मरी साधना कैसे करें ?

मरी साधना :

मरी साधना परिचय : मरी संहारदेब से जिडी हुई श्मशान में निबास करने बाली अत्यन्त उग्र और क्रूरशक्ति है । यह साधक के शत्रु को तडपा-तडपा कर खून चूस-चूस कर मारती है । इसका मारा परिबार कभी उबरता नहीं । समूलनष्ट ही हो जाता है ।

इसकी साधना एक अमाबस्या से चौथी अमाबस्या तक पुराने श्मशान के पास करनी पडती है ।

सार संक्षेप : यह बीरभाब की साधना है, बहुत हिम्मत बाले बिरले साधक ही मरी साधना कर पाते हैं । मरी साधना के समय बहुत भय पैदा करती है । साधकों के भय के मारे टट्टी पेशाब तक छूट जाते हैं । आसन छोडकर साधक भागा तो मृत्यु ही होती है ।

साधना फ़ल : इसकी साधना से संकट पडने पर मरी सदा सहायता कर रक्षा करती है । शत्रु संहार में मरी मशहूर है । शत्रुओं का नाश बहुत हंस -हंस कर करती है । साधक को धन के मार्ग बताती है पर उस धन का कभी दुरूपयोग न करें, संयम से रहें, दुराचार न करें, सबकी मदद करें बरना मरी उल्टा खाने लगती है ।

साधना बिधान : तीन महीने तक अमाबस्या से चौथी अमाबस्या तक मरी साधना श्मशान में रहकर करनी पडती है । मौन रहना पडता है, एक समय रात में भोजन करें। बह भी मूंग की दाल, चाबल का लाल मिर्च के साथ, तेल का दीपक अखण्ड तीन माह जलाबें । पुराने श्मशान से १०० धनुष दूर बबूल के पेड के नीचे आसन बनाएं, बहीं रहे । तीनों समय पूजन करें पर रात में निम्न मंत्र का ५००० जप करें । रात में भोजन का भोग देबें पतल में, पानी मिट्टी के बर्तन में देबें ।

मरी साधना मंत्र : “ॐ नमो: श्मशानेश्वर एकां मरीं मम् संगिनी निश्चयं कुरू ते नम: ।।”

साथ ही श्मशानेश्वर की भी श्मशान जाकर रोज सायंकाल पूजा कर आबें । रात में उन्हें जाकर भोजन पानी रख आबें। तब लौटकर मरी की पूजा करें । निम्न मंत्र से-

मंरी मंत्र : “ॐ एहोहि मरी श्मशानबासिनी मम पूजां गृहण गृहण ममोपरी प्रसन्नोभब।।”

चौथी अमाबस्या को मरी भयानक रूप धरकर आती है । उसे भोजन और महूए की मदिरा देबें । मदिरा प्रत्येक अमाबस्या को श्मशानेश्वर और मरी को मिट्टी के बर्तन रूपी बर्तनों में देबें, भोजन के साथ । मरी खा पीकर जब साधक की छाती पर लात से प्रहार करे तो साधक छाती पर ही उसका पैर पकड कर जमा ले, फिर बह पूछेगी कया चाहता है, तो अपना मनोरथ कहकर बरदान ले लेबे । तत्पश्चात् हर अमाबस मदिरा भात देता रहे ।

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