchaanguli Sadhana) लम्बी और श्रम साध्य है, प्रारम्भ मे गणपति पूजन, संकल्प, न्यास , यन्त्र-पूजा , प्रथम वरण पूजा , द्वतिया, तृतिया , चतुर्थ, पंचम, षष्ठम् सप्तम, अष्टम औरनवमावरण के बाद भूतीपसंहार करके यन्त्र से प्राण-प्रतिष्ठाकरनी चाहिए । इसके बाद पंचागुली देवी को संजीवनी बनाने के लिए ध्यान ,अन्तर्मातृका न्यास , कर न्यास, बहिर्मातृका न्यास करनी चाहिए ,यद्यपि इन सारी विधि को लिखा जाय तो लगभग 40-50 पृष्ठो मे आयेगी ।
देश के श्रेष्ठ साधको का मत है कि यदि साधक ये सारे क्रियाकलाप न करके केवल घर मे मन्त्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त पंचांगुली यन्त्र तथा चित्र स्थापित कर उसके सामने नित्य पंचांगुली मंत्र 21 बार जपकरें तो कुछ समय बाद स्वतः पंचांगुली साधना सिद्ध हो जाती है । सामान्य साधक को लम्बे चौडे जटिल विधि विधान मे न पड कर अपनेघर मे पंचांगुली देवी का चित्र स्थापना चाहिए और प्रातः स्नान कर गुरुमंत्र जप कर पंचांगुली मन्त्र का 21 बार उच्चारण करना चाहिए । कुछ समय बाद मन्त्र सिद्ध हो जाता है और यह साधना सिद्ध कर साधक सफल भविष्यदृष्टा बन जाता है ।
साधक मेजितनि उज्जवला और पवित्रता होती है उसी के अनुसार उसे फलमिलता है । वर्तमान समय मे यह श्रैष्ठतम और प्रभावपूर्ण मानी जाती है तथा प्रत्येक मन्त्र मर्मज्ञ और तांत्रिक साधक इस बात को स्वीकार करते है कि वर्तमान समय मे यह साधना अचूक फलदायक है ।
{{ इस पंचांगुली साधना (Panchaanguli Sadhana) में कार्तिक माह के हस्त नक्षत्र का ज्यादा महत्व है क्योंकि ये हस्तरेखा और भविष्य दर्शन से जुडी है । ज्यादा उचित ये रहेगा की गुरु के सानिंध्य में साधना करें ।}}

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जय माँ कामाख्या

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